उनके पास तीन बकरियां हैं, जमीन-जायदाद के नाम पर एक मिट्टी का घर। बारिश का मौसम आने से महीनों पहले वह पैसे बचाकर रख लेती हैं ताकि मानसून में अपने कच्चे घर पर बरसाती चढ़ा सकें। घर में न पानी आता है और न ही शौचालय है। सल्तोरा की जिस विधानसभा क्षेत्र वाले इलाके में वह रहती हैं, कमोबेश सबके यही हाल हैं। हम बात कर रहे हैं बौरी चंदना की, लेकिन क्यों?
जनता ने चंदना पर जताया भरोसा
2 मई की रात बस्ती के तमाम लोगों के साथ ही 30 साल की चंदना बौरी की आंखों में एक अलग ही चमक थी। चमक इस बात की कि अब सब बदल जाएगा। क्योंकि बदलने का मौका खुद उनके जैसी उनके बीच रहने वाली को मिला है।
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खुद चंदना की आंखों में भी नींद नहीं थी, क्योंकि जिस बदलाव का सपना उन्होंने देखा था, जनता ने उस पर भरोसा जताया और उन्हें अपना विधायक चुन लिया। 30 साल की बौरी चंदना जो अब तक मनरेगा मजदूर थीं वह अब विधानसभा में बैठेंगीं।
कई मायनों में बड़ी है चंदना की जीत
पंश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव का परिणाम आते ही जब चारों तरफ भाजपा की हार की चर्चा जारी थी तो इस शोर में एक बेहद अलग और शानदार जीत की चर्चा कहीं दब कर रह गई। इस जीत ने जहां एक तरफ बंगाल में भाजपा के खाते में गई सीटों की बढ़ोतरी की है तो वहीं इसने चुन कर स्थापित किए जाने वाली लोकतंत्र की परिभाषा को भी सार्थक किया है।
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