तप रहा देश का 90 प्रतिशत क्षेत्र, तो दिल्ली लू के कारण ‘खतरे’ के जोन में
हाल ही में हुए एक नए रिसर्च के अनुसार, भारत में जलवायु परिवर्तन के कारण ‘हीट वेव’ लगातार गंभीर होता जा रहा हैं. इसके वजह से देश के 90 प्रतिशत क्षेत्र लू के कारण खतरे में हैं. कैंब्रिज विश्वविद्यालय से रमित देबनाथ और उनके सहियोगी द्वारा किए गए अध्ययन में पता चला कि विशेष रूप से दिल्ली गंभीर हीटवेव प्रभावों के प्रति संवेदनशील है. हालांकि जलवायु परिवर्तन के लिहाज से राज्य कार्य योजना इसे सामने नहीं लाती है. अध्ययन में आगे बताया गया कि ‘लू’ ने संयुक्त राष्ट्र के सतत विकास लक्ष्यों (SDG) को प्राप्त करने की दिशा में भारत की प्रगति को पहले की तुलना में ज्यादा बाधित किया है. यही नहीं, हालिया मूल्यांकन मेट्रिक्स देश पर जलवायु परिवर्तन से जुड़े लू के प्रभावों को पूरी तरह से पकड़ नहीं सकते हैं.
बीतें 50 वर्षो में लू ने ली 17 हजार जानें…
पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के पूर्व सचिव एम राजीवन द्वारा वैज्ञानिक कमलजीत रे, एस एस रे, आर के गिरि और ए पी डिमरी के साथ लिखे गए एक रिसर्च के अनुसार हीटवेव ने भारत में 50 सालों में 17,000 से अधिक लोगों की जान ले ली. साल 2021 में प्रकाशित रिसर्च में कहा गया था कि 1971 से 2019 तक देश में लू की 706 घटनाएं हुईं. वहीं रविवार को नवी मुंबई में महाराष्ट्र सरकार के पुरस्कार समारोह में हीटस्ट्रोक से तेरह लोगों की मौत हो गई. जिससे यह देश के इतिहास में हीटवेव से संबंधित किसी भी घटना से सबसे अधिक मौतों में से एक बन गया.
दिल्ली लू के उच्च जोखिम क्षेत्र में…
CVI रैंकिंग के अनुसार, जिन राज्यों को कम खतरे के रूप में वर्गीकृत किया गया था, उन्हें वास्तव में ताप सूचकांक के लिहाज खतरे की श्रेणियों में पाया गया. यह बताया है कि हीटवेव जलवायु से जुड़े जोखिम के अनुमान की तुलना में पूरे भारत के लोगों अधिक जलवायु जोखिम में डालती है. लेखकों ने निष्कर्ष निकाला कि सीवीआई का उपयोग गर्मी से संबंधित जलवायु परिवर्तन के वास्तविक बोझ को कम कर सकता है, अध्ययनकर्ताओं ने सुझाव दिया कि भारत को एसडीजी को पूरा करने के लिए अपनी जलवायु जोखिमों के पुनर्मूल्यांकन करने पर विचार करना चाहिए. उन्होंने चेतावनी दी कि यदि भारत गर्म हवाओं के प्रभाव को तुरंत दूर करने में विफल रहता है, तो यह संयुक्त राष्ट्र के सतत विकास लक्ष्यों को प्राप्त करने की दिशा में प्रगति को धीमा कर सकता है. अध्ययन में इस बात पर भी प्रकाश डाला गया है कि दिल्ली सरकार के भेद्यता आकलन के अनुसार डिजाइन और कार्यान्वित की गई वर्तमान हीट-एक्शन योजनाओं में ताप सूचकांक के अनुमान शामिल नहीं हैं, जो दिल्ली में कम जलवायु-संवेदनशील क्षेत्रों के बाद से भी उच्च हीटवेव जोखिम भरे हैं.
सामान्य से अधिक रहता है गर्मी में तापमान…
अध्ययन में कहा गया है कि मध्य, पूर्व, पश्चिम और उत्तर-पूर्व जिलों में विकास की उच्च तीव्रता गर्मी ताप सूचकांक के जोखिमों को और बढ़ा सकती है. अध्ययनकर्ताओं ने कहा कि दिल्ली में कुछ महत्वपूर्ण कारण भी गर्मी से संबंधित जोखिमों को और बढ़ाएंगे. मसलन झुग्गी-बस्तियों में रहने वाली आबादी, उच्च ताप सूचकांक क्षेत्रों में भीड़भाड़, बिजली, पानी और स्वच्छता जैसी बुनियादी सुविधाओं तक पहुंच में कमी, तत्काल स्वास्थ्य देखभाल और स्वास्थ्य की अनुपलब्धता, घरों की खराब स्थिति और खाना पकाने के लिए गंदा ईंधन (बायोमास, मिट्टी का तेल और कोयला) सरीखे कारण शामिल हैं. लू का जोखिम और भी बढ़ जाता है जब हम पाते हैं कि मैदानी इलाकों में गर्मी के मौसम में तापमान कम से कम 40 डिग्री सेल्सियस, तटीय क्षेत्रों में कम से कम 37 डिग्री सेल्सियस और पहाड़ी क्षेत्रों में कम से कम 30 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच जाता है. यह सामान्य से कम से कम 4.5 डिग्री सेल्सियस अधिक का पैमाना है.
जीडीपी पर भी गंभीर असर…
इस महीने की शुरुआत में भारत मौसम विज्ञान विभाग ने उत्तर-पश्चिम और प्रायद्वीपीय क्षेत्रों को छोड़कर अप्रैल से जून तक देश के अधिकांश हिस्सों में सामान्य से ज्यादा अधिकतम तापमान रहने की भविष्यवाणी की थी. इस अवधि के दौरान मध्य, पूर्व और उत्तर-पश्चिम भारत के अधिकांश हिस्सों में सामान्य से अधिक गर्म हवा के दिनों की उम्मीद है. 2023 में भारत ने 1901 में रिकॉर्ड सहेजने शुरू करने के बाद से सबसे गर्म फरवरी देखी है. हालांकि मार्च में सामान्य से अधिक बारिश ने तापमान को नियंत्रित रखा. मार्च 2022 अब तक का सबसे गर्म और 121 वर्षों में तीसरा सबसे सूखा वर्ष था. इस वर्ष में 1901 के बाद से देश का तीसरा सबसे गर्म अप्रैल भी देखा गया. भारत में लगभग 75 प्रतिशत श्रमिक (लगभग 380 मिलियन लोग) गर्मी से संबंधित तनाव का अनुभव करते हैं. मैकिन्से ग्लोबल इंस्टीट्यूट की एक रिपोर्ट में चेतावनी दी गई है कि अगर ऐसा ही चलता रहा, तो 2030 तक देश अपने सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का 2.5 प्रतिशत से 4.5 प्रतिशत प्रति वर्ष के बीच खो सकता है.
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