थैलेसीमिया दिवस विशेष : जानें कैसे बचा सकते हैं बच्चों को इस बीमारी से…

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थैलेसीमिया एक गंभीर बीमारी है और इससे केवल दो तरीके से रोका जा सकता है। शादी से पहले वर-वधु के रक्त की जांच हो, और यदि जांच में दोनों के रक्त में माइनर थैलेसीमिया पाया जाए तो बच्चे को मेजर थैलेसीमिया होने की पूरी संभावना बन जाती है। ऐसी स्थिति में मां के 10 सप्ताह तक गर्भवती होने पर पल रहे शिशु की जांच होनी चाहिए। इससे गर्भ में पल रहे बच्चे में थैलेसीमिया की बीमारी का पता लगाया जा सकता है। दूसरा उपाय यह कि यदि विवाह के बाद माता-पिता को पता चले कि शिशु थैलेसीमिया से पीड़ित है तो बोन मेरो ट्रांसप्लांट पद्धति से शिशु के जीवन को सुरक्षित किया जा सकता है।

विश्व थैलेसीमिया दिवस (8 मई) के अवसर पर जे.पी. हॉस्पिटल के बोन मेरो ट्रांसप्लांट विभाग के वरिष्ठ चिकित्सक डॉ. पवन कुमार सिंह एवं डॉ. ईशा कौल ने कहा कि शिशु जन्म के पांच महीने की उम्र से ही थैलेसीमिया से ग्रस्त हो जाता है और उसे हर महीने रक्त ट्रांसफ्यूजन की जरूरत पड़ती है। थैलेसीमिया से पीड़ित बच्चे एक निश्चित उम्र तक ही जीवित रह पाते हैं।

डॉ. पवन ने कहा, “महिलाओं एवं पुरुषों के शरीर में क्रोमोजोम की खराबी माइनर थैलेसीमिया होने का कारण बनती है। यदि दोनों ही मानइर थैलेसीमिया से पीड़ित होते हैं तो शिशु को मेजर थैलेसीमिया होने की संभावना बढ़ जाती है। जन्म के तीन महीने बाद ही बच्चे के शरीर में खून बनना बंद हो जाता है और उसे बार-बार खून चढ़ाने की जरूरत पड़ती है।”

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