भगवान बुद्ध को क्यों करनी पड़ी अलग धर्म की स्थापना

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बताया जाता है बौद्ध धर्म का उद्गम हिंदू धर्म से ही हुई है। इस तथ्य के पीछे कई धारणाएं मानी गई हैं। यहीं नहीं भगवान गौतम बुद्ध को भगवान विष्णु का ही नौवां अवतार माना गया है। इस बात की पुष्टि खुद भगवान बुद्ध की जीवन यात्रा में मिलती है। दरअसल, बौद्ध धर्म के संस्थापक भगवान गौतम बुद्ध का जन्म हिंदू परिवार में हुआ था। इसके बाद ही उन्होंने कई  कारणों से हिंदू धर्म को छोड़कर एक नए धर्म की स्थापना की थी। जिसे जैन धर्म के लोगों ने बौद्ध धर्म का नाम दिया। ऐसे में हर हर किसी के मन में एक सवाल घर कर जाता है कि आखिर भगवान विष्णु के नवें अवतार गौतम बुद्ध ने अलग धर्म की स्थापना क्यों की थी। आज हम इसी सवाल का जवाब बताने जा रहे हैं।

भगवान गौतम बुद्ध द्वारा स्थापित किए गए बौद्ध धर्म हिंदू धर्म से बिल्कुल अलग है। इस धर्म को मानने वाले ईश्वर को नहीं मानते हैं। बल्कि भगवान बुद्ध को गुरू(बौद्ध) के रूप में पूजते हैं। इस धर्म में आत्मा का ज्ञान से सरोकार किया जाता है। इसलिए बौद्ध धर्म की पवित्र आत्मा का ही ध्यान कर उपासना करते हैं।

ईश्वर को नही मानता है बौद्ध धर्म 

महात्मा बुद्ध को सृष्टि के पालनहार श्री हरि भगवान विष्णु का नौवां अवतार माना जाता है। बुद्ध के जन्म को बुद्ध की जयंती के रूप में मनाया जाता है। महात्मा बुद्ध की ज्ञान स्थली बोधगया है। जहां से उन्होंने विश्व को शांति, प्रेम, करूणा व सहिष्णुता और अनात्मवाद का संदेश दिया था। वे आत्मा की सत्ता को स्वीकार नहीं करते, ईश्वर को भी नहीं मानते थे। भगवान बुद्ध आत्मा की सत्ता को स्वीकार नहीं करते थे। जब भी कोई उनसे आत्मा या ईश्वर की बात पूछता था, वे चुप रह कर उसके प्रति अपनी अनास्था प्रकट कर देते थे। जबकि सनातन धर्म में आत्मा की सत्ता को ही स्वीकार किया जाता है व कई कर्मकांड उससे संबंधित हैं। इसतरह बौद्ध धर्म हिंदू धर्म से पूरी तरह भिन्न है। इसके बाद भी हिंदू धर्म मूल रूप होने के कारण बौद्ध धर्म की पूर्ती करता है।

हिंदू गया में करते हैं पिंडदान

क्योंकि बौद्ध धर्म की स्थापना कर भगवान बुद्ध (भगवान विष्णु) ने आत्मा के  जागृत होने की बात पर बल  दिया है। इसी के तहत आज हिंदू धर्म में शरीर का अंत होने के बाद आत्मा की मुक्ति के लिए गया जाने की प्रथा है। कहते हैं हिंदू धर्म में एक बार व्यक्ति को गया जाना आवश्यक होता है। गया जाकर ही उसके पूर्वजों की आत्मा को ज्ञान की प्राप्ति होती है।

बौद्ध धर्म की स्थापना

बौध्द धर्म से पहले समन (श्रमण) धर्म था। बौद्ध और जैन धर्म का जन्म समन धर्म से ही हुआ था। सबसे पहला धर्म एक ईश्वर की पूजा अर्थात सनातन धर्म था। भगवान गौतम बुद्ध ने हिंदू धर्म में जन्म लेकर प्राणी के साथ घटने वाली गतिविधियों से हैरान थे। गौतम बुद्ध का हृदय व्यक्ति को मिलने वाली असहनीय पीड़ा से भर गया  था। जिसमें प्राकृति रूप से मिलने वाला बचपन, यौवन और वृद्धावस्था शामिल थी। इसी के बाद उन्होंने हिंदू धर्म को छोड़कर एक नए ज्ञान की खोज में निकले थे। जहां उन्हें बौद्ध धर्म के रूप में ज्ञान व मुक्ति का मार्ग मिला था। इस तरह भगवान गौतम बुद्ध ने बौद्ध धर्म की स्थापना की। बाद में जैन धर्म के लोगों ने बौद्ध धर्म का आत्मसात कर लिया। बौद्ध धर्म की स्थापना भारत में 2,500 साल से भी पहले सिद्धार्थ गौतम (“बुद्ध”) ने की थी। लगभग 500 मिलियन अनुयायियों के साथ विद्वान बौद्ध धर्म को प्रमुख विश्व धर्मों में से एक मानते हैं। इसका चलन ऐतिहासिक रूप से पूर्व और दक्षिण पूर्व एशिया में सबसे प्रमुख रहा है, लेकिन इसका प्रभाव पश्चिम में बढ़ रहा है।

आस्था है बौद्ध धर्म

बौद्ध धर्म एक आस्था है। कई बौद्ध विचार और दर्शन अन्य धर्मों के साथ मेल खाते हैं। यह हिंदू धर्म से भिन्न होकर उसी का एक भाग है। सही मायनों में बौद्ध धर्म को मानने वाले लोग सांसारिक जीवन से अलग हो जाते हैं। जबकि हिंदू धर्म में सांसारिक जीवन का प्रारंभ होता है। बौद्ध धर्म को अपनाने वाला व्यक्ति भिक्षुक की तरह एकांत में चला जाता है और ज्ञान अर्जित करता है। यहां ज्ञान का तात्पर्य भगवान बुद्ध की आत्मा से है। बौद्ध धर्म के अनुयायी किसी सर्वोच्च देवता या देवता को स्वीकार नहीं करते हैं। इसके बजाय वे आत्मज्ञान – आंतरिक शांति और ज्ञान की स्थिति – प्राप्त करने पर ध्यान केंद्रित करते हैं। जब अनुयायी इस आध्यात्मिक सोपान पर पहुँचते हैं, तो कहा जाता है कि उन्होंने निर्वाण का अनुभव कर लिया है।

बुद्ध की मूल शिक्षा अनात्मा है

भगवान बुद्ध की मूल शिक्षा अनात्मा की है। अर्थात कोई ‘आत्मा नहीं होती’ जैसे अन्य धर्मों में ईश्वर,आत्मा और पुनर्जन्म होता है। ठीक वैसे बुद्ध के धर्म में ईश्वर,आत्मा और पुनर्जन्म का कोई स्थान नहीं है। हालांकि कई कथाओं में यह कहा गया है कि भगवान बुद्ध देवी तारा की आराधना करते थे। जबकि हिन्‍दुओं के लिए सिद्धपीठ काली का मंदिर है।

भगवान बुद्ध ने क्यों छोड़ा हिंदू धर्म

प्राकृतिक व्यवस्था को बहाल करने के लिए, उन्होंने असुरों को अपनी शिक्षाओं से भ्रमित किया । इसके कारण उन्होंने वेदों द्वारा स्थापित मार्ग को त्याग दिया और बौद्ध धर्म अपना लिया, जिससे वे धर्म से वंचित हो गये। भगवान बुद्ध का जीवन आसान था, लेकिन गौतम दुनिया में दुख से हिल गए थे। उन्होंने अपनी भव्य जीवन शैली को त्यागने और गरीबी को सहन करने का फैसला किया । जब यह उन्हें पूरा नहीं हुआ, तो उन्होंने “मध्यम मार्ग” के विचार को बढ़ावा दिया, जिसका अर्थ है दो चरम सीमाओं के बीच मौजूद होना।

हिंदू धर्म से बना बौद्ध धर्म

चूंकि सिद्धार्थ का जन्म एक हिंदू परिवार में हुआ था, इसलिए बौद्ध धर्म की उत्पत्ति आंशिक रूप से हिंदू धार्मिक परंपरा से मानी जाती है और कुछ हिंदू बुद्ध को हिंदू देवता के अवतार के रूप में मानते हैं।

बौद्ध धर्म मानता है पांच पाप

बुद्ध धर्म शिक्षा संघ भी स्पष्ट रूप से कहता है, ” पाप या मूल पाप के विचार का बौद्ध धर्म में कोई स्थान नहीं है ।” बौद्ध विचारधारा में संपूर्ण ब्रह्मांड, मनुष्य और देवता, कानून के शासन के अधीन हैं। प्रत्येक कार्य, अच्छा या बुरा, कारणों की एक लंबी श्रृंखला में एक अपरिहार्य और स्वचालित प्रभाव डालता है, एक ऐसा प्रभाव जो किसी भी देवता की इच्छा से स्वतंत्र होता है। भले ही यह व्यक्तिगत भगवान के अधिकार के खिलाफ अवज्ञा के कार्य के अर्थ में ‘पाप’ की अवधारणा के लिए कोई जगह नहीं छोड़ता है, बौद्ध सार्वभौमिक नैतिक संहिता के खिलाफ अपराधों का जिक्र करते समय ‘पाप’ की बात करते हैं।

  1. एक बुद्ध को घायल करना
  2. एक अर्हत को मारना
  3. संघ के समाज में फूट पैदा करना
  4. मातृहत्या
  5. पिता का वध
  6. क्यों की बौद्ध धर्म की स्थापना

 

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