दुश्मनी में बदली सालों पुरानी ईरान और इजरायल की दोस्ती, कभी थे एक दूसरे पर आश्रित
इजरायल के आसमान में भारी मिसाइलों कि बौछार देखी गई
दुनिया में कभी ईरान और इजरायल एक दूसरे के गहरे मित्र हुआ करते थे लेकिन अब दुश्मन हो गए हैं. यही कारण है कि, दोनों देशों के बीच मिसाइल अटैक हो रहे हैं और जंग के मुहाने पर खड़े हैं. इसकी वजह है ईरान का इजरायल पर 180 से जयादा मिसाइल अटैक. मंगलवार से शुरू हुआ था हमला जिसमें इजरायल के आसमान में भारी मिसाइलों कि बौछार देखी गई. हालाँकि यह कोई रहस्य नहीं हैं कि ईरान- इजरायल का दुश्मन है. इससे पहले वह इसका दोस्त भी था . लेकिन अब हालात पूरी तरह से अलहदा हैं.
तो आइये जानते हैं कैसे पुरानी दोस्ती दुश्मनी में बदल गई …
बता दें कि, 1948 से पहले इजरायल था ही नहीं. यह पूरा फिलिस्तीन था. यहाँ पर ऑटोमन का साम्राज्य था. मई 1948 में इजरायल अस्तित्व में आया. कहा जा रहा हैं कि- संयुक्त राष्ट्र ने 1947 में एक प्रस्ताव रखा था. जिसमें फिलिस्तीन को यहूदी और अरब राज्यों में बाटनें को था. साथ ही येरूशलम को एक अंतरराष्ट्रीय शहर बनाने का प्रस्ताव रखा गया था. यहूदी नेताओं ने इसे मान लिया जबकि अरब नेताओं ने इसे मानने से इंकार कर दिया. ईरान उन 13 देशों में शामिल था, जिन्होंने इसके खिलाफ़ मतदान किया था. ईरान ने अपने रुख को 1949 में फिर से दोहराया, जब ईरान ने संयुक्त राष्ट्र में सदस्य के रूप में इजराइल के प्रवेश के खिलाफ मतदान किया.
शाह शासन से हुआ ईरान का उदय …
कहा जाता हैं कि 1953 में तख्तापलट के बाद ईरान में शाह शासन का उदय हुआ. जिसने दोनों देशों के संबंधों को नया मोड़ दिया. इतना ही नहीं रजा शाह पहलवी की सत्ता में वापसी के साथ ईरान और इज़रायल ने एक घनिष्ठ और बहुआयामी गठबंधन बनाना शुरू किया. इसके बाद 1950 को ईरान ने इजरायल को आधिकारिक तौर पर मान्यता दी . इतना ही नहीं उस समय ईरान में पश्चिम एशिया में सबसे बड़ी यहूदी आबादी रहती थी. शाह पहलवी शासन ने इजरायल को एक सहयोगी के रूप में देखा. पारस्परिक लाभ से प्रेरित इस दोस्ती ने ईरान और इजरायल के बीच आर्थिक, सैन्य और खुफिया सहयोग को बढ़ावा दिया. उन्होंने कम्युनिस्ट USSR को पश्चिम एशिया से बाहर रखने के साझा हितों के आधार पर एक करीबी रिश्ता भी विकसित किया.
ईरान से इजरायल पहुंचता था तेल …
इतना ही नहीं यह भी कहा जाता हैं कि दुनिया में ईरान तेल का सबसे बड़ा उत्पादक है और इजरायल कि इंडस्ट्री और सैन्य जरूरतों के लिए तेल काफी जरूरी था. उस समय इजरायल के दुशमनों ने उस पर तेल प्रतिबन्ध लगाना शुरू कर दिया था. तब ईरान ने 1968 में स्थापित ईलाट-अश्केलोन पाइपलाइन कंपनी एक महत्वपूर्ण संयुक्त परियोजना थी, जिसने मिस्र के अधीन स्वेज नहर को दरकिनार करते इजरायल को तेल पहुँचाया .
इजराइल ने ईरान को दिए हथियार…
इतना ही नहीं इराक के साथ हुए 1980 में हमले के दौरान इजराइल ने ईरान की मदद की और उसे आधुनिक सैन्य उपकरण और हथियार प्रदान किए. इतना ही TOI कि एक रिपोर्ट के मुताबिक, ईरानियों ने इजरायल से हाईटेक मिसाइल सिस्टम, एम-40 एंटीटैंक गन, उजी सबमशीन गन और विमान इंजन भी इंपोर्ट किए. ईरान के शाह ने अपने पड़ोसियों के खिलाफ सैन्य सफलता के कारण इजरायल की तारीफ भी की, फिर प्रोजेक्ट फ्लावर आया, जो हाईटेक मिसाइल सिस्टम को संयुक्त रूप से डेवलप करने के लिए इजरायल-ईरानी वेंचर था.
ईरानी क्रांति से हुआ बदलाव …
कहा जाता हैं कि दोनों देशों के बीच 1979 में ईरानी हुई क्रांति से बड़े बदलाव हुए. पहलवी राजवंश के पतन और अयातुल्ला खामेनेई के नेतृत्व में इस्लामिक गणराज्य की स्थापना ने ईरान की विदेश नीति और वर्ल्ड व्यू को पूरी तरह से उलट दिया. उसके बाद शुरुआत दिनों में दोनों देशों ने अपने संबंध बनाये रखने पर जोर दिया . दोनों ही देशों ने इराक के साथ हुए हमले को अपने हित में देखा. यह भी कहा जा रहा हैं कि- इजरायल ने ईरान-इराक युद्द के बीच ईरान को 500 मिलियन के हथियार भी सालाना बेचे.
ईरान ने इजरायल को बताया था शैतान …
इतना ही नहीं ईरान एक धर्मशासित देश हैं. ईरान इजराइल को फिलिस्तीनी जमीन कब्ज़ा करने वाला मानता हैं. जब दोनों देशों के बीच रिश्ते में कड़वाहट पैदा हुई तो ईरान ने इजरायल को ‘छोटा शैतान’ बता दिया जबकि अमेरिका को ‘बड़ा शैतान ‘कहा. इतना ही नहीं यह भी कहा जाने लगा कि, शिया ईरान मिडिल ईस्ट का पावर सेंटर बनना चाहता था और सुन्नी इस्लाम के मक्का सऊदी अरब को चुनौती देना शुरू कर दिया.
गल्फ वार से हुई दुश्मनी …
कहा जाता हैं कि दोनों देशों के बीच खुली दुश्मनी साल 1991 में गल्फं वार के बाद शुरू हो गई. सोवियत संघ के पतन और अमेरिका के उदय ने इस क्षेत्र को और अधिक पोलराइज्ड कर दिया. वहीं, ईरान और इज़रायल ने खुद को लगभग हर प्रमुख जियो-पॉलिटिकल विमर्श में एक दूसरे के खिलाफ पाया. कहा जाता हैं कि ईरान का नुक्लियर प्रोग्राम 1990 तक विवाद बन गया. इजरायल ने अमेरिका और अन्य देशों से मिलकर कहा कि- ईरान अपनी परमाणु महत्वाकांक्षाओं को त्याग दे क्योंकि वह क्षेत्रीय और वैश्विक सुरक्षा के लिए खतरा पैदा करता है.
नसलल्लाह की मौत बना युद्ध का कारण …
बता दें कि दोनों देशों के बीच दुश्म्नी का कारण हिज्बुल्लाह प्रमुख हसन नसरल्लाह की मौत है. नसरल्लाह की मौत के बाद ईरान ने इजरायल पर 180 मिसाइल दागे. जिसके बाद दोनों देशों के बीच तनाव बढ़ गया हैं. इजरायल ने इस हमले के लिए ईरान को अंजाम भुगतने के लिए तैयार रहने कि चेतावनी दी है. जिसके बाद G7 के देशों ने एक बैठक की है. बैठक में अमेरिका ने ईरान पर प्रतिबंध बढ़ाने की बात कही है. लेकिन जिस तरह से तनाव बढ़ रहा है, उससे एक बात तो तय है कि ईरान और इजरायल के बीच संघर्ष अभी सुलझने से काफी दूर है.