चौरी चौरा कांड के बाद अपनों ने ही की थी गांधी के ख़िलाफ़ बग़ावत
ग़ुलाम भारत का इतिहास खून से लथपथ रहा है. ब्रिटिश राज में भारत कुछ ऐसे दर्दनाक हादसों का साक्षी बना है जिसका ज़िक्र भी कष्टमय हो जाता है. गांधी ही के सहज बूते से तो हम ग़ुलाम भारत से स्वतंत्र भारत बन गए लेकिन अपनों ने ही गांधी को बना दिया था राष्ट्रद्रोही.
हर एक क्रांति से जुड़ी है एक अनोखी कहानी जिसने गांधी के जीवन के साथ-साथ देश के लोगों के सोचने के स्ट्रक्चर को भी बदल दिया है.
क्या थी चौरी-चौरा की घटना?
महात्मा गांधी के असहयोग आंदोलन के दौरान 4 फरवरी 1922 को कुछ लोगों की भड़की भीड़ ने गोरखपुर के चौरी-चौरा के पुलिस थाने में आग लगा दी थी. इसमें 23 पुलिस वालों की मौत हो गई थी.
इस घटना के दौरान तीन नागरिकों की भी मौत हो गई थी. इससे पहले यह पता चलने पर की चौरी-चौरा पुलिस स्टेशन के थानेदार ने मुंडेरा बाज़ार में कुछ कांग्रेस कार्यकर्ताओं को मारा है, गुस्साई भीड़ पुलिस स्टेशन के बाहर जमा हुई और अपने ग़ुस्से को आग का रूप दे दिया.
इस हिंसा के बाद महात्मा गांधी ने 12 फरवरी 1922 को असहयोग आंदोलन वापल ले लिया था. महात्मा गांधी के इस फैसले को लेकर क्रांतिकारियों का एक दल नाराज़ हो गया था. 16 फरवरी 1922 को गांधीजी ने अपने लेख ‘चौरी चौरा का अपराध’ में लिखा कि अगर ये आंदोलन वापस नहीं लिया जाता तो दूसरी जगहों पर भी ऐसी घटनाएँ होतीं.
उन्होंने इस घटना के लिए एक तरफ जहाँ पुलिस वालों को ज़िम्मेदार ठहराया क्योंकि उनके उकसाने पर ही भीड़ ने ऐसा कदम उठाया था तो दूसरी तरफ घटना में शामिल तमाम लोगों को अपने आपको पुलिस के हवाले करने को कहा क्योंकि उन्होंने अपराध किया था.
गांधी पर भी चला था राजद्रोह का मुक़दमा
चौरी-चौरा कांड में जनता के ख़िलाफ़ जाने पर गांधी जी पे भी चला था राजद्रोह का मुक़दमा चला था और गांधी जी को गिरफ़्तार कर लिया गया था. असहयोग आंदोलन का प्रस्ताव कांग्रेस के कलकत्ता अधिवेशन में 4 सितंबर 1920 को पारित हुआ था. गांधीजी का मानना था कि अगर असहयोग के सिद्धांतों का सही से पालन किया गया तो एक साल के अंदर अंग्रेज़ भारत छोड़कर चले जाएंगे.
इसके तहत उन्होंने उन सभी वस्तुओं, संस्थाओं और व्यवस्थाओं का बहिष्कार करने का फैसला किया था जिसके तहत अंग्रेज़ भारतीयों पर शासन कर रहे थे. उन्होंने विदेशी वस्तुओं, अंग्रेज़ी क़ानून, शिक्षा और प्रतिनिधि सभाओं के बहिष्कार की बात कही. खिलाफत आंदोलन के साथ मिलकर असहयोग आंदोलन बहुत हद तक कामयाब भी रहा था.
चौरी-चौरा में शहीदों का बनाया गया स्मारक
1971 में गोरखपुर ज़िले के लोगों ने चौरी-चौरा शहीद स्मारक समिति का गठन किया. इस समिति ने 1973 में चौरी-चौरा में 12.2 मीटर ऊंचा एक मीनार बनाई. इसके दोनों तरफ एक शहीद को फांसी से लटकते हुए दिखाया गया था. इसे लोगों के चंदे के पैसे से बनाया गया. इसकी लागत तब 13,500 रुपये आई थी.
शताब्दी वर्ष में क्या है ख़ास?
इस वर्ष 4 फ़रवरी 2021 से 4 फ़रवरी 2022 तक चौरी-चौरा कांड का शताब्दी समारोह मनाया जा रहा. मुख्य रूप से इस समारोह का उद्घाटन प्रधानमंत्री वर्चूअली करेंगे.
गोरखपुर से सटे तमाम क़स्बे और गाँव में चौरी चौरा कांड के बहादुर जवानों को LED स्क्रीन और तमाम पोस्टेरों से श्रधांजलि दी जा रही है.