कांग्रेस के ‘त्रिदेव’ बन इन नेताओं ने रोका बीजेपी का ‘विजयरथ’

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कर्नाटक के पावर गेम में शनिवार को जब येदियुरप्पा की बीजेपी(BJP) सरकार महज दो दिनों में ही गिर गई तो कांग्रेस कैंप में बस 3 मस्कीटियर्स की ही चर्चा थी। तीन नेता, अभिषेक मनु सिंघवी, गुलाम नबी आजाद और अशोक गहलोत ने कर्नाटक की सत्ता में काबिज होने के लिए आक्रामक रुख अख्तियार कर चुकी बीजेपी को रोका बल्कि चुनावी लड़ाई में पिछड़ने के बावजूद पार्टी को आगे कर दिया।

इन्हें दी गई कर्नाटक की कमान

15 मई को कर्नाटक रिजल्ट के रुझान आने शुरू होने के साथ ही कांग्रेस नेतृत्व ने गुलाम नबी आजाद और अशोक गहलोत को दिल्ली से रवाना कर दिया। इन नेताओं को नेतृत्व का स्पष्ट निर्देश था कि त्रिशंकु विधानसभा की स्थिति में उन्हें मोर्चा संभालना है। जैसे ही त्रिशंकु विधानसभा की तस्वीर साफ हुई इन दोनों नेताओं ने बिन समय गंवाए पूर्व पीएम देवगौड़ा के बेटे कुमारस्वामी को सीएम पद का ऑफर देते हुए जेडीएस के साथ चुनाव बाद गठबंधन को अंजाम दे दिया।

104 सीटें जीती भाजपा

ऐसा तब हुआ जबकि बीजेपी बहुमत के जादुई आंकड़े (फिलहाल 111) से महज 7 सीटें पीछे थी। कांग्रेस के ये दोनों ‘ओल्ड गार्ड’ यहीं नहीं रुके। उन्होंने सूबे के राज्यपाल और बीजेपी के खिलाफ ‘मर्डर ऑफ डिमॉक्रेसी’ कैंपेन चलाकर पर्सेप्शन गेम का भी नेतृत्व किया। दोनों के ऐक्टिव मोड ने भगवा पार्टी पर लगातार दबाव बनाए रखने का काम किया।

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इतना सब करने के दौरान कांग्रेस की टॉप लीडरशिप के इन 2 नामों ने अपने विधायकों को बीजेपी के संपर्क में आकर टूटने से भी बचाने में कामयाबी हासिल की। इन सबमें कर्नाटक कांग्रेस के कद्दावर नेता डीके शिवकुमार ने एक बार फिर अपनी ताकत दिखाई। इगल्टन रिजॉर्ट में जैसे उन्होंने 2017 में गुजरात राज्यसभा के दौरान वहां के कांग्रेसी विधायकों को सुरक्षित रखा, वही भूमिका इस बार उन्होंने कर्नाटक के रण में भी निभाई।

सुप्रीम कोर्ट ने किया हस्तक्षेप

हालांकि एक बात पर आज सभी सहमत हैं कि वह सुप्रीम कोर्ट का हस्तक्षेप ही था जिसने न केवल येदियुरप्पा सरकार को बहुमत साबित करने के लिए मिले वक्त को कम किया बल्कि यह भी सुनिश्चित किया कि पूरी प्रक्रिया में पारदर्शिता बरती जाए। इस संदर्भ में कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और ऐडवोकेट अभिषेक मनु सिंघवी की भूमिका अहम रही और वह पार्टी के लिए थर्ड मस्कीटियर बने। वह सिंघवी ही थे जिन्होंने कर्नाटक के राज्यपाल के फैसले के खिलाफ आधीरात सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया।

राज्यपाल ने दिया था बीजेपी को सरकार बनाने का न्योता

सिंघवी ने न्यायपालिका की मदद उस परिस्थिति में हासिल की जब चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा के खिलाफ अवमानना प्रस्ताव लाकर कांग्रेस अपनी काफी फजीहत करा चुकी थी। सिंघवी ने न केवल केस लड़ा बल्कि अपने कौशल से सुप्रीम कोर्ट को इस राजनीतिक मामले में हस्तक्षेप के लिए राजी करने में भी सफल हुए। आपको बता दें कि पोस्ट पोल अलायंस के रूप में कांग्रेस (78 सीटें) और जेडीएस प्लस (38 सीटें) ने बहुमत होने का दावा किया था लेकिन राज्यपाल ने सबसे बड़े दल के नेता के रूप में बीजेपी के येदियुरप्पा को सरकार बनाने के लिए आमंत्रित किया।

राज्यपाल ने येदियुरप्पा को बहुमत साबित करने के लिए 15 दिनों का समय भी दे दिया। हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में हस्तक्षेप किया। गुरुवार को येदियुरप्पा के शपथ ग्रहण से पहले कांग्रेस सर्वोच्च न्यायालय के दर पर पहुंची थी और कोर्ट ने शुक्रवार को फैसला सुनाते हुए शनिवार शाम 4 बजे फ्लोर टेस्ट कराने का आदेश दे दिया। बीजेपी की तरफ से अधिक समय की मांग को सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया। माना जाता है कि यह उन बड़ी वजहों में से एक रहा जिसकी वजह से बीजेपी कर्नाटक में नंबर गेम में पिछड़ गई।

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