कुशासन और बिहार चुनाव
बिहार के आगामी विधानसभा चुनाव की तैयारियों में सभी राजनीतिक पार्टियों ने अपनी कमर कस ली है। अक्टूबर में 243 सीटों पर होने वाले विधानसभा चुनाव में नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव में कड़ा मुक़ाबला हो सकता है। मुक़ाबले तो होंगे लेकिन मतदाताओं को हिसाब लगाना पड़ेगा।
नीतीश कुमार की सरकार को ऐसे तो कई आलोचकों का सामना करना पड़ा है लेकिन इनके डेवलपमेंटल प्लान को पछाड़ने वालों की संख्या काफी काम है। स्ट्रांग अपोजिशन नहीं होने के कारण आज नीतीश कुमार बिहार में मलाई काट रहे है। लॉकडाउन के शुरूआती महीनों में जब RJD से मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार और पूर्व मुख्यमंत्री के बड़े बेटे तेजस्वी यादव किन्ही कारणों से बिहार में नहीं थे, तो उनकी अनुपस्थिति को भी एक बड़ा मुद्दा बनाकर कर सरकार ने अपनी बाज़ी खेल ली।
नीतीश कुमार की राइट डिशन्स-
बिहार में अभी सरकार के प्रति एंटी-गवर्नमेंट सेंटीमेंट्स नहीं पनप रहे है जबकि बेरोज़गारी का ये आलम है कि लोग अपना पेट भी नहीं भर पा रहे है। लोगों का मानना है कि उनकी उस हालत के ज़िम्मेदार सरकार नहीं है बल्कि लोकल एडमिनिस्ट्रेशन है जोकि लोगों तक बेनिफिट्स नहीं पहुंचाना चाहती है।
सरकार ने करीब 3 महीनों के लिए 1000 रुपये हर गरीब को मिले इसके लिए फंड रिलीज़ किया था लेकिन लोगों का मानना है कि अधिकारियों के भ्रष्टाचार ने सारी सुविधाओं को रोक के रखा है।
इतना ही नहीं कांग्रेस और RJD के बीच हो रही अनबन का भी फायदा नीतीश सरकार उठा रही है। दोनों ही पार्टियों के कार्यकर्ताओं के बीच में चल रहे ब्लैम-गेम का पूरा फायदा उठा रही है सरकार।
किन चीज़ों में फेल हो गए हो गए नीतीश?-
स्वास्थ्य के बुनियादी ढांचे के कुप्रबंधन से कई लोगों के मन में यह बात आ रही है कि सरकार इस अभूतपूर्व संकट से कैसे निपट पाएगी। कोरोना महामारी की लड़ाई में इनकी सरकार में ढीलापन दिखा और जब 26 मार्च को नालंदा यूनिवर्सिटी के रेजिडेंट डॉक्टर ने प्रधानमंत्री को खत लिख कर बिहार में हेल्थ इंफ्रास्ट्रक्चर के खस्ते हाल के बारे में बताया तब लोगों के बीच भी असहमति की हवा उठ पड़ी थी। और इसी कड़ी को आगे बढ़ते हुए जब नालंदा मेडिकल कॉलेज ले 83 डॉक्टर कोरोना पॉजिटिव निकले तब लोगों के होश उड़ गए थे।
एक दूसरा मोर्चा भी है जिसपर नीतिश सरकार को आलोचनों के बाढ़ से गुज़ारना पड़ा था। कोरोना के टेस्टिंग नंबर्स ने ये दिखा दिया था कि सरकार इस महामारी को बहुत हल्के में ले रही है। 15 मार्च को 10 करोड़ से ज़्यादा आबादी वाले प्रदेश में मात्र 43,000 कुछ टेस्ट हुए थे।
कोरोना के अलावा भी कई ऐसी जगहें है जहां पर सरकार की नाकामयाबी ज़्यादा दिखती है। आपको याद होगा कि 2015 में वापस से मुख्यमंत्री चुने जाने के बाद नीतीश कुमार ने बिहार से बेरोज़गारी को हटाने का वादा किया था लेकिन फिलहाल में बिहार में बेरोज़गारी का रेट 46.6 प्रतिशत है, पिछले पांच सालों में 31 परसेंट का राइज़ दिखा। इन्हीं आकड़ों का हवाला देते हुए तेजस्वी यादव ने इनकी सरकार को आड़े-हाथों भी लिया था।
हांलाकि लिटरेसी रेट में 20 परसेंट की बढ़त तो आई है लेकिन तब भी सरकार होने वादे पर खरा नहीं उतर पाई है। पिछले चुनाव में ही सरकार में लड़कियों की पढ़ाई के लिए कई कई सारे वादे किये थे लेकिन बिहार अभी भी बिहार में फीमेल लिटरेसी रेट बहुत कम है। जहां मेल लिटरेसी रेट 73.39 परसेंट है वही फीमेल लिटरेसी रेट 53.33 परसेंट है।
भ्रष्टाचार जैसे कई मुद्दों पर सरकार ने बहुत सारे वादे किये थे उनके फायदें लोगों तक नहीं पहुंच पाए।
2020 की लड़ाई !-
पुराने कामों को आगे बढ़ाते हुए और कई चीज़ों से सीखे हुए RJD ने आगामी चुनाव के लिए अपना घोषणा पत्र ज़ारी कर दिया है। इस बार के मुख्या मुद्दे बिजली, पानी और सड़क है; इनके साथ ही यूथ एम्प्लॉयमेंट, वीमेन एम्पावरमेंट, स्किल डेवलपमेंट भी शामिल है। कई प्रोग्रामों के लिए फंड भी के आवंटन को भी दिखया गया है। अब देखना ये है कि आखिर 2020 की लड़ाई में किसकी गाड़ी ज़्यादा आगे बढ़ती है।
[bs-quote quote=”इस आर्टिकल के लेखक एक स्टूडेंट हैं जो राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक और पर्यावरणीय मुदृदों पर लिखते रहते हैं।” style=”style-13″ align=”center” author_name=”वैभव द्विवेदी” author_job=”स्टूडेंट” author_avatar=”https://journalistcafe.com/wp-content/uploads/2020/04/vaibhav.jpg”][/bs-quote]
यह भी पढ़ें: बिहार चुनाव के पहले बिछने लगी आरक्षण की बिसात, कांग्रेस ने BJP पर तेज किया हमला
यह भी पढ़ें: बिहार : चुनाव से पहले चिराग पासवान के सख्त तेवर, NDA को अटूट बताने वाले को निकाला
[better-ads type=”banner” banner=”104009″ campaign=”none” count=”2″ columns=”1″ orderby=”rand” order=”ASC” align=”center” show-caption=”1″][/better-ads]