2023 में क्यों आ रहीं ज्यादा आपदा, भारत ही नहीं कई देशों से रूठ गई प्रकृति

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यूँ तो प्राकृतिक आपदा पहले भी कई बार आई हैं। कई बार तो प्राकृतिक आपदाओं ने भारी त्राहि भी मचा दी। मगर साल 2023 में प्राकृतिक आपदाओं ने एक या दो देश नहीं बल्कि दुनिया में त्राहिमाम मचा रही है। मानसून में बारिश से बाढ़ डरा रही तो गर्मी में हीट वेव रुला रही। वहीं पिछले साल की सर्दियों में भी खूब मौतों का सिलसिला चला। बीते दो सालों में कोरोना की भयावह तसवीर अब तक कोई नहीं भूला। क्या इंसानों से प्राकृति रूठ गई है, जो इतना कहर बरपा रही है।

हीट वेव और बारिश ने खूब रुलाया

भारत के अधिकांश हिस्सों में जहां जून में जानलेवा गर्मी पड़ी और हीट वेव से लोग बेहाल रहे। तो वहीं जुलाई में देश के अधिकांश हिस्सों में आसमान से बादलों ने खूब कहर बरसाया। अब भी बारिश का कहर जलभराव और बाढ़ के रूप में दिख रहा है। लगातार बारिश के कारण पूरे हिमाचल प्रदेश में अचानक बाढ़ और भूस्खलन हुआ है, जबकि दिल्ली में पिछले 40 वर्षों में सबसे अधिक बारिश दर्ज की गई है। मौसम विज्ञानी और जलवायु वैज्ञानिक दोनों ही, एक बार फिर, चरम मौसम की घटनाओं में भारी वृद्धि के लिए ग्लोबल वार्मिंग के बढ़ते स्तर को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं।

दैवीय घटनाओं में 20 फीसदी वृद्धि

आईपीसीसी की रिपोर्ट, ‘बदलती जलवायु में मौसम और जलवायु की चरम घटनाएं ‘ ने पहले ही चेतावनी दी थी कि गर्मी और मानसून की वर्षा भी बढ़ेगी और भारतीय उपमहाद्वीप में अत्यधिक वर्षा की घटनाओं में 20 प्रतिशत की वृद्धि होगी। जून में कई दिन तक धरती का औसत वैश्विक तापमान औद्योगिक क्रांति से पूर्व के औसत तापमान के स्तर से 1.5 डिग्री तक पहुंच चुका था। कॉपरनिकस क्लाइमेट चेंज सर्विस ने कहा कि इस साल नवंबर में होने वाली वार्षिक जलवायु वार्ता की तैयारी के लिए जब सब देशों के प्रतिनिधि जून की शुरुआत में बॉन में एकत्र हुए थे, तब कई दिनों तक औसत वैश्विक सतह हवा का तापमान पूर्व- औद्योगिक स्तर से 1.5 डिग्री सेल्सियस से अधिक था।

समुद्र के तापमान ने पार किए रिकॉर्ड

1 जून से शुरू होने वाली उत्तरी गोलार्ध की गर्मियों में ऐसा पहली बार हुआ। समुद्र के तापमान ने भी अप्रैल और मई के रेकॉर्ड पार कर दिए हैं। यह वह लेवल है जिस तक तापमान को सीमित रखने का पेरिस समझौते में वादा किया था। यह बात यूरोपीय यूनियन की वित्तीय मदद से चलने वाले कॉपरनिकस क्लाइमेट चेंज सर्विस ने बतायी है।

ग्लोबल वार्मिंग से बढ़ रहीं दैवीय घटनाएं

हालांकि लंबे समय से सुर्ख़ियों में छाये 2015 में हुए पेरिस समझौते का मक़सद था कि औद्योगिक क्रांति से पूर्व के धरती के औसत तापमान को आधार रेखा मानकर उसके सापेक्ष ग्लोबल वार्मिंग को 1.5 -2 डिग्री सेल्सियस तक सीमित रखना है। इस ग्लोबल वार्मिंग के 1.5 डिग्री को छू लेने की वजह से मौसम की भयावह घटनाएं पेश आ रही हैं।

ग्रीन हाउस गैसों की मात्रा में बढ़ोतरी

पहली औद्योगिक क्रांति 1760-1770 के दशक से वातावरण में घुल रही ग्रीन हाउस गैसों की मात्रा में इजाफा होने लगा। इसके साथ ही धरती गर्म होने लगी और ग्लोबल वार्मिंग शुरू हो गयी। कोयला जलाने के दुष्प्रभाव साल 1830 से साल 1850 के बीच नजर आने लगे। जो औद्योगिक क्रांति के दूसरे चरण में और ज़्यादा असरदार रूप से दिखने लगे। इस साल 1850 के धरती के तापमान को बेसलाइन या आधार रेखा मानकर धरती के तापमान को वर्तमान में 1.5℃ तक ही धरती की ग्लोबल वार्मिंग सीमित रखने का लक्ष्य पेरिस समझौते में रखा गया था।

भरत में अधिक मौसमी घटनाएं

भारत में मौसम की भयावह घटनाओं में वृद्धि का पैमाना हर गुजरते साल के साथ नई ऊंचाई छू रहा है। साल 2023 की शुरुआत अगर सर्दी की जगह अधिक गर्मी के साथ हुई, तो फरवरी में तापमान ने 123 साल पुराना रेकॉर्ड तोड़ दिया। आगे पूर्वी और मध्य भारत में अप्रैल और जून में उमस भरी गर्मी की संभावना जलवायु परिवर्तन के कारण 30 गुना अधिक हो गई थी। उसी दौरान चक्रवात बिपरजॉय अरब सागर में 13 दिनों तक सक्रिय रहा और लगभग दो हफ्तों की इस सक्रियता के चलते साल 1977 के बाद सबसे लंबी अवधि का चक्रवात बन गया।

ग्लोबल वार्मिंग से बदल रहा मानसून

ग्लोबल वार्मिंग के चलते मानसून के पैटर्न में बदलाव से फर्क पड़ा है। भूमि और समुद्र दोनों के तापमान में लगातार वृद्धि हो रही है, जिससे हवा में लंबे समय तक नमी बनाए रखने की क्षमता बढ़ गई है। इस प्रकार, भारत में बढ़ती चरम मौसम की घटनाओं में जलवायु परिवर्तन की भूमिका हर गुजरते साल के साथ मजबूत होती जा रही है।

कई देशों में सता रही प्रकृति

यह हालत सिर्फ़ भारत ही की नहीं हैं बल्कि पूरी दुनिया की कमोबेश यही स्थिति है। जहां 22 मिलियन की आबादी वाला चीन के बीजिंग का शहर तापमान जून में 40 डिग्री सेल्सियस (104 फ़ारेनहाइट) से ऊपर रहा है। वहीं अमरीका में हीट वेव ने लोगों को तड़पा दिया। कैनेडियन इंटर एजेंसी फॉरेस्ट फायर सेंटर (सीआईएफएफसी) के अनुसार, कनाडा में इस साल अब तक 2,392 बार जंगल में आग लगी हैं और 4.4 मिलियन हेक्टेयर का इलाका जल चुका है, जो पिछले दशक के वार्षिक औसत से लगभग 15 गुना अधिक है। उत्तरी अमेरिका के कुछ हिस्सों का तापमान इस महीने मौसमी औसत से लगभग 10 डिग्री सेल्सियस ऊपर था। जंगल की आग के धुएं ने कनाडा और अमेरिकी पूर्वी तट को खतरनाक धुंध में ढंक दिया, जिसमें रेकॉर्ड 160 मिलियन मीट्रिक टन कार्बन उत्सर्जन का अनुमान लगाया गया था। स्पेन, ईरान और वियतनाम में भी अत्यधिक गर्मी दर्ज की गई है, जिससे यह भय बढ़ गया है कि पिछले साल की जानलेवा गर्मी आम घटना बन सकती है। इसके लिए विशेषज्ञ ग्लोबल वार्मिंग को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं।

दैवीय आपदाओं की वज़ह

  1. सबसे पहली वजह है कि अल नीनो ने आकार ले लिया है और यह वैश्विक तापमान को बढ़ा रहा है।
  2. दूसरी वजह है जंगल की आग जो कि इस बार तीन गुना बड़े क्षेत्रों में लगी है। इसका मतलब वायुमंडल में भी जंगल की आग से तीन गुना कार्बन उत्सर्जित हो रहा है और जमा हो रहा है।
  3. तीसरी वजह है उत्तरी अटलांटिक महासागर का गर्म अवस्था में होना।
  4. चौथी वज़ह है जनवरी के बाद से अरब सागर असाधारण रूप से गर्म हो गया है। जिससे उत्तर-उत्तर-पश्चिम भारत में अधिक नमी आ गई है।
  5. पांचवीं वजह है ऊपरी वायुमंडल में हवा का बदला हुआ सर्कुलेशन जिसके चलते धरती की सतह के ठीक ऊपर के सर्कुलेशन पर असर डाल रहा है। इसके चलते उत्तर और मध्य भारत में बारिश भीषण बारिश हो रही है।’

जलवायु पर विशेषज्ञों का तर्क

जलवायु विशेषज्ञों का कहना है कि लांग-टर्म ग्लोबल वार्मिंग को 1.5 डिग्री सेल्सियस के भीतर रखने का लक्ष्य पहुंच से बाहर होता जा रहा है। भूमि और समुद्र पर महीनों की रिकॉर्ड-तोड़ गर्मी के बावजूद राष्ट्र अधिक महत्वाकांक्षी लक्ष्य निर्धारित करने में विफल रहे हैं। ऑस्ट्रेलिया की न्यू साउथ वेल्स यूनिवर्सिटी की जलवायु विज्ञानी सारा पर्किन्स-किर्कपैट्रिक ने कहा, ‘हमारे पास पेरिस समझौते के लक्ष्य को पूरा करने का समय खत्म हो गया है क्योंकि बदलाव में समय लगता है।’ समुद्र का तापमान भी भूमि के उच्च तापमान से मेल खाता है। वैश्विक औसत समुद्री सतह का तापमान मार्च के अंत में 21 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच गया और अप्रैल और मई भर में वर्ष के रेकॉर्ड स्तर पर बना रहा। ऑस्ट्रेलिया की मौसम एजेंसी ने चेतावनी दी है कि अक्टूबर तक प्रशांत और हिंद महासागर का समुद्री तापमान सामान्य से 3 डिग्री सेल्सियस अधिक गर्म हो सकता है।

बिजली उपकरण पहुँचा रहें नुकसान

ऐसे में यह कहना गलत नहीं होगा कि प्रकृति इंसानों से रूठ गई है। आज हम विकास के पीछे भागते-भागते प्रकृति को नुकसान पहुंचाते जा रहे हैं। हम सुविधाओं को हांसिल करने के लिए ऐसे उपकरण व मशीनों का निर्माण कर रहें हैं जिनके इस्तेमाल से ग्लोबल वार्मिंग लगातार बढ़ रहीं है। खासकर बिजली से चलने वाले उपकरण जलवायु के लिए बहुत घातक है। ग्लोबल वार्निंग का स्तर बढ़ने से वायु, भूमि और समुद्र सभी प्रभावित हो रहे हैं।

 

 

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