मैंने अपने नाखून उसके हाथ पर गड़ा दिए और फिर…

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रोज शाम मेरे घर पर रौनक रहती है। आस-पड़ोस के सारे बच्चे और औरतें टीवी देखने आती हैं। क्रिकेट चलता है तो घर पूरा होटल बन जाता है। सब आकर डेरा डाल देते हैं और औरतें मेरी रसोई में खाना-चाय बनाकर देती रहती हैं। मुझे भी बड़े प्यार से खाना परोसती हैं। ऐसे वक्त मैं, पति और बेटे के छोड़ जाने का दर्द भूल जाती हूं। वरना तो हर दिन दरवाजे के सामने इंतजार में ही बीतता है।

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दक्षिणी राजस्थान के एक छोटे से गांव की कमलादेवी उस बिरादरी का चेहरा हैं, जहां की औरतों को आधी विधवा कहा जाता है क्योंकि अक्सर कमाने के लिए दूसरे शहर गए उनके पति लौटकर नहीं आते हैं। अपनी कहानी वे खुद बयां करती हैं…माता-पिता गरीब थे लेकिन इकलौती औलाद होने के कारण खूब नाज़ो-नखरों में पली। मैं हर दूसरे दिन उनसे नाराज हो जाया करती। जब बस्ती के बच्चे अपने गांव चले जाते तो मेरे पास खेलने के लिए कोई नहीं होता था। मैं मां से कहती कि मेरे लिए भी कोई भाई या बहन ला दें।

मैं अपनी गुड़िया की शादी करना चाहती थी…

ऐसे ही एक दिन मां ने कहा कि अब मेरे खेलने के लिए कोई रहेगा जो मुझे खूब प्यार भी करेगा लेकिन इसके लिए मुझे दूसरे घर में रहना होगा। छोटी-सी थी, इसी पर खुश हो गई। बाद में समझ आया कि वे मेरी शादी कर रहे हैं। तब कम उम्र में शादी ऐसी कोई नई बात नहीं थी। मेरी कई सहेलियों की भी शादी हो चुकी थी तो मैंने सोचा कि इसी बहाने मुझे भी साथी मिल जाएगा। शादी करके ससुराल आने से पहले मां से कहकर अपनी मिट्टी की गुड़िया भी बक्से में रखवाईं। आते ही मैंने अपने दूल्हे से पूछा कि क्या तुम्हारे पास भी मेरी गुड़िया की तरह कोई गुड्डा है! मैं अपनी गुड़िया की शादी करना चाहती थी।

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वो बहुत हंसा। मैंने अपने नाखून उसके हाथ पर गड़ा दिए, वो फिर भी हंसता ही रहा। वो उम्र में मुझसे काफी बड़ा था। जब तक शादी के मायने समझने लायक हुई, पति कमाने-खाने के लिए दूसरे शहर चला गया। साल में दो बार आता, तभी हमारा एक लड़का हुआ। कुछ सालों बाद मेरे आदमी ने आना कम करते-करते एकदम बंद कर दिया। मैं खूब रोती। फिर तसल्ली देती कि मेरे पास मेरा बेटा है, कई लुगाइयों के पास ये सुख भी नहीं। बेटे की शादी की तो पति को ढूंढने की बहुत कोशिश की। गांव से कई आदमी उस शहर और उस कारखाने भेजे, जहां वो रहा करता था। कुछ पता नहीं चला। शादी के बाद बेटा भी घर से अलग हो गया। बीच-बीच में कभी घर आता है तो देखता है कि मेरे पास क्या नहीं है।

मां की आंखें कितनी कमजोर हो गई हैं

ऐसे ही एक बार मेरे नाम की जमीन को बेचकर टीवी खरीद दी। मैंने बाकी पैसों का हिसाब मांगकर उसे गुस्सा नहीं दिलाया। वो जैसा भी है, मुझे सबसे प्यारा है। उसी टीवी के कारण अब लोग मेरे घर आते हैं। इसी बहाने चार बोल कह-सुन लेती हूं। दिन-दोपहर में सारे वक्त घर के सामने बैठी रहती हूं ताकि आने-जाने वाले चेहरे देख सकूं। इस उम्र में जब शरीर कमजोर हो जाता है तो प्यार की जरूरत पहले से भी ज्यादा हो जाती है। मुझे बचपन में खेलने के लिए कोई नहीं मिला, न बुढ़ापे में कोई पास है। एक टीवी ही है, जिसके कारण मुझे चार चेहरे दिख जाते हैं। हालांकि मैं टीवी नहीं देख पाती हूं। नजर हर दिन के साथ धुंधला रही है। बेटे ने देखने के लिए टीवी तो दे दिया लेकिन ये देखना भूल गया कि उसकी मां की आंखें कितनी कमजोर हो गई हैं।

(साभार-news18)

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