काशी के सांसद पीएम मोदी तक नहीं पहुंचती फरियाद, हांफने लगते हैं फरियादी

संसदीय कार्यालय व जिला प्रशासन के बीच दौड़ती गुहार हांफ जाती 

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वाराणसी का नाम आते ही प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का चेहरा जेहन में आ जाता है. सहज ही देश की जनता समझ लेती है कि यहां तो हर कार्य पीएम मोदी की नजरों में होगा. समस्याओं का चुटकियों में समाधान हो जाता होगा लेकिन हकीकत बहुत दूर है.

 मोदी तक जनता की गुहार पहुंच ही नहीं पाती 

पीएम मोदी के संसदीय जनसंपर्क कार्यालय व जिला प्रशासन के बीच दौड़ लगाने में फरियादी हांफने लगते हैं. बानगी के तौर पर शिवपुर तालाब की शिकायती पत्र को लिया जा सकता है. स्थानीय पूर्व पार्षद डॉ. जितेंद्र सेठ ने अब तक कई बार प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के संसदीय कार्यालय में लिखित फरियाद की. कभी कार्यालय प्रभारी शिवशरण पाठक तो कभी जनसुनवाई कर रहे विधायक सैराभ श्रीवास्तव ने प्रार्थना पत्रों को जिला प्रशासन को अग्रसारित कर दिया. हर बार कट-पेस्ट का एक ही उत्तर आता है- ‘जमीन पर कोई निर्माण नहीं हुआ है. प्लाट खाली पड़ा है‘. जबकि जितेंद्र सेठ कालोनाइजरों द्वारा पाटे गए शिवपुर तालाब के पुनर्जीवित करने और आरोपितों पर कार्रवाई की मांग कर रहे हैं.

कभी भव्यता को समेटे था नगर निगम का यह तालाब

काशी के पंचक्रोशी परिक्रमा के चौथे पड़ाव के रूप में मशहूर शिवपुर पंचक्रोशी मार्ग स्थित ऐतिहासिक महत्व के इस धार्मिक तालाब (जिसका अराजी नं० 69 मौजा एवं परगना शिवपुर  तहसील सदर वाराणसी ) पर माता जिउतिया का पूजन एवं प्रसिद्ध प्याला का मेला लगता था.  पंचक्रोशी परिक्रमा करने वाले तीर्थयात्री यहीं खाना बना-खाते और विश्राम कर पुनः अगले पड़ाव के लिए प्रस्थान करते थे. यह तालाब सैकड़ों पेड़ों से आच्छादित था. तालाब में तमाम जलचर जीव, जंतु थे. पक्षियों का घरौंदा हुआ करता था. आसपास के पुराने लोग बताते हैं कि कभी यहां साइबेरियन पंछी भी आते थे. वर्ष पर्यंत यह तालाब जल से भरा रहता था.  इसका मालिकाना हक नगर निगम के पास है.

अफसरों व कर्मचारियों की मिलीभगत से हुआ कब्जा

ऐसे जीवंत  सार्वजनिक तालाब को पहले अवैध कबजेदारों ने धारा 229 ठ. कराकर भ्रष्ट अधिकारियों व कर्मचारियों की मिलीभगत से अपना नाम कपटपूर्वक दर्ज कराकर जब उसे मिट्टी डालकर पाटने लगे तो आसपास के नागरिकों ने इसका पुरजोर विरोध किया. यह मामला सड़क से लेकर नगर निगम सदन तक उठाया गया. जन आंदोलन के तहत कई बार धरना – प्रदर्शन हुए. मामला जिला प्रशासन, उत्तर प्रदेश शासन के संज्ञान में लाया गया, परंतु भू माफियाओं ने पुनः भ्रष्ट अधिकारियों व कर्मचारियों की मिलीभगत से नगर निगम द्वारा तालाब की भूमि पर अनापत्ति प्रमाण पत्र जारी करा लिया. वाराणसी विकास प्राधिकरण द्वारा भू – विन्यास मानचित्र भी स्वीकृत कराने में वह सफल हो गए.

  सौंपी थी रिपोर्ट…

पार्षद ने उच्च न्यायालय इलाहाबाद का दरवाजा खटखटाया. उच्च न्यायालय के निर्देश पर वाराणसी मंडल के तत्कालीन मंडलायुक्त द्वारा गठित जिलाधिकारी वाराणसी, उपाध्यक्ष विकास प्राधिकरण वाराणसी, नगर आयुक्त नगर निगम वाराणसी एवं अपर जिला मजिस्ट्रेट (वित्त एवं राजस्व) की चार सदस्यीय  समिति से मौके व अभिलेखों की जांच कराई गई. जांच के बाद समिति ने अपनी रिपोर्ट में स्पष्ट रूप से लिखा है कि सन 1291 फसली (यानी सन 1883- 84) में गाटा संख्या 69 तालाब के रूप में दर्ज था. इससे यह प्रतीत होता है उक्त गाटे पर उपर्युक्त व्यक्तियों ने दिनांक 23/1/1990 को प्रश्नगत आदेश पारित होने के पूर्व अभिलेखों में अपना नाम कपट पूर्वक दर्ज करा लिया है. अतः इसे निरस्त कर पुनः तालाब के रूप में दर्ज किया जाना आवश्यक है.

निरस्त हुई एनओसी, दर्ज की गई तालाब की संपत्ति

जांच समिति ने आगे कहा कि प्रश्नगत गाटा संख्या तालाब की भूमि है. अतः इसका स्वरूप किसी भी दशा में परिवर्तित नहीं किया जा सकता है. तत्कालीन सहायक कलेक्टर (प्रथम श्रेणी) अपर नगर मजिस्ट्रेट द्वितीय वाराणसी द्वारा 23/1/1990 को पारित उक्त निर्णय उनके क्षेत्राधिकार के परे है. यह जांच रिपोर्ट 26/5/2006 की है जिसे सभी अधिकारियों से हस्ताक्षरित होकर मंडलायुक्त को प्रेषित किया गया था. इसके बाद नगर निगम द्वारा अपने राजस्व अभिलेख में तालाब दर्ज करने के पश्चात पूर्व में जारी अनापत्ति प्रमाण (छव्ब्) पत्र एवं विकास प्राधिकरण द्वारा स्वीकृत मानचित्र को भी निरस्त कर दिया गया.

तीन दिन हुई खोदाई और अचानक रोक दिया गया काम

सार्वजनिक तालाब पाट कर उसके स्वरूप को परिवर्तित करने वालों के खिलाफ तत्कालीन जिलाधिकारी वीणा के निर्देश पर मुख्य राजस्व अधिकारी वाराणसी की ओर से मेसर्स अलका कंस्ट्रक्शन एवं अन्य कब्ज्जेदारों के खिलाफ शिवपुर थाना में दिनांक 20/4/2008 को थ्प्त् भी दर्ज कराई गई थी. सन 2002 से अनवरत जारी संघर्ष की उपलब्धि रही है कि तत्कालीन मंडलायुक्त नितिन रमेश गोकर्ण के निर्देश पर पाटे गए तालाब पर दो-दो जेसीबी लगाकर खुदाई (खनन) का कार्य प्रारंभ कराया गया. परंतु राजनीतिक हस्तक्षेप से खुदाई का कार्य अचानक बीच में ही रोक दिया गया. इलाके के लोगों का कहना है कि सत्तापक्ष के एक मंत्री का भूमाफियों को संरक्षण प्राप्त है.

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फिर भी पूर्व पार्षद को है पीएम मोदी पर भरोसा

गुहार लगानेवाले शिवपुर के पूर्व पार्षद पीएम मोदी पर भरोसा जताते हुए कहते हैं कि वह न्याय के पुजारी हैं. एक दिन न्याय जरूर करेंगे. सत्य परेशान जरूर है लेकिन पराजित नहीं हुआ है. यह तालाब नगर निगम वाराणसी की 63 तालाबों की सूची में 31वें नंबर पर अंकित है. नगर निगम की संपत्ति रजिस्टर में भी यह तालाब दर्ज है. यह तालाब बंदोबस्त के नक्शे में भी अंकित है. जन विरोध के फलस्वरुप अवैध कब्जेदारों ने इस तालाब को मिट्टी से पाट अवश्य दिया है, परंतु उसे पर किसी भी तरह का निर्माण कार्य नहीं हो पाया है. अब देखना है कि इस पर बाबा का बुलडोजर कब चलता है?

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