इटावा लायन सफारी : नहीं रुक रहा जानवरों की मौत का सिलसिला
सपा मुखिया और पूर्व सीएम अखिलेश यादव के ड्रीम प्रोजेक्ट इटावा लायन सफारी में वन्यजीवों के मरने का सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा है। अब तक बब्बर शेर, तेंदुआ, भालू और काले हिरन जैसे दुर्लभ प्रजाति के करीब डेढ़ दर्जन वन्यजीवों की मौत यहां हो चुकी है। नये वर्ष की शुरू होते ही बीते 4 जनवरी को एक काले हिरण की भी मौत हो गई।
लगातार हो रही मौतों से इटावा लायन सफारी में वन्यजीवों के संरक्षण पर एक बड़ा सवाल खड़ा हो गया है। अफसरों के पास इसका कोई ठोस जवाब नहीं है। वे इन मौतों के पीछे केनाईन डिस्टेम्पर और टीबी जैसी बीमारियों को कारण बता रहे हैं।
2008 में हुई थी लायन सफारी प्रोजेक्ट की शुरूआत
यूपी में लायन सफारी प्रोजेक्ट की शुरूआत 2008 में ही हो गई थी। फिर 2012 में आई सपा सरकार के मुखिया अखिलेश यादव ने इस प्रोजेक्ट में खासी दिलचस्पी दिखाई। इसके बाद प्रोजेक्ट पर तेजी से काम शुरू हुआ। 2014 में 350 हेक्टेयर जमीन पर सफारी पार्क में बब्बर शेर प्रजनन केन्द्र के रूप में लायन सफारी, तेंदुआ सफारी, भालू सफारी, शाकाहारी वन्यजीवों की एन्टीलोप हिरण और काले हिरण सहित 5 सफारी पार्को की स्थापना की गई।
236 करोड़ रुपए खर्च किए गए
सपा शासन काल में 236 करोड़ रुपए खर्च किए गए। लेकिन सफारी में 2014 से अब तक जहां 10 शेरों की मौत हो गई है। वहीं एक तेंदुआ और हाल ही में एक भालू के साथ बीते 2 दिन पहले एक काले हिरन की भी मौत हो जाने से हड़कंप मच गया।
कैनाईन डिस्टेंपर बीमारी की वजह से हो रही मौतें
वन्यजीव विशेषज्ञों के मुताबिक जहां गुजरात से लाये गये शेरो की मौत इटावा के मौसम में तत्काल न ढल पाने और पहले ही कैनाईन डिस्टेंपर जैसी बीमारी से ग्रसित होने के कारण हुई। सामान्य तौर पर भी इन शेरों की शुरुआती दिनों में मृत्यु दर करीब 70 प्रतिशत के करीब होती है। इसके बाद बीते दिनो इस सफारी में ही एक तेंदुए, भालू और काले हिरण की भी टीबी की बीमारी से मौत हो गई।
बता दें कि इटावा लायन सफारी में कुत्तों के जरिये फैलने वाली केनाईन डिस्टेपंर जैसी बीमारियों से शेरों की मौत सामने आई। इसके बाद जब इलाज खोजने की कोशिश की गई, तो हिन्दुस्तान में इसका इलाज नहीं मिला। फिर अमेरिका के सैनडियागो जू के डॉक्टरो से संपर्क किया गया। उनकी मदद से इटावा के इन शेरों के वैक्सीनेशन कराए गए।
मामले में उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्य प्रधान वन संरक्षक राम लखन सिंह कहते हैं कि एशियाई शेर धरती पर बहुत कम बचे हैं। ये सिर्फ गुजरात के गीर नेशनल पार्क में पाए जाते हैं। अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर वन्य जीव संरक्षण का काम करने वाले भारत सरकार से हमेशा गुजारिश करते रहे कि शेर को गीर के अलावा एक अन्य जगह भी संरक्षण दिया जाए। इनकी मौत के पीछे प्राकृतिक माहौल में न रखा जाना भी कारण हो सकता है।
इटावा सफारी पार्क के निदेशक पीपी सिंह कहते हैं कि काला हिरण की मौत के पीछे क्षय रोग कारण है। कई दिनों से उसका इलाज भी चल रहा था। डॉक्टरों ने भी कह दिया था कि बीमारी पुरानी है, लिहाजा कितने दिन यह जीवित रहेगा, कह नहीं सकते। वहीं इससे पहले जिन जानवरों की मौत हुई है, उसमें केनाईन डिस्टेम्पर सहित तमाम वायरस आदि की समस्याएं सामने आईं।
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अब तक विभिन्न कारणों से मरने वाले दुर्लभ वन्यजीव
30 अक्टूबर 2014 को लाये गए बब्बर शेर के जोड़े विष्णु और लक्ष्मी ने 14 दिनों के भीतर ही दम तोड़ दिया।
2015 में गुजरात से लाई गई शेरनी तपस्या की मौत।
वर्ष 2015 से 2017 के बीच बब्बर शेर के 5 शावकों की एक के बाद एक मौत।
सितम्बर 2017 में लाए गये तेंदुए के शावक की भी 4 दिन बाद मौत।
27 सितम्बर 2017 को एक तेंदुए की मौत।
24 दिसंबर 2017 को एक भालू रामू ने भी दम तोड़ दिया।
4 जनवरी 2018 को एक काले हिरण की भी मौत हो गई।
इटावा सफारी पार्क में मौजूद वन्यजीव
लायन सफारी/एशियाई बब्बर शेर प्रजनन केन्द्र – 3 नर शेर, 3 मादा, 2 शावक
बियर सफारी- 2 नर भालू, 1 मादा
डीयर सफारी- 20 से अधिक चीतल, 10 से अधिक सांभर
एटीलोप सफारी- 20 से अधिक काले हिरण
तेंदुआ सफारी- लखनऊ, कानपुर से लाए 7 तेन्दुए
(साभार- न्यूज18)