आधुनिक भारत के जनक डॉ. अंबेडकर जिन्हें आज नमन कर रहा है पूरा भारत

डॉ. भीमराव रामजी अंबेडकर न सिर्फ एक महान व्यक्तित्व के धनी थे बल्कि वे आधुनिक भारत के महानायक के रूप में भी जाने जाते हैं। वे आज भी करोड़ोें भारतीयों के प्रेरणा स्रोत हैं

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डॉ. भीमराव रामजी अंबेडकर न सिर्फ एक महान व्यक्तित्व के धनी थे बल्कि वे आधुनिक भारत के महानायक के रूप में भी जाने जाते हैं। वे आज भी करोड़ोें भारतीयों के प्रेरणा स्रोत हैं।

अंबेडकर बचपन में तत्कालीन समाज में व्याप्त छुआछूत की भयानक बीमारी के शिकार हुए। इस वजह से उनके जीवन की धारा पूरी तरह बदल गयी। इन घटनाओं ने उन्हें उस समय का उच्चतम शिक्षित भारतीय नागरिक बनने के लिए प्रेरित किया। इसका परिणाम यह हुआ कि भारतीय संविधान के निर्माण तक अपना अहम योगदान देते चले गये। यहां यह माना जाना चाहिये कि भारत के संविधान को आकार देने के लिए डॉ भीमराव अंबेडकर का योगदान अतुलनीय है। वे न सिर्फ लाखों-करोड़ों लोगों के लिए प्रेरणा बने अपितु पिछड़े व दलित वर्गों के लोगों को न्याय, समानता और अधिकार दिलाने के लिए अपने जीवन को देश के प्रति समर्पित कर दिया।

अंबेडकर व्यक्ति नहीं संपूर्ण ग्रंथ-

भीमराव

भीमराव अंबेडकर की पूरी जिंदगी प्रेरणाओं की अनगिनत कहानियों से भरी हुई है। इस नाते कहा जा सकता है कि वे अपने आप में पूरा का पूरा एक ग्रंथ हैं। फिर भी, सामान्य तौर पर कहें तो सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक, शैक्षणिक, धार्मिक,औद्योगिक, संवैधानिक क्षेत्र में उन्होंने दर्जनों ऐसे कार्य किए, जिन्हें भारत में हमेशा याद रखा जाएगा।

इस नाते वे भारत रत्न जैसे सर्वोच्च पुरस्कार से भी नवाजे गये। डा. अंबेडकर ने अपने जीवन के 65 सालों में राष्ट्र निर्माण में महत्वपूर्ण योगदान दिया ही साथ ही सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक, शैक्षणिक, धार्मिक, ऐतिहासिक, सांस्कृतिक, साहित्यिक, औद्योगिक, संवैधानिक आदि क्षेत्रों में अनगिनत कार्य करके भारत में राष्ट्रप्रेम की अलख जगाई। उन्होंने अनेक ऐसे काम किए, जिन्हें आज भी हिंदुस्तान याद रखता है। अंबेडकर जयंती के अवसर पर हर भारतीय को उनके इन कार्यों को स्मरण करना चाहिये।

उन्होंने मानवाधिकार जैसे दलितों एवं दलित आदिवासियों के मंदिर प्रवेश, पानी पीने, छुआछूत, जातिपाति, ऊंच-नीच जैसी सामाजिक कुरीतियों को मिटाने के लिए अतुलनीय कार्य किए। खासकर मनुस्मृति दहन (1927), महाड सत्याग्रह (1928), नाशिक सत्याग्रह (1930), येवला की गर्जना (1935) जैसे आंदोलन चलाए और समाज में जागरूकता पैदा की।

उनकी प्रतिभा का आज का भारत यूं ही कायल नहीं है। वे एक कुशल संपादक भी थे और बेजुबान, शोषित और अशिक्षित लोगों को जागरुक करने के लिए साल 1927 से 1956 के दौरान मूक नायक, बहिष्कृत भारत, समता, जनता और प्रबुद्ध भारत नामक पांच साप्ताहिक और पाक्षिक पत्र-पत्रिकाओं का संपादन किया।

यही नहीं भारत में रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया की स्थापना डॉ. अंबेडकर की रचना ‘रुपये की समस्या-उसका उद्भव और प्रभाव’ और ‘भारतीय चलन व बैकिंग का इतिहास’ और ‘हिल्टन यंग कमीशन के समक्ष उनकी साक्ष्य’ के आधार पर 1935 में हुई।

सीखने वाली बातें-

दुनिया को एक नया नजरिया देने वाले डा. अंबेडकर की ये बातें लोगों के जेहन में रच बस गयी हैं। वे लगातार कहते रहे ‘इतिहास बताता है कि जहां नैतिकता और अर्थशास्त्र के बीच संघर्ष होता है, वहां जीत हमेशा अर्थशास्त्र की होती है। निहित स्वार्थों को तब तक स्वेच्छा से नहीं छोड़ा गया है, जब तक कि मजबूर करने के लिए पर्याप्त बल न लगाया गया हो।’ वे लगातार कहते रहे, ‘बुद्धि का विकास मानव के अस्तित्व का अंतिम लक्ष्य होना चाहिए। जब तक आप सामाजिक स्वतंत्रता नहीं हासिल कर लेते,कानून आपको जो भी स्वतंत्रता देता है वो आपके लिये बेमानी है। समानता एक कल्पना हो सकती है, लेकिन फिर भी इसे एक गवर्निंग सिद्धांत रूप में स्वीकार करना होगा।’

लॉकडाउन और अंबेडकर-

डॉ. बाबासाहेब अंबेडकर के अनुसार, बौद्ध धर्म के द्वारा मनुष्य अपनी आंतरिक क्षमता को प्रशिक्षित करके, उसे सही कार्यों में लगा सकता है। आज जबकि संपूर्ण भारत कोरोना वायरस संक्रमण के चलते लॉकडाउन में है, बाबा साहब की ये बातें हमें प्रेरणा देती हैं। कोरोना संक्रमण के काल में जबकि आम आदमी घरों में बंद है, आंतरिक शक्ति जगाकर खुद को नये भारत के निर्माण में लगा सकता है। यह उसकी आंतरिक शक्ति के विकास का माडर्न काल भी कहलायेगा।

आज भारत के करोड़ों लोग लॉकडाउन के चलते एक वक्त की रोटी के लिए भी मोहताज हैं। डॉ. अंबेडकर का जीवन बताता है कि बचपन की कठिनाइयों और गरीबी के बावजूद कैसे आगे बढ़ते रहा जाता है। कोरोना संक्रमण के इस कालखंड में कठिनाइयों पर विजय कैसे प्राप्त की जा सकती है, अंबेडकर की संपूर्ण जीवन यात्रा से इसे समझा जा सकता है।

अगर हमें पूरे भारतीय इतिहास में से एक ऐसा आदमी चुनना हो जिसने दलितों के लिए शिक्षा और रोजगार का मार्ग प्रशस्‍त किया, उनके अधिकारों के प्रति उन्‍हें जागरूक बनाया, दूसरे समुदायों के शोषण से उन्‍हें मुक्‍त किया, बुद्धि के क्षेत्र में भी उनकी श्रेष्‍ठता साबित कर दी- इन तमाम विशेषताओं से युक्‍त अकेले अंबेडकर ही मिलेंगे। डॉ. अंबेडकर का योगदान अतुलनीय ही नहीं अनुकरणीय भी हैं। भारत का हर नागरिक उनका ऋणी है और रहेगा।

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