500 रुपये प्रति किलो बिकता है यहां… कड़कनाथ चिकन
छत्तीसगढ़ के नक्सल प्रभावित क्षेत्र दंतेवाड़ा में मुर्गे की एक प्रजाति की भारी डिमांड है। इसकी कीमत 500 रुपये प्रति किलोग्राम के आसपास है। कड़कनाथ कहे जाने वाले इस मुर्गे का मीट काले रंग का होता है। इसे स्थानीय लोग कालीमासी कहते हैं। कड़कनाथ प्रीमियम ब्रीड है। इसके मीट का दाम आम चिकन की तुलना में तीन गुना अधिक है।
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उदय चंद सिन्हा कड़कनाथ मुर्गे के व्यवसाय की बारीकियों को तेजी से सीख रहे हैं। सिन्हा दंतेवाड़ा जिले के पालनार गांव में अपने फार्म पर 333 कड़कनाथ मुर्गे पाल रहे हैं। उन्हें भरोसा है कि इनमें से कम से कम 300 जीवित बचे रहेंगे। सिन्हा को छह महीनों में 2-2.5 लाख रुपये की कमाई की उम्मीद है। उन्होंने अपने अनुमान में इस संभावना को शामिल किया है कि कुछ मुर्गों का वजन दो किलोग्राम से कुछ कम हो सकता है और उन्हें मीट 500 रुपये प्रति किलोग्राम से कम के भाव पर बेचना पड़ सकता है।
मुझे अगले राउंड के लिए कुछ रकम बचाने की जरूरत है
सिन्हा ने बताया, ‘सबसे बुरी स्थिति में भी मैं 1,000 मुर्गे पालकर 5 लाख रुपये कमा सकता हूं। पूंजी को लेकर चिंता नहीं है क्योंकि पहले सीजन में सरकार इस पर सब्सिडी दे रही है, लेकिन अगले वर्ष से मुझे खुद खर्च करना होगा और सरकार केवल टीकों और दवाओं के लिए मदद देगी। इस वजह से मुझे अगले राउंड के लिए कुछ रकम बचाने की जरूरत है।’
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कड़कनाथ को भले ही छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा और बस्तर के कुछ क्षेत्रों में पाला जाता है, लेकिन यह मुर्गा पूर्वी मध्य प्रदेश के झाबुआ और धार जिलों से संबंध रखता है। कड़कनाथ को इस वर्ष जनवरी में बड़ी मात्रा में दंतेवाडा जिले में लाया गया था। इस प्रजाति के 1,000 मुर्गों को पालने का खर्च 5.23 लाख रुपये है और इस पर सरकार 90 पर्सेंट सब्सिडी दे रही है। इस योजना ने रफ्तार पकड़ ली है और अब दंतेवाड़ा जिले में 76 उद्यमी इस प्रजाति के 76,000 मुर्गे पाल रहे हैं।
कड़कनाथ के लिए जीआई टैग मिलना चाहिए
जिला प्रशासन का लक्ष्य यह संख्या बढ़ाकर 2018 के मध्य तक 1.5 लाख मुर्गों तक पहुंचाने का है। इस स्कीम का ढांचा इस तरह का है कि अगले राउंड में उद्यमियों को मुर्गे पालने का 90 पर्सेंट खर्च खुद उठाना होगा और सरकार की ओर से केवल 10 पर्सेंट वित्तीय मदद दी जाएगी। एक राउंड डेढ़ वर्ष का है। पिछले महीने दंतेवाड़ा प्रशासन ने कड़कनाथ की खातिर जिऑग्रैफिकल इंडिकेशन (जीआई) टैग के लिए आवेदन किया था। प्रशासन का कहना है कि इस मुर्गे के पालन को बढ़ावा देने और इसके संरक्षण के लिए किए जा रहे कार्यों के कारण दंतेवाड़ा को कड़कनाथ के लिए जीआई टैग मिलना चाहिए।
(साभार एनबीटी)