कंदील की रोशनी में पढ़ने वाला बन गया ‘बिलिनेअर’
एक वक्त था कि स्कूल की फीस देने के लिए उनके पास पैसे नहीं थे। उनका बचपना काफी गरीबी में बीता। कंदील की रोशनी में वह पढ़ाई करते थे। श्याम वर्ण के होने के कारण उन्हें लोग काला कौवा कहकर चिढ़ाते थे। किस्मत को चमकाने के लिए उन्होंने फुटबॉल का भी सहारा लिया और मैदान पर अपना हुनर भी दिखाया, लेकिन चोट लग जाने के कारण फुटबॉल भी उनसे छूट गया। आगे चलकर उन्होंने सिंगापुर में एक आईटी कंपनी बनाई। आज उनकी कंपनी के पास हाई-प्रोफाइल ग्राहक हैं और उनकी कंपनी करोड़ों का व्यवसाय कर रही है। किसी परिकथा सी लगती यह कहानी है वरुण चंद्रन की।
वरुण चंद्रन आज एक बड़ी शख्सियत हैं। उनकी कंपनी के ग्राहकों में कई बहुराष्ट्रीय कंपनियां शामिल हैं। और ऐसा भी नहीं है कि जिस वरुण ने अपने जीवन में बस खुशी ही खुशी और तरक्की दर तरक्की ही देखी है। उन्होंने अपने जीवन में दुःख देखा है, शारीरिक और मानसिक पीड़ा को सहा है। गरीबी के थपेड़े खाये हैं और अपमान भी झेला है। लेकिन, मेहनत, प्रतिभा और उद्यम के बल पर अपनी कामयाबी की नई और अद्भुत कहानी भी उन्होंने लिखी है।
“कॉरपोरेट 360” के संस्थापक
“कॉरपोरेट 360” के संस्थापक और सीईओ वरुण चंद्रन कंपनी आज दुनिया-भर में कारोबार कर रही है और उसका टर्नओवर भी करोड़ों में हैं। बचपन में 25 रुपये की स्कूल फीस जमा न कर पाने की वजह से क्लास के बाहर खड़े कर दिए गए विजय चंद्रन आज करोड़ों रुपये के मालिक हैं और गरीबों को रोज़गार दिलाने में उनकी मदद कर रहे हैं।
केरल में हुआ था जन्म
वरुण चंद्रन का जन्म केरल के कोल्लम जिले में एक जंगल के पास बसे छोटे-से गाँव पाडम में हुआ। गाँव के ज्यादातर लोग गरीब और भूमिहीन किसान थे। वरुण के पिता भी किसान थे। वे धान के खेत में काम करते और जंगल में लकड़ियाँ काटते। वरुण की मां घर पर ही किराने की छोटी-सी दुकान भी चलातीं। बड़ी मुश्किल से वरुण के परिवार की गुज़र-बसर हो पाती। खेत और जंगल ही परिवार की रोज़ी-रोटी का जरिया था।
बेहद गरीबी में बीता बचपन
बचपन से ही वरुण ने खेत में काम करना शुरू कर दिया था। वो खेत में अपने पिता की मदद करते। छोटी-सी उम्र में ही वरुण जान गए थे कि किसान को किन-किन तकलीफों का सामना करना पड़ता है। घर में सुख-सुविधा को कोई सामान नहीं था, घर-परिवार चलाने से लिए ज़रूरी बुनियादी सामान थे।
मां-बाप चाहते थे बेटा पढ़ाई करके बड़ा आदमी बने
वरुण के माता-पिता ज्यादा पढ़े-लिखे नहीं थे। उन्होंने पांचवीं तक ही पढ़ाई की थी, लेकिन वे चाहते थे कि उनका बेटा वरुण खूब पढ़ाई-लिखाई करे। माता-पिता का सपना था कि वरुण उच्च शिक्षा हासिल कर नौकरी पर लग जाए और उसे रोज़ी रोटी के लिए उनकी तरह दिन-रात मेहनत न करनी पड़े।
मां-बाप ने शुरू से ही वरुण को अंग्रेजी स्कूल में पढ़ना चाहा। अपने सपने को साकार करने लिए माता-पिता ने वरुण का दाखिला गांव के करीब पाथनापुरम शहर के सेंट स्टीफेंस स्कूल में कराया।
कंदील की रोशनी में की पढ़ाई
स्कूल में दाखिला तो हो गया, पर मुश्किलें कम नहीं हुईं।घर में बिजली अक्सर गायब रहती और वरुण को कंदील की रोशनी में पढ़ना पड़ता। रात को वरुण जमीन पर ही सोया करते।इतना ही नहीं घर-परिवार चलाने के लिए वरुण के माता-पिता को क़र्ज़ भी लेना पड़ा। कर्ज चुकाने के लिए घर के सामान बेचने की भी नौबत आ गयी थी।
घर में हमेशा रुपयों की किल्लत रहती थी
घर में हमेशा रुपयों की किल्लत रहती और वरुण अपने स्कूल की फीस समय पर जमा नहीं कर पाते। समय पर फीस जमा न कर पाने की वजह से वरुण को पनिशमेंट के तौर पर कक्षा के बाहर खड़ा कर दिया जाता। वरुण को बहुत शर्मिदगी होती।
“काला कौआ” कहकर बुलाते थे
आगे चलकर जब वरुण का दाखिला बोर्डिंग स्कूल में कराया गया तब हालात और भी ख़राब हुए। बोर्डिंग स्कूल में वार्डेन बार-बार वरुण को अपमानित करते और उन्हें एहसास दिलाते कि वे गरीब हैं।वरुण के लिए सबसे बुरा पल वो होता जब कुछ साथी उन्हें श्याम वर्ण का होने की वजह से उन्हें “काला कौआ” कहकर बुलाते।
फुटबॉल को बनाया सहारा
बचपन में वरुण ने बहुत अपमान सहा। गरीबी की मार झेली। दुःख-दर्द सहे।इन्हीं हालात में वरुण ने अपनी समस्याओं और अपमान से ध्यान हटाने के लिए फुटबॉल को जरिया बनाया।चूंकि स्वभाव में ही मेहनत और लगन थी, वरुण ने स्कूल में खेल-कूद में खूब दिलचस्पी दिखाई।उन दिनों वरुण को फुटबॉल का शौक था। इसी वजह से ज़िंदगी में कामयाबी के लिए वरुण ने फुटबॉल का सहारा लेने की ठान ली।
प्लेग्राउंड में कई पदक जीते
वरुण ने हमेशा फुटबॉल ग्राउंड पर बहुत ही अच्छा प्रदर्शन किया। वरुण ने अपनी प्रतिभा और मेहनत के बल पर प्लेग्राउंड में कई पदक और पुरस्कार जीते। वरुण जल्द ही अपनी स्कूल की फुटबॉल टीम के कप्तान बन गये। उन्होंने कुशल नेतृत्व से स्कूल को इंटर-स्कूल टूर्नामेंट का विजेता बनाया। बहुत ही कम समय में टीचर भी जान गए थे कि वरुण एक होनहार बालक है और खेल के मैदान में उसका भविष्य उज्जवल है।
लोगों को वरुण में दिखा चैंपियन
फुटबॉल के मैदान में वरुण की कामयाबी के बाद से लोगों का उसके प्रति नजरिया और व्यवहार बदला। लोगों को एक गरीब परिवार से आये काले रंग के बालक में चैंपियन नज़र आने लगा।
आइएम विजयन से ली प्रेरणा
मैदान में वरुण की कामयाबी की वजह एक प्रेरणा थी। वरुण ने बचपन से ही मशहूर खिलाड़ी आइएम विजयन से प्रेरणा ली। वरुण के हीरो थे विजयन। विजयन उन दिनों केरल में बेहद लोकप्रिय थे। विजयन को देश का सबसे बेहतरीन फुटबॉल खिलाड़ी माना जाता था। वरुण सपना देखने लगे कि आगे चलकर वे भी विजयन की तरह ही बनेंगे।
विजयन इस वजह से भी वरुण के रोल मॉडल थे क्योंकि विजयन का जन्म एक गरीब परिवार में हुए था। विजयन बचपन में स्टेडियम में सोडा बेचते थे। जूते न होने की वजह से उन्होंने कई दिनों तक नंगे पांव ही फुटबॉल खेला था।
विजयन को भगवान की तरह पूजते थे
वरुण ने विजयन से प्रेरणा लेते रहने के लिए अपने कमरे में उनकी तस्वीर भी लगा ली थी और हर मैच वाले दिन वे अच्छे प्रदर्शन के लिए उनसे ही दुआ मांगते थे। एक मायने में वरुण ने विजयन को भगवान की तरह पूजना शुरू कर दिया था।
मिली स्कॉलरशिप
दसवीं की परीक्षा पास होने के बाद वरुण को केरल सरकार से फुटबॉल खेलने के लिए स्कालरशिप मिली। ये स्कॉलरशिप त्रिवेंद्रम के एक कॉलेज में खेल के लिए थी। कॉलेज के पहले साल में ही वरुण ने केरल राज्य की अंडर-१६ फुटबॉल टीम का प्रतिनिधित्व किया।
टूर्नामेंट खेलने वरुण को उत्तरप्रदेश जाना पड़ा। उत्तरप्रदेश जाने के लिए वरुण को साथी खिलाड़ियों के साथ ट्रेन का सफर करना पड़ा। ये सफर बहुत यादगार था क्योंकि वरुण के लिए ट्रेन से ये पहला सफर था। आगे चलकर वरुण केरल विश्वविद्यालय की फुटबॉल टीम के कप्तान बने और यहीं से उनका जीवन तेज़ी से बदलना शुरू हुआ।
सीखीं दूसरी भाषाएं
केरल राज्य और विश्वविद्यालय की टीमों के लिए खेलते हुए वरुण को कई नयी जगह जाने का मौका मिला। उन्हें नए-नए लोगों से मिलने का भी अवसर मिला। नए अनुभव मिले। जंगल के पास वाले गांव से काफी आगे बढ़कर शहरों में लोगों के रहन-सहन, आचार-विचार को जानने का मौका मिला। वरुण ने नए दोस्त बनाये और दूसरी भाषाएं भी सीखीं। एक मायने में वरुण ने अपनी ज़िंदगी को बदलना , उसे सुधारना-संवारना शुरू किया।
दुर्घटना का हुए शिकार
इसी दौरान एक बड़ी घटना हुई, जिसने वरुण की ज़िंदगी की दशा-दिशा को फिर से बदल दिया।एक दिन मैदान में फुटबॉल के अभ्यास के दौरान वरुण एक दुर्घटना का शिकार हुए। उनके कंधे की हड्डी टूट गयी। इलाज और आराम के लिए उन्हें अपने गांव लौटना पड़ा। चोट की वजह से फुटबॉल खेलना बंद हुआ और कॉलेज की पढ़ाई छूट गयी ।
फिर से वरुण मुसीबतों से घिर गए
फिर से वरुण मुसीबतों से घिर गए। घर की माली हालत अभी पूरी तरह से ठीक नहीं हुई थी। घर-परिवार चलाने के लिए काम करना ज़रूरी था। परेशानियों से उभरने के लिए वरुण का भी काम करना ज़रूरी हो गया। लेकिन, सवाल था-क्या काम किया जाय ?
मां ने वरुण की मदद की
इस सवाल का जवाब ढूंढने में मां ने वरुण की मदद की। मां ने अपने कंगन और तीन हजार रुपये वरुण को दिए और नौकरी या फिर कोई और काम ढूंढने की सलाह दी।
वरुण बैंगलोर चले आये
मां का आशीर्वाद लेकर वरुण बैंगलोर चले आये। बैंगलोर में वरुण के ही गाँव के एक ठेकेदार रहते थे। इसी ठेकेदार ने अपने मजदूरों के साथ वरुण के रहने का इंतजाम किया।
अंग्रेजी बनीं समस्या
अंग्रेजी न जानने की वजह से वरुण को बैंगलोर में नौकरी पाने में दिक्कतें पेश आने लगी। ग्रामीण इलाके से होना और अंग्रेजी न जानना, बड़ी अड़चन बनी। वरुण को अहसास हो गया कि नौकरी पाने के लिए अंग्रेजी सीखना बहुत ज़रूरी है।
सीखना शुरू की अंग्रेजी
उन्होंने अंग्रेजी सीखना शुरू किया। पहले डिक्शनरी खरीदी। फिर लाइब्रेरी जाना शुरू किया। अंग्रेजी किताबें पढ़ना और शब्द समझ में ना आने पर डिक्शनरी की मदद लेना शुरू किया। सिडनी शेल्डन और जेफरी आर्चर के उपन्यास भी पढ़े। अंग्रेजी पर पकड़ मजबूत करने और अच्छे से बोलना सीखने के लिए वरुण के अंग्रेजी के न्यूज़ चैनल सीएनएन को टीवी पर देखना शुरू किया।
रंग लाई मेहनत
वरुण ने इंटरनेट के ज़रिये नौकरी की तलाश भी जारी रखी। और एक दिन , वरुण की कोशिश और मेहनत रंग लायी।उन्हें एक कॉल सेंटर में नौकरी मिल गयी। कॉल सेंटर में काम करते हुए भी वरुण ने पढ़ाई जारी रखी।
इसी बीच उन्हें हैदराबाद की कंपनी ‘एंटिटी डेटा’ से नौकरी का ऑफर मिला। इस कंपनी में वरुण को बतौर बिजनेस डेवलपमेंट एग्जीक्यूटिव नौकरी मिली। इस कंपनी में वरुण ने खूब मेहनत की।
ऑरेकल कंपनी में मिली नौकरी
कंपनी के लोग वरुण की मेहनत और कामकाज के तरीके से इतना खुश और संतुष्ट हुए कि उन्हें अमेरिका भेजने का फैसला लिया गया।आगे चलकर वरुण ने सैप और फिर सिंगापुर में ऑरेकल कंपनी में नौकरी हासिल की।
उद्यमी बनाने की इच्छा पैदा हुई
अमेरिका की सिलिकॉन वैली में काम करते हुए वरुण के मन में नए-नए विचार आने लगे। उनमें एक नौकरीपेशा इंसान से उद्यमी बनाने की इच्छा पैदा हुई। वरुण ने कई बड़ी हस्तियों की जीवनियाँ पढ़ी हुई थीं।
इन जीवनियों से उन्हें ये पता चला था कि कई गरीब और मामूली लोगों ने भी पहले उद्यम शुरू करने का सपना देखा और सपने को कामयाब करने के लिए मेहनत की। मेहनत रंग लाई और आम इंसान आगे चलकर बड़े कारोबारी और उद्यमी बने थे। वरुण ने भी फैसला किया कि वे दूसरों की राह पर चलेंगे और और अपना खुद का उद्यम बनाएंगे।
शुरू हुआ 360
वरुण को लगता था कि सफल बनने के लिए उन्हें कुछ ऐसा करना होगा जिससे लोगों की समस्याएं सुलझ सकें और उनकी जिंदगी आसान बने।सिंगापुर में नौकरी के दौरान वरुण ने अपने नए सपनों को सच करने के लिए मेहनत करनी शुरू की।
वरुण ने अपना काम आसान करने के मकसद से एक सॉफ्टवेयर टूल की कोडिंग शुरू की। वरुण के साथियों को भी ये काम बहुत ही कारगर और फायदेमंद लगा। सभी इस कोडिंग से प्रभावित हुए। और, अपने काम का महत्त्व जानकार वरुण ने अपना खुद का वेंचर शुरू करने का फैसला किया। और ऐसे ही उनका पहला वेंचर कॉर्पोरेट 360 यानी सी 360 शुरू हुआ।
नए-नए उत्पाद विकसित करने शुरू किये
वरुण ने कंपनियों की मदद के लिए नए-नए उत्पाद विकसित करने शुरू किये। इन उत्पादों की वजह से कंपनियों को ये पता चलने लगा कि उनके उत्पादों को ग्राहक कब, कितना और कैसे इस्तेमाल करते हैं ? और बाजार में इन उत्पादों की मांग कैसी है ?
‘टेक सेल्स क्लाउड’
वरुण ने आगे बढ़ते हुए ‘टेक सेल्स क्लाउड’ नामक उत्पाद तैयार किया।यह एक ऐसा सेल्स और मार्केटिंग टूल है, जो बड़े डेटा सेट्स का इस तरह विश्लेषण, विवेचन और इस्तेमाल करता है जिससे कंपनियों की सेल्स और मार्केटिंग टीम आसानी से अपने टारगेट समझकर उन्हें चुन सकती हैं।
पेड सेर्विसेस भी उपलब्ध करानी शुरू की
वरुण ने शुरू में कुछ सालों तक अपने उत्पादों का कुछ कंपनियों के साथ परीक्षण किया और उन्हें दिखाया कि ये कंपनियों के लिए फायदेमंद साबित हो सकते हैं। अपने क्लाइंट्स को संतुष्ट करने के बाद वरुण ने उन्हें अपने उत्पाद बेचने शुरू किये और अपनी पेड सेर्विसेस भी उपलब्ध करानी शुरू की।
कुछ की मिनटों में बनी वेबसाइट
वरुण ने साल 2012 में सिंगापुर में अपने मकान से ही अपना उद्यम शुरू किया। उद्यम का पंजीकरण भी सिंगापुर में ही हुआ। पंजीकरण के कुछ की मिनटों बाद कंपनी की वेबसाइट भी बन गयी।
इसलिए रखा 360 नाम
कंपनी का नाम ‘कॉरपोरेट 360’ के पीछे भी एक ख़ास वहज है। कंपनियों की 360 डिग्री मार्केटिंग प्रोफाइल का जिम्मा लेने के मकसद से ही वरुण ने कंपनी का नाम ‘कॉरपोरेट 360’ रखा।
पहला ऑर्डर 500 डॉलर का था
वरुण की कंपनी को पहला ऑर्डर ब्रिटेन के एक ग्राहक से मिला था। 500 डॉलर का ऑर्डर था ये। यानी वरुण की कंपनी चल पड़ी थी।
ढाई लाख डॉलर की आमदनी
कंपनी कुछ यूं आगे बढ़ी कि पहले ही साल में उसने ढाई लाख डॉलर की आमदनी की।इसके बाद वरुण अपनी कंपनी को लगातार विस्तार देते चले गए। वरुण ने दुनिया के अलग-अलग शहरों के अलावा अपने गृह-राज्य में भी कांट्रैक्टर रखे।
एक वक्त था कि स्कूल की फीस देने के लिए उनके पास पैसे नहीं थे। उनका बचपना काफी गरीबी में बीता। कंदील की रोशनी में वह पढ़ाई करते थे। श्याम वर्ण के होने के कारण उन्हें लोग काला कौवा कहकर चीढ़ाते थे।
किस्मत को चमकाने के लिए उन्होंने फुटबॉल का भी सहारा लिया और मैदान पर अपना हुनर भी दिखाया, लेकिन चोट लग जाने के कारण फुटबॉल भी उनसे छूट गया। आगे चलकर उन्होंने सिंगापुर में एक आईटी कंपनी बनाई।
आज उनकी कंपनी के पास हाई-प्रोफाइल ग्राहक हैं और उनकी कंपनी करोड़ों का व्यवसाय कर रही है। किसी परिकथा सी लगती यह कहानी है वरुण चंद्रन की।
वरुण चंद्रन आज एक बड़ी शख्सियत हैं। उनकी कंपनी के ग्राहकों में कई बहुराष्ट्रीय कंपनियां शामिल हैं। और ऐसा भी नहीं है कि जिस वरुण ने अपने जीवन में बस खुशी ही खुशी और तरक्की दर तरक्की ही देखी है।
उन्होंने अपने जीवन में दुःख देखा है, शारीरिक और मानसिक पीड़ा को सहा है। गरीबी के थपेड़े खाये हैं और अपमान भी झेला है। लेकिन, मेहनत, प्रतिभा और उद्यम के बल पर अपनी कामयाबी की नई और अद्भुत कहानी भी उन्होंने लिखी है।
“कॉरपोरेट 360” के संस्थापक
“कॉरपोरेट 360” के संस्थापक और सीईओ वरुण चंद्रन कंपनी आज दुनिया-भर में कारोबार कर रही है और उसका टर्नओवर भी करोड़ों में हैं। बचपन में 25 रुपये की स्कूल फीस जमा न कर पाने की वजह से क्लास के बाहर खड़े कर दिए गए विजय चंद्रन आज करोड़ों रुपये के मालिक हैं और गरीबों को रोज़गार दिलाने में उनकी मदद कर रहे हैं।
केरल में हुआ था जन्म
वरुण चंद्रन का जन्म केरल के कोल्लम जिले में एक जंगल के पास बसे छोटे-से गाँव पाडम में हुआ। गाँव के ज्यादातर लोग गरीब और भूमिहीन किसान थे। वरुण के पिता भी किसान थे। वे धान के खेत में काम करते और जंगल में लकड़ियाँ काटते। वरुण की मां घर पर ही किराने की छोटी-सी दुकान भी चलातीं। बड़ी मुश्किल से वरुण के परिवार की गुज़र-बसर हो पाती। खेत और जंगल ही परिवार की रोज़ी-रोटी का जरिया था।
बेहद गरीबी में बीता बचपन
बचपन से ही वरुण ने खेत में काम करना शुरू कर दिया था। वो खेत में अपने पिता की मदद करते। छोटी-सी उम्र में ही वरुण जान गए थे कि किसान को किन-किन तकलीफों का सामना करना पड़ता है। घर में सुख-सुविधा को कोई सामान नहीं था, घर-परिवार चलाने से लिए ज़रूरी बुनियादी सामान थे।
मां-बाप चाहते थे बेटा पढ़ाई करके बड़ा आदमी बने
वरुण के माता-पिता ज्यादा पढ़े-लिखे नहीं थे। उन्होंने पांचवीं तक ही पढ़ाई की थी, लेकिन वे चाहते थे कि उनका बेटा वरुण खूब पढ़ाई-लिखाई करे। माता-पिता का सपना था कि वरुण उच्च शिक्षा हासिल कर नौकरी पर लग जाए और उसे रोज़ी रोटी के लिए उनकी तरह दिन-रात मेहनत न करनी पड़े।
मां-बाप ने शुरू से ही वरुण को अंग्रेजी स्कूल में पढ़ना चाहा। अपने सपने को साकार करने लिए माता-पिता ने वरुण का दाखिला गांव के करीब पाथनापुरम शहर के सेंट स्टीफेंस स्कूल में कराया।
कंदील की रोशनी में की पढ़ाई
स्कूल में दाखिला तो हो गया, पर मुश्किलें कम नहीं हुईं।घर में बिजली अक्सर गायब रहती और वरुण को कंदील की रोशनी में पढ़ना पड़ता। रात को वरुण जमीन पर ही सोया करते।इतना ही नहीं घर-परिवार चलाने के लिए वरुण के माता-पिता को क़र्ज़ भी लेना पड़ा। कर्ज चुकाने के लिए घर के सामान बेचने की भी नौबत आ गयी थी।
घर में हमेशा रुपयों की किल्लत रहती थी
घर में हमेशा रुपयों की किल्लत रहती और वरुण अपने स्कूल की फीस समय पर जमा नहीं कर पाते। समय पर फीस जमा न कर पाने की वजह से वरुण को पनिशमेंट के तौर पर कक्षा के बाहर खड़ा कर दिया जाता। वरुण को बहुत शर्मिदगी होती।
“काला कौआ” कहकर बुलाते थे
आगे चलकर जब वरुण का दाखिला बोर्डिंग स्कूल में कराया गया तब हालात और भी ख़राब हुए। बोर्डिंग स्कूल में वार्डेन बार-बार वरुण को अपमानित करते और उन्हें एहसास दिलाते कि वे गरीब हैं।वरुण के लिए सबसे बुरा पल वो होता जब कुछ साथी उन्हें श्याम वर्ण का होने की वजह से उन्हें “काला कौआ” कहकर बुलाते।
फुटबॉल को बनाया सहारा
बचपन में वरुण ने बहुत अपमान सहा। गरीबी की मार झेली। दुःख-दर्द सहे।इन्हीं हालात में वरुण ने अपनी समस्याओं और अपमान से ध्यान हटाने के लिए फुटबॉल को जरिया बनाया।
चूंकि स्वभाव में ही मेहनत और लगन थी, वरुण ने स्कूल में खेल-कूद में खूब दिलचस्पी दिखाई।उन दिनों वरुण को फुटबॉल का शौक था। इसी वजह से ज़िंदगी में कामयाबी के लिए वरुण ने फुटबॉल का सहारा लेने की ठान ली।
प्लेग्राउंड में कई पदक जीते
वरुण ने हमेशा फुटबॉल ग्राउंड पर बहुत ही अच्छा प्रदर्शन किया। वरुण ने अपनी प्रतिभा और मेहनत के बल पर प्लेग्राउंड में कई पदक और पुरस्कार जीते। वरुण जल्द ही अपनी स्कूल की फुटबॉल टीम के कप्तान बन गये। उन्होंने कुशल नेतृत्व से स्कूल को इंटर-स्कूल टूर्नामेंट का विजेता बनाया। बहुत ही कम समय में टीचर भी जान गए थे कि वरुण एक होनहार बालक है और खेल के मैदान में उसका भविष्य उज्जवल है।
लोगों को वरुण में दिखा चैंपियन
फुटबॉल के मैदान में वरुण की कामयाबी के बाद से लोगों का उसके प्रति नजरिया और व्यवहार बदला। लोगों को एक गरीब परिवार से आये काले रंग के बालक में चैंपियन नज़र आने लगा।
आइएम विजयन से ली प्रेरणा
मैदान में वरुण की कामयाबी की वजह एक प्रेरणा थी। वरुण ने बचपन से ही मशहूर खिलाड़ी आइएम विजयन से प्रेरणा ली। वरुण के हीरो थे विजयन। विजयन उन दिनों केरल में बेहद लोकप्रिय थे। विजयन को देश का सबसे बेहतरीन फुटबॉल खिलाड़ी माना जाता था।
वरुण सपना देखने लगे कि आगे चलकर वे भी विजयन की तरह ही बनेंगे। विजयन इस वजह से भी वरुण के रोल मॉडल थे क्योंकि विजयन का जन्म एक गरीब परिवार में हुए था। विजयन बचपन में स्टेडियम में सोडा बेचते थे। जूते न होने की वजह से उन्होंने कई दिनों तक नंगे पांव ही फुटबॉल खेला था।
विजयन को भगवान की तरह पूजते थे
वरुण ने विजयन से प्रेरणा लेते रहने के लिए अपने कमरे में उनकी तस्वीर भी लगा ली थी और हर मैच वाले दिन वे अच्छे प्रदर्शन के लिए उनसे ही दुआ मांगते थे। एक मायने में वरुण ने विजयन को भगवान की तरह पूजना शुरू कर दिया था।
मिली स्कॉलरशिप
दसवीं की परीक्षा पास होने के बाद वरुण को केरल सरकार से फुटबॉल खेलने के लिए स्कालरशिप मिली। ये स्कॉलरशिप त्रिवेंद्रम के एक कॉलेज में खेल के लिए थी। कॉलेज के पहले साल में ही वरुण ने केरल राज्य की अंडर-१६ फुटबॉल टीम का प्रतिनिधित्व किया।
टूर्नामेंट खेलने वरुण को उत्तरप्रदेश जाना पड़ा। उत्तरप्रदेश जाने के लिए वरुण को साथी खिलाड़ियों के साथ ट्रेन का सफर करना पड़ा। ये सफर बहुत यादगार था क्योंकि वरुण के लिए ट्रेन से ये पहला सफर था। आगे चलकर वरुण केरल विश्वविद्यालय की फुटबॉल टीम के कप्तान बने और यहीं से उनका जीवन तेज़ी से बदलना शुरू हुआ।
सीखीं दूसरी भाषाएं
केरल राज्य और विश्वविद्यालय की टीमों के लिए खेलते हुए वरुण को कई नयी जगह जाने का मौका मिला। उन्हें नए-नए लोगों से मिलने का भी अवसर मिला। नए अनुभव मिले। जंगल के पास वाले गांव से काफी आगे बढ़कर शहरों में लोगों के रहन-सहन, आचार-विचार को जानने का मौका मिला। वरुण ने नए दोस्त बनाये और दूसरी भाषाएं भी सीखीं। एक मायने में वरुण ने अपनी ज़िंदगी को बदलना , उसे सुधारना-संवारना शुरू किया।
दुर्घटना का हुए शिकार
इसी दौरान एक बड़ी घटना हुई, जिसने वरुण की ज़िंदगी की दशा-दिशा को फिर से बदल दिया।एक दिन मैदान में फुटबॉल के अभ्यास के दौरान वरुण एक दुर्घटना का शिकार हुए। उनके कंधे की हड्डी टूट गयी। इलाज और आराम के लिए उन्हें अपने गांव लौटना पड़ा। चोट की वजह से फुटबॉल खेलना बंद हुआ और कॉलेज की पढ़ाई छूट गयी ।
फिर से वरुण मुसीबतों से घिर गए
फिर से वरुण मुसीबतों से घिर गए। घर की माली हालत अभी पूरी तरह से ठीक नहीं हुई थी। घर-परिवार चलाने के लिए काम करना ज़रूरी था। परेशानियों से उभरने के लिए वरुण का भी काम करना ज़रूरी हो गया। लेकिन, सवाल था-क्या काम किया जाय ?
मां ने वरुण की मदद की
इस सवाल का जवाब ढूंढने में मां ने वरुण की मदद की। मां ने अपने कंगन और तीन हजार रुपये वरुण को दिए और नौकरी या फिर कोई और काम ढूंढने की सलाह दी।
वरुण बैंगलोर चले आये
मां का आशीर्वाद लेकर वरुण बैंगलोर चले आये। बैंगलोर में वरुण के ही गाँव के एक ठेकेदार रहते थे। इसी ठेकेदार ने अपने मजदूरों के साथ वरुण के रहने का इंतजाम किया।
अंग्रेजी बनीं समस्या
अंग्रेजी न जानने की वजह से वरुण को बैंगलोर में नौकरी पाने में दिक्कतें पेश आने लगी। ग्रामीण इलाके से होना और अंग्रेजी न जानना, बड़ी अड़चन बनी। वरुण को अहसास हो गया कि नौकरी पाने के लिए अंग्रेजी सीखना बहुत ज़रूरी है।
सीखना शुरू की अंग्रेजी
उन्होंने अंग्रेजी सीखना शुरू किया। पहले डिक्शनरी खरीदी। फिर लाइब्रेरी जाना शुरू किया। अंग्रेजी किताबें पढ़ना और शब्द समझ में ना आने पर डिक्शनरी की मदद लेना शुरू किया। सिडनी शेल्डन और जेफरी आर्चर के उपन्यास भी पढ़े। अंग्रेजी पर पकड़ मजबूत करने और अच्छे से बोलना सीखने के लिए वरुण के अंग्रेजी के न्यूज़ चैनल सीएनएन को टीवी पर देखना शुरू किया।
रंग लाई मेहनत
वरुण ने इंटरनेट के ज़रिये नौकरी की तलाश भी जारी रखी। और एक दिन , वरुण की कोशिश और मेहनत रंग लायी।उन्हें एक कॉल सेंटर में नौकरी मिल गयी। कॉल सेंटर में काम करते हुए भी वरुण ने पढ़ाई जारी रखी। इसी बीच उन्हें हैदराबाद की कंपनी ‘एंटिटी डेटा’ से नौकरी का ऑफर मिला। इस कंपनी में वरुण को बतौर बिजनेस डेवलपमेंट एग्जीक्यूटिव नौकरी मिली। इस कंपनी में वरुण ने खूब मेहनत की।
ऑरेकल कंपनी में मिली नौकरी
कंपनी के लोग वरुण की मेहनत और कामकाज के तरीके से इतना खुश और संतुष्ट हुए कि उन्हें अमेरिका भेजने का फैसला लिया गया।आगे चलकर वरुण ने सैप और फिर सिंगापुर में ऑरेकल कंपनी में नौकरी हासिल की।
उद्यमी बनाने की इच्छा पैदा हुई
अमेरिका की सिलिकॉन वैली में काम करते हुए वरुण के मन में नए-नए विचार आने लगे। उनमें एक नौकरीपेशा इंसान से उद्यमी बनाने की इच्छा पैदा हुई। वरुण ने कई बड़ी हस्तियों की जीवनियाँ पढ़ी हुई थीं।
इन जीवनियों से उन्हें ये पता चला था कि कई गरीब और मामूली लोगों ने भी पहले उद्यम शुरू करने का सपना देखा और सपने को कामयाब करने के लिए मेहनत की। मेहनत रंग लाई और आम इंसान आगे चलकर बड़े कारोबारी और उद्यमी बने थे। वरुण ने भी फैसला किया कि वे दूसरों की राह पर चलेंगे और और अपना खुद का उद्यम बनाएंगे।
शुरू हुआ 360
वरुण को लगता था कि सफल बनने के लिए उन्हें कुछ ऐसा करना होगा जिससे लोगों की समस्याएं सुलझ सकें और उनकी जिंदगी आसान बने।सिंगापुर में नौकरी के दौरान वरुण ने अपने नए सपनों को सच करने के लिए मेहनत करनी शुरू की।
Also read : पाना चाहते हैं सफलता तो अपनाएं ये 6 तरीके
वरुण ने अपना काम आसान करने के मकसद से एक सॉफ्टवेयर टूल की कोडिंग शुरू की। वरुण के साथियों को भी ये काम बहुत ही कारगर और फायदेमंद लगा।
सभी इस कोडिंग से प्रभावित हुए। और, अपने काम का महत्त्व जानकार वरुण ने अपना खुद का वेंचर शुरू करने का फैसला किया। और ऐसे ही उनका पहला वेंचर कॉर्पोरेट 360 यानी सी 360 शुरू हुआ।
नए-नए उत्पाद विकसित करने शुरू किये
वरुण ने कंपनियों की मदद के लिए नए-नए उत्पाद विकसित करने शुरू किये। इन उत्पादों की वजह से कंपनियों को ये पता चलने लगा कि उनके उत्पादों को ग्राहक कब, कितना और कैसे इस्तेमाल करते हैं ? और बाजार में इन उत्पादों की मांग कैसी है ?
‘टेक सेल्स क्लाउड’
वरुण ने आगे बढ़ते हुए ‘टेक सेल्स क्लाउड’ नामक उत्पाद तैयार किया।यह एक ऐसा सेल्स और मार्केटिंग टूल है, जो बड़े डेटा सेट्स का इस तरह विश्लेषण, विवेचन और इस्तेमाल करता है जिससे कंपनियों की सेल्स और मार्केटिंग टीम आसानी से अपने टारगेट समझकर उन्हें चुन सकती हैं।
पेड सेर्विसेस भी उपलब्ध करानी शुरू की
वरुण ने शुरू में कुछ सालों तक अपने उत्पादों का कुछ कंपनियों के साथ परीक्षण किया और उन्हें दिखाया कि ये कंपनियों के लिए फायदेमंद साबित हो सकते हैं। अपने क्लाइंट्स को संतुष्ट करने के बाद वरुण ने उन्हें अपने उत्पाद बेचने शुरू किये और अपनी पेड सेर्विसेस भी उपलब्ध करानी शुरू की।
कुछ की मिनटों में बनी वेबसाइट
वरुण ने साल 2012 में सिंगापुर में अपने मकान से ही अपना उद्यम शुरू किया। उद्यम का पंजीकरण भी सिंगापुर में ही हुआ। पंजीकरण के कुछ की मिनटों बाद कंपनी की वेबसाइट भी बन गयी।
इसलिए रखा 360 नाम
कंपनी का नाम ‘कॉरपोरेट 360’ के पीछे भी एक ख़ास वहज है। कंपनियों की 360 डिग्री मार्केटिंग प्रोफाइल का जिम्मा लेने के मकसद से ही वरुण ने कंपनी का नाम ‘कॉरपोरेट 360’ रखा।
पहला ऑर्डर 500 डॉलर का था
वरुण की कंपनी को पहला ऑर्डर ब्रिटेन के एक ग्राहक से मिला था। 500 डॉलर का ऑर्डर था ये। यानी वरुण की कंपनी चल पड़ी थी।
ढाई लाख डॉलर की आमदनी
कंपनी कुछ यूं आगे बढ़ी कि पहले ही साल में उसने ढाई लाख डॉलर की आमदनी की।इसके बाद वरुण अपनी कंपनी को लगातार विस्तार देते चले गए। वरुण ने दुनिया के अलग-अलग शहरों के अलावा अपने गृह-राज्य में भी कांट्रैक्टर रखे।
‘ऑपरेशंस सेंटर’ अपने गांव में
वरुण ने अपनी कंपनी का ‘ऑपरेशंस सेंटर’ अपने गांव के पास पाथनापुरम में स्थापित किया, जहां स्थानीय लोगों को भी रोजगार दिया गया।आज बड़ी बड़ी बहु राष्ट्रीय कंपनियां वरुण की क्लाइंट हैं। लगभग 10 लाख डॉलर की कंपनी बन चुकी है वरुण की कॉरपोरेट 360।
वरुण का नया लक्ष्य
वरुण ने नया लक्ष्य है कि अपनी कंपनी कॉरपोरेट 360 का साल 2017 तक एक करोड़ डॉलर की कंपनी बनाया जाय। उन्हें पूरा भरोसा भी है कि वे अपने नए ल्क्ष्य को भी पाने में कामयाब होंगे।
वरुण ने अपनी कंपनी का ‘ऑपरेशंस सेंटर’ अपने गांव के पास पाथनापुरम में स्थापित किया, जहां स्थानीय लोगों को भी रोजगार दिया गया।आज बड़ी बड़ी बहु राष्ट्रीय कंपनियां वरुण की क्लाइंट हैं। लगभग 10 लाख डॉलर की कंपनी बन चुकी है वरुण की कॉरपोरेट 360।
वरुण का नया लक्ष्य
वरुण ने नया लक्ष्य है कि अपनी कंपनी कॉरपोरेट 360 का साल 2017 तक एक करोड़ डॉलर की कंपनी बनाया जाय। उन्हें पूरा भरोसा भी है कि वे अपने नए ल्क्ष्य को भी पाने में कामयाब होंगे।