जानें क्या, मध्यप्रदेश की सियासत का रंग बदलेगा नरोत्तम पर फैसला?
कई बार सियासत का रंग एक फैसले से बदलने लगता है, लगभग यही हाल आने वाले दिनों में मध्यप्रदेश की सियासत का होने वाला है, क्योंकि भारत निर्वाचन आयोग द्वारा ‘पेड न्यूज’ का दोषी ठहराते हुए संसदीय कार्यमंत्री डॉ. नरोत्तम मिश्रा(Dr. Narottam Mishra) को तीन वर्षो के लिए चुनाव लड़ने के अयोग्य घोषित किया गया है, लेकिन दो हफ्ते बाद भी मंत्री ने न पद छोड़ा है और न विधायकी से इस्तीफा दिया है।
फिलहाल यह मामला जबलपुर उच्च न्यायालय में लंबित है और सुनवाई 11 जुलाई को होना है। यह फैसला मिश्रा के साथ-साथ सरकार को राहत या आहत करने वाला हो सकता है।
शिवराज सरकार के सबसे ताकतवर मंत्रियों में से एक हैं मिश्रा। वे संसदीय कार्य के साथ जनसंपर्क और जल संसाधन मंत्री भी हैं। इतना ही नहीं, सरकार की छवि को सदन से लेकर बाहर तक बनाने की भूमिका निभाते हैं, मगर इन दिनों वे खुद उलझे हुए हैं और सरकार उनकी मदद करने की स्थिति में नहीं है।
मामला वर्ष 2008 के विधानसभा चुनाव से जुड़ा हुआ है, जिसमें उनके प्रतिद्वंद्वी राजेंद्र भारती ने चुनाव का सही ब्योरा न देने और पेड न्यूज (रकम देकर खबरें) छपवाने का आरोप लगाते हुए चुनाव आयोग से शिकायत की। यह मामला उच्च न्यायालय की ग्वालियर खंडपीठ, सर्वोच्च न्यायालय और फिर चुनाव आयेाग तक पहुंचा। वर्ष 2009 में दर्ज कराई गई शिकायत पर चुनाव आयोग का 23 जून को अर्थात लगभग आठ वर्ष बाद फैसला आया।
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मिश्रा ने इस फैसले को चुनौती दी, उच्च न्यायालय की पीठ ग्वालियर में याचिका दायर की, स्थगन मांगा, मगर राहत नहीं मिली, वहीं मिश्रा के आवेदन पर इस पूरे प्रकरण को उच्च न्यायालय जबलपुर की प्रिंसिपल बेंच को स्थानांतरित कर दिया गया है, जिस पर सुनवाई 11 जुलाई को है।
वरिष्ठ पत्रकार भारत शर्मा का कहना है कि शुचिता की राजनीति करने वाली भाजपा और मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के पास निर्वाचन आयोग के फैसले के बाद मंत्री मिश्रा से इस्तीफा लेकर यह स्थापित करने का मौका था कि उनकी कथनी और करनी में फर्क नहीं है, मगर ऐसा होता नहीं दिख रहा है।
उन्होंने कहा, “अगर उच्च न्यायालय से राहत भी मिल गई तो पार्टी को कोई लाभ नहीं होगा और अगर राहत नहीं मिली तो कांग्रेस को बैठे-बिठाए बड़ा मुद्दा हाथ लग जाएगा। वैसे तो कांग्रेस को दोनों स्थितियों में हमले का मौका मिलेगा।”
जब से आयोग का फैसला आया है, तब से कांग्रेस मिश्रा का इस्तीफा मांग रही है। कांग्रेस के प्रदेशाध्यक्ष अरुण यादव का कहना है कि नैतिकता की बात करने वाली भाजपा का आचरण अनैतिक है। वह संवैधानिक संस्थाओं को लगातार कमजोर करने में लगी है, इसका उदाहरण चुनाव आयोग के फैसले के बावजूद मंत्री को पद से न हटाया जाना है। भाजपा और मुख्यमंत्री को चाहिए कि उच्च न्यायालय का फैसला आने से पहले ही मिश्रा को पद से हटा दें।
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दूसरी ओर, मंत्री मिश्रा लगातार चुनाव आयोग के फैसले पर सवाल उठाते आए हैं, उनका कहना है कि चुनाव आयोग को अयोग्य घोषित करने का अधिकार ही नहीं है। उन्होंने चुनाव आयोग के फैसले के खिलाफ उच्च न्यायालय में याचिका दायर की है। ग्वालियर खंडपीठ में सुनवाई के दौरान उन्होंने राष्ट्रपति चुनाव को लेकर स्थगन मांगा था, मगर ऐसा नहीं हो पाया। अब मामला उच्च न्यायालय जबलपुर की प्रिंसिपल बेंच में स्थानांतरित हो गया है, उन्हें भरोसा है कि राष्ट्रपति चुनाव में उन्हें मतदान करने को जरूर मिलेगा।
फिलहाल, भाजपा संगठन से लेकर सरकार के मंत्री तक आयोग के फैसले पर ज्यादा कुछ बोलने को तैयार नहीं हैं, सभी 11 जुलाई का इंतजार कर रहे हैं, क्योंकि चुनाव आयोग के फैसले पर पूर्व में न्यायालयों का रहा रुख संशय में डालने वाले हैं।
महाराष्ट्र के अशोक चव्हाण व उत्तर प्रदेश के उर्मिलेश यादव के मामले में निर्वाचन आयोग द्वारा अयोग्य ठहराए जाने पर उच्च न्यायालय से राहत नहीं मिली थी। फैसला कुछ भी आए, मगर इतना तो तय है कि भाजपा के लिए उच्च न्यायालय का फैसला नई मुसीबत खड़ी करने वाला होगा, क्योंकि अगले विधानसभा चुनाव को लगभग एक साल ही बचा है।
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