…तो इस लिए जरुरी हुआ फांसी के बाद पोस्टमार्टम ?
दिल्ली: भारतीय न्याय प्रणाली में साल 2014 के बाद अपराध के दोषियों को फांसी की सजा दिए जाने के बाद अनिवार्य रूप से पोस्टमार्टमPostmortem कराने का प्रावधान है। साल 2014 से पहले ऐसा नहीं होता था। दरअसल, शत्रुघ्न चौहान बनाम यूनियन ऑफ इंडिया के केस में 21 जनवरी, 2014 को सुप्रीम कोर्ट ने आदेश पारित किया।
इस याचिका की विस्तृत जानकारी
In The Supreme Court of India
Criminal Appellate Jurisdiction
Case No. Writ Petition (Criminal) no. 55 of 2013
Appellants
Shatrughan Chauhan & anr.
Respondent
Union of India & ors.
Date of Judgement
Decided on 21 Jan, 2014
Bench : Hon’ble Justice P. Sathasivam , Justice Ranjan Gogoi and Justice Shiva Kirti Singh
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अपने आदेश में कोर्ट ने कहा कि भले ही किसी भी जेल नियमावली में फांसी की सजा के बाद अनिवार्य पोस्टमार्टमPostmortem का प्रावधान नहीं है। देश में अनुभवी जल्लादों की कमी है, ऐसे में याचिकाकर्ता की दलील थी कि फांसी की सजा के बाद पोस्टमार्टम को बाध्यकारी बनाना चाहिए। आदेश के मुताबिक मौत की पुष्टि के बाद शव को फंदे से उतार कर पोस्टमार्टम कराया जाता है। 156 पन्ने के अपने विस्तृत आदेश में तत्कालीन चीफ जस्टिस पी सतशिवम की अध्यक्षता वाली पीठ ने फैसला सुनाया था कि फांसी दिए जाने के बाद मृतक का पोस्टमार्टम कराया जाए, ताकि इस बात की पुष्टि हो सके कि फांसी पर लटकाए गए व्यक्ति की मौत कैसे हुई। पोस्टमार्टम से यह पता चलता है कि फांसी पर लटकाए गए शख्स की मौत गले की हड्डी (cervical vertebrae) टूटने या दम घुटने (strangulation) से हुई है।
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कोर्ट ने कहा कि हमारा संविधान इस बात की इजाजत देता है कि किसी भी व्यक्ति की मौत की सजा कानूनी प्रक्रिया के अनुसार ही दी जाए। यह प्रक्रिया न्याय, निष्पक्ष और तर्क के आधार पर हो और पोस्टमार्टम से यह सुनिश्चित हो सकेगा कि जिस व्यक्ति को फांसी दी गई है, वह न्याय, निष्पक्ष और तर्कों पर आधारित थी। इस पीठ में जस्टिस रंजन गोगोई और जस्टिस शिवकीर्ति सिंह भी शामिल थे।
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18 लोग होते हैं फांसी के गवाह
बता दें, एक फांसी के गवाह के रुप में 18 लोग होते हैं। इसमें 12 गार्ड, डॉक्टर, मजिस्ट्रेट, स्वीपर और जल्लाद, जेलर और डिप्टी सुपरिटेंडेंट शामिल होते हैं। फांसी कोठी के पास किसी को भी बातचीत करने की अनुमति नहीं।
रुमाल गिराकर होता है इशारा
इस दौरान इशारों में बातचीत होती है। जेलर के इशारे पर जल्लाद लीवर खींच कर फांसी की प्रक्रिया पूरी करता है। इस प्रक्रिया में करीब 8-15 मिनट का वक्त लगता है। इसके बाद डॉक्टर अपराधी के शव की जांच करते हैं। धड़कन, नब्ज आदि का परीक्षण कर मौत की पुष्टि की जाती है।
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