समाज की विविधता में हर रंग की अपनी अहमियत होती है, लेकिन कुछ रंगों को पहचानने में हमें समय लगता है. ट्रांसजेंडर समुदाय भी ऐसा ही एक रंग है, जो समाज के ताने-बाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है. “अंतर्राष्ट्रीय ट्रांसजेंडर दृश्यता दिवस” (International Transgender Day of Visibility) इस समुदाय की उपलब्धियों और संघर्षों को मान्यता देने का एक महत्वपूर्ण अवसर है.
इतिहास और महत्व
अंतर्राष्ट्रीय ट्रांसजेंडर दृश्यता दिवस की शुरुआत 2009 में अमेरिकी ट्रांसजेंडर कार्यकर्ता राचेल क्रैंडल-क्रॉकर (Rachel Crandall-Crocker) ने की थी. उन्होंने महसूस किया कि ट्रांसजेंडर समुदाय के लिए केवल “ट्रांसजेंडर स्मरण दिवस” (Transgender Day of Remembrance) मनाया जाता है, जो उन सदस्यों को याद करता है जो हिंसा के शिकार हुए हैं. राचेल ने एक ऐसे दिन की आवश्यकता महसूस की जो जीवित ट्रांसजेंडर व्यक्तियों की उपलब्धियों और उनके योगदान का उत्सव मना सके. इस प्रकार, 31 मार्च को अंतर्राष्ट्रीय ट्रांसजेंडर दृश्यता दिवस के रूप में मनाने की परंपरा शुरू हुई.
भारत में ट्रांसजेंडर समुदाय की स्थिति
भारत में ट्रांसजेंडर समुदाय का एक समृद्ध इतिहास रहा है. प्राचीन काल में, इन्हें समाज में विशेष स्थान प्राप्त था और इन लोगों के अलग राज्य व राजा थे जिन्हें किन्नर नरेश कहा जाता था. दूसरी ओर समय के साथ इनकी स्थिति में गिरावट आई. हाल के वर्षों में, उनके अधिकारों की मान्यता और सुधार की दिशा में महत्वपूर्ण कदम उठाए गए हैं-
2014 का निर्णय- भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को तीसरे लिंग के रूप में मान्यता दी और उनके मौलिक अधिकारों की सुरक्षा की बात कही.
2019 का ट्रांसजेंडर व्यक्ति (अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम- इस अधिनियम ने ट्रांसजेंडर के अधिकारों की सुरक्षा, कल्याणकारी उपायों और उनके खिलाफ भेदभाव को रोकने के लिए कानूनी ढांचा प्रदान किया.
हालांकि, इन कानूनी पहलों के बावजूद, ट्रांसजेंडर समुदाय को अभी भी शिक्षा, रोजगार, स्वास्थ्य सेवाओं और सामाजिक स्वीकृति के क्षेत्रों में काफी चुनौतियों का सामना करना पड़ता है.
समाज की दृष्टि और चुनौतियां
ट्रांसजेंडर समुदाय के प्रति समाज की दृष्टि मिश्रित रही है. एक ओर, कुछ लोग उन्हें सहानुभूति और समर्थन प्रदान करते हैं, वहीं दूसरी ओर कई लोग अज्ञानता, पूर्वाग्रह और भेदभाव के कारण इन्हें हेय की दृष्टि से देखते हैं. यह भेदभाव विभिन्न रूपों में प्रकट होता है-
शिक्षा और रोजगार में भेदभाव- कई ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को स्कूलों और कार्यस्थलों में अस्वीकार या उत्पीड़न का सामना करना पड़ता है.
स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुंच में बाधाएं- ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को उपयुक्त और संवेदनशील स्वास्थ्य सेवाएं प्राप्त करने में कठिनाई होती है.
सामाजिक बहिष्कार- परिवार और समाज से बहिष्कार के कारण, कई ट्रांसजेंडर व्यक्ति सामाजिक और आर्थिक रूप से हाशिए पर चले जाते हैं.
सकारात्मक परिवर्तन और उपलब्धियां
इन चुनौतियों के बावजूद, ट्रांसजेंडर समुदाय के कई सदस्यों ने विभिन्न क्षेत्रों में उल्लेखनीय उपलब्धियां हासिल की हैं-
गौरी सावंत- एक प्रमुख ट्रांसजेंडर कार्यकर्ता, जिन्होंने ट्रांसजेंडर अधिकारों के लिए आवाज उठाई है और सामाजिक कार्यों में सक्रिय हैं.
जोया खान- भारत की पहली ट्रांसजेंडर ऑपरेटेड बैंकिंग कॉरेस्पोंडेंट, जिन्होंने वित्तीय समावेशन में योगदान दिया है.
पद्मिनी प्रकाश- पहली ट्रांसजेंडर न्यूज एंकर, जिन्होंने मीडिया में अपनी पहचान बनाई है.
आंकड़े और रिपोर्ट
हाल ही में, विभिन्न संगठनों और सरकारी एजेंसियों ने ट्रांसजेंडर समुदाय की स्थिति पर रिपोर्ट जारी की हैं. इन रिपोर्टों के अनुसार-
शिक्षा- ट्रांसजेंडर छात्रों की स्कूल छोड़ने की दर उच्च है, मुख्यतः भेदभाव और उत्पीड़न के कारण.
रोजगार- ट्रांसजेंडर व्यक्तियों की बेरोजगारी दर सामान्य जनसंख्या की तुलना में अधिक है, और जो रोजगार में हैं, वे अक्सर कम वेतन और असुरक्षित कार्य स्थितियों का सामना करते हैं.
स्वास्थ्य- ट्रांसजेंडर व्यक्तियों में मानसिक स्वास्थ्य समस्याएं जैसे अवसाद और चिंता, अधिक पाई जाती हैं. यह सामाजिक बहिष्कार और भेदभाव का परिणाम हैं.
आगे का मार्ग
ट्रांसजेंडर समुदाय के पूर्ण समावेशन और समानता की दिशा में आगे बढ़ने के लिए निम्नलिखित कदम उठाए जा सकते हैं-
जागरूकता अभियान- समाज में ट्रांसजेंडर मुद्दों के प्रति जागरूकता बढ़ाने के लिए शिक्षा और मीडिया का उपयोग किया जाना चाहिए.
नीतिगत सुधार- शिक्षा, रोजगार और स्वास्थ्य सेवाओं में ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के लिए समावेशी नीतियां विकसित और लागू की जानी चाहिए.
सामाजिक स्वीकृति- परिवारों और समुदायों को ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को स्वीकार करने और समर्थन देने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए.
अंतर्राष्ट्रीय ट्रांसजेंडर दृश्यता दिवस हमें यह याद दिलाता है कि समाज की समृद्धि उसकी विविधता में निहित है. यह दिन न केवल ट्रांसजेंडर व्यक्तियों की दृश्यता का उत्सव है, बल्कि उनके अधिकारों, सम्मान और गरिमा की मान्यता का भी प्रतीक है.
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