पाक के लिए भूख और प्यास का तोहफा है ‘सिंधु कास्केड’
उत्तरी सिंधु नदी कास्केड में चीन के सहयोग से बनने वाले पांच बांध 22,000 मेगावाट तक बिजली पैदा कर सकते हैं, जो बिजली की कमी से जूझ रहे पाकिस्तान के लिए किसी वरदान से कम नहीं होगा, लेकिन ये बांध गाद के बहाव को रोक देंगे, जो निचले इलाकों में कृषि की जीवन रेखा है। यही नहीं, इन बांधों के निर्माण से गैर मानसून मौसम में पाकिस्तान के पंजाब तथा सिंध प्रांतों में सिंधु नदी का जल प्रवाह भी रुक सकता है।
पीने के पानी पर संकट
जलवायु परिवर्तन के कारण नदियों में जल बहाव अनियमित हो चला है। पाकिस्तान की कृषि, फैक्ट्रियों तथा घरों में पानी की आपूर्ति सिंधु बेसिन की नदियों पर ही निर्भर है। पानी की उपलब्धता पहले से ही प्रति व्यक्ति प्रति वर्ष 1,000 घनमीटर के स्तर से नीचे है। वैश्विक मानदंड के मुताबिक संयुक्त राष्ट्र की एजेंसियां ऐसी स्थिति को पानी की कमी वाला देश करार देती हैं।
ऐसी स्थिति में भोजन, ऊर्जा तथा पानी पर एक साथ गौर करना महत्वपूर्ण है, जबकि पाकिस्तान के योजनकार केवल ऊर्जा पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं। चीन सिंधु कास्केड के लिए पाकिस्तान को 50 अरब डॉलर प्रदान कर रहा है। बीजिंग में हालिया बेल्ट एंड रोड सम्मेलन के दौरान इसके लिए एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किया गया है। चीन का राष्ट्रीय ऊर्जा प्रशासन (एनईए) इस वित्तपोषण पर नजर रखेगा। चीन का थ्री गॉर्जेज कॉरपोरेशन इन पांचों बांधों का निर्माण करेगा, जो कास्केड बनाएगा।
वन बेल्ट वन रोड का हिस्सा
यह रकम पाकिस्तान को वन बेल्ट वन रोड (ओबीओआर) का हिस्सा चीन पाकिस्तान आर्थिक गलियारा (सीपीईसी) की अवसंरचना के निर्माण के लिए दिए जाने वाले 57 अरब डॉलर कोष के अतिरिक्त है। ढांचागत परियोजनाओं में कोयला संचालित विद्युत केंद्र तथा गलियारे के अंत में अरब सागर में ग्वादर बंदरगाह का निर्माण करना है।
कास्केड की योजना पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर स्थित गिलगित-बाल्टिस्तान से लेकर इस्लामाबाद के निकट मौजूदा तारबेला बांध तक है। बांध का ऊपरी हिस्सा पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर के स्कार्दू के निकट बुंजी में बनाने की है। 7,100 मेगावाट बुंजी पनबिजली परियोजना को पाकिस्तान के जल एवं विद्युत विकास प्राधिकार (डब्ल्यूएपीडीए) ने रन-ऑफ-द-रिवर (आरओआर) करार दिया है।
लेकिन परियोजना की जानकारी देने वाले प्रोमोशनल वीडियो (पूरे कास्केड के लिए) में यह कहा गया है कि इसमें एक जलाशय होगा, जो सिंधु के 22 किलोमीटर के दायरे में फैला होगा और गिलगित व स्कार्दू के बीच 12 किलोमीटर सड़क के दायरे को जलप्लावित कर देगा। इसलिए इस विवरण के बावजूद यह आरओआर परियोजना नहीं हो सकती।
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कास्केड में अगला बांध दियामेर-बाशा है, जिसमें 64 करोड़ एकड़ फुट (एमएएफ) जल संग्रह की योजना है और इससे 4,500 मेगावाट बिजली उत्पन्न होगी। दियामेर-बाशा बांध को डब्ल्यूएपीडीए बढ़ावा दे रहा है। इस बांध के निर्माण में 15 अरब डॉलर का खर्च आएगा। विश्व बैंक तथा एशियाई विकास बैंक ने पाकिस्तान के योजनकारों को छोटे बांध बनाने की सलाह दी है, जबकि अब चीन ने वित्तपोषण का वादा किया है।
कास्केड में तीसरा बांध
दियामेर-बाशा बांध के बाद कास्केड में तीसरा बांध 4,320 मेगावाट की क्षमता वाला डासू पनबिजली परियोजना होगी। इससे काराकोरम राजमार्ग का 52 किलोमीटर का दायरा जलप्लावित हो जाएगा।
और इसके ठीक बाद 2,200 मेगावाट के पाटन पनबिजली परियोजना के निर्माण की योजना है, जिसके लिए 35 किलोमीटर लंबे जलाशय का निर्माण किया जाएगा। कास्केड में पांचवां बांध 4,000 मेगावाट की क्षमता का थाकोट पनबिजली परियोजना है। इन पांचों परियोजनाओं से कुल 22,000 मेगावाट बिजली का उत्पादन होगा।
साल 2015 में चीन के थ्री गॉर्जेज कॉरपोरेशन ने कहा था कि वह पाकिस्तान में पनबिजली परियोजनाओं को 50 अरब डॉलर की वित्तीय मदद के साथ उसका हिस्सा बनना चाहता है। सच तो यही है कि सिंधु कास्केड के निर्माण से पाकिस्तान में पानी तथा भोजन की किल्लत होगी। ऐसे हालात में ज्यादा से ज्यादा संख्या में बांधों का निर्माण खतरना दूरदर्शिता प्रतीत होती है।
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