क्या था उसरीचट्टी गोलीकांड, जिसमें देनी थी मुख्तार अंसारी को गवाही

पूर्वांचल के जरायम जगत के चार दशक के गैंगवार की कहानी

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पूर्वांचल के जरायम जगत में चार दशक से गैंगवार की कहानी के एक प्रमुख पात्र की मौत हो गई. इसके साथ ही जिसके किस्से लोग उसके जीते जी सुनाते थे आज वह खुद किस्सा बन गया. हम बात कर रहे हैं माफिया सरगना मुख्तार अंसारी की. इसके साथ ही गाजीपुर जिले का उसरीचट्टी गोलीकांड एक बार फिर चर्चा में आ गया. 15 जुलाई 2001 को मुख्तार अंसारी अपने निर्वाचन क्षेत्र मऊ जा रहा था. दोपहर 12.30 बजे उसरी चट्टी पर दोनों गिरोह का आमना-सामना हुआ था और एके 47 से बर्स्ट फायर झोंके गये थे.

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आरोप है कि हमला करनेवाले मुख्तार अंसारी का जानी दुश्मन और चौबेपुर क्षेत्र के धौरहरा गांव का निवासी बृजेश सिंह और उनके दाहिने हाथ त्रिभुवन सिंह के साथ गैंग के अन्य लोग थे. इस घटना की गूंज प्रदेश की राजधानी लखनऊ से लगायत पूर्वांचल के जिलों में सुनी गई. कहते हैं बृजेश सिंह ने मुख्तार अंसारी को मारने के लिए ऐसा प्लान बनाया था, जिसमें मुख्तार के बचने की कोई गुंजाइश नहीं थी. गाजीपुर के उसरी चट्टी की ओर मुख्तार अंसारी अपने काफिले के साथ जा रहा था. तभी एक कार और एक ट्रक के जरिए मुख्तार को आगे और पीछे से घेरने की कोशिश हुई. तभी रेलवे फाटक बंद हो जाने के कारण हमलावरों की एक गाड़ी पीछे रह गई. कहते हैं कि ट्रक आगे था और मुख्तार की गाड़ी उसके पीछे थी. उसी समय ट्रक का दरवाजा खुला और दो युवक हाथ में अत्याधुनिक हथियार लिए खड़े हो गए. इसके बाद ताबड़तोड़ फायरिंग झोंक दी गई. मुख्तार अंसारी ने इस हमले में खुद को तो बचा लिया, लेकिन उसके गनर समेत गुर्गे मारे गए. वहीं इस हमले में बृजेश सिंह का भी एक गुर्गा मारा गया. इस बर्स्ट फायरिंग में तीन लोगों की जान गई थी. मुख्तार की ओर से भी जवाबी फायरिंग की गई थी. इस मामले में मुख्तार अंसारी ने बृजेश सिंह और उनके करीबी त्रिभुवन सिंह के खिलाफ मुकदमा दर्ज कराया था. यह मुकदमा गाजीपुर की अदालत में विचाराधीन है. इस मामले में 21 वर्ष बाद पिछले साल जनवरी महीने में मुख्तार अंसारी के खिलाफ भी हत्या का मुकदमा दर्ज किया गया था. उसरीचट्टी कांड के बाद मुख्तार अंसारी ने मीडिया के सामने यह दावा किया था कि उसकी ओर से क्रास फायरिंग में बृजेश सिंह मारा गया. इस दावे के बाद बृजेश सिंह के मौत की अफवाह उड़ने लगी. मीडिया के लोग बृजेश सिंह के परिवारवालों से सवाल करने लगे लेकिन कोई माकूल जवाब नही मिला. यानी बृजेश सिंह फिर भूमिगत हो गये थे. बता दें कि यह वही उसरीचट्टी कांड है जिस मामले को लेकर दो दिन पहले ही मुख्तार अंसारी के भाई और सांसद अफजाल अंसारी ने यह कहते हुए शासन-प्रशासन पर आरोप लगाया था कि उनके भाई को जेल में मारने की साजिश रची जा रही है. उन्होंने मुख्तार अंसारी के खाने में जहरीला पदार्थ मिलाने का आरोप लगाया था. कहा था कि ऐसा इसलिए किया जा रहा है ताकि ऊसरी चट्टी कांड में बृजेश सिंह और त्रिभुवन सिंह के खिलाफ मुख्तार अंसारी गवाही न दे सकें. उन्हें भरोसा था कि मुख्तार की गवाही से बृजेश सिंह को सजा हो सकती थी.

मुड़ियार के जमीन विवाद से शुरू हुआ गैंगवार

पूर्व एमएलसी बृजेश सिंह और पूर्व विधायक मुख्तार अंसारी की अदावत के किस्से बनारस की गलियों से लेकर गाजीपुर और मऊ-बलिया के चट्टी चौराहों तक आज भी सुने जाते हैं. वाराणसी से सटे गाजीपुर में अस्सी के दशक में मुड़ियार गांव के रामपत सिंह प्रधान और उनके भतीजों और साधु व मकनू के बीच पांच बीघा जमीन को लेकर विवाद शुरू हुआ. मामला तूल पकड़ा तो साधु और मकनू ने लाठियों से पीट कर रामपत सिंह और फिर कुछ समय बाद उनके तीन बेटों की भी हत्या कर दी. रामपत और उनके तीन बेटों की हत्या के बाद उनके दो बेटों त्रिभुवन सिंह और राजेंद्र सिंह को गांव छोड़ने पर विवश होना पड़ा. इधर मुख्तार भी मोहम्मदाबाद क्षेत्र में अपना साम्राज्य बढ़ाने में लगा था. इसी दौरान मुख्तार के पिता सुभानअल्लाह और सच्चिदानंद राय के बीच सरेराह विवाद हो गया. सच्चिदानंद ने सुभानअल्लाह को भला-बुरा कह दिया था. इस पर मुख्तार ने सच्चिदानंद राय की हत्या की साजिश रच दी. साधु और मकनू ने सच्चिदानंद राय की हत्या में मुख्तार की मदद की थी. इसके बाद मुख्तार साधु और मकनू को अपना गुरु मानने लगा. साधू और मकनू के कहने पर मुख्तार ने रामू मल्लाह की मदद से सैदपुर क्षेत्र के मेदिनीपुर के रणजीत सिंह की हत्या की. इसके बाद से साधू-मकनू और उनके गुर्गे मुख्तार का नाम पूर्वांचल में कुख्यात हो गया.

बृजेश सिंह के पिता की हुई थी हत्या

वर्ष 1984 में वाराणसी के धौरहरा गांव में बृजेश सिंह के पिता रवींद्रनाथ सिंह की हत्या बंशी और पांचू सहित अन्य लोगों ने की थी. बंशी और पांचू दोनों साधु और मकनू गिरोह से जुड़े थे. इसके बाद हरिहर सिंह, चंदौली गांव के सिकरारा गांव के पूर्व प्रधान रामचंद्र यादव सहित परिवार के सात लोग और साधु-मकनू सहित कई अन्य लोगों की गैंगवार में हत्याएं होती गईं. चौबेपुर थाना क्षेत्र के धौरहरा गांव के किसान परिवार के बृजेश सिंह के पिता रविंद्रनाथ सिंह बेटे को अफसर बनाना चाहते थे. यूपी कालेज के छात्र रहे बृजेश के पिता की 27 अगस्त 1984 को चाकू मारकर हत्या कर दी गई. हत्या का आरोप उनके राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों हरिहर सिंह, पांचू और उसके गिरोह के लोगों पर लगा. फिर तो बदले की आग धधकने लगी. 27 मई 1985 को हरिहर सिंह की हत्या हो गई. इसका आरोप बृजेश सिंह पर लगा. इस हत्या में पहली बार उस क्षेत्र में एके-47 का इस्तेमाल हुआ. पुलिस ने बृजेश सिंह के खिलाफ पहला मुकदमा दर्ज किया था और बृजेश सिंह फरारी की जिंदगी काटने लगा.

गोलियों की तड़तड़ाहट से दहल उठा था सिकरौरा गांव

तब के बनारस और आज के चंदौली जिले का सिकरौरा गांव 9 अप्रैल 1986 को गोलियों की तड़तड़ाहट से दहल गया था. आरोप है कि तब बृजेश ने पूर्व ग्राम प्रधान रामचंद्र यादव, उनके परिवार समेत पांच लोगों की गोली मारकर हत्या कर दी थी. इस मामले में पहली बार बृजेश सिंह जेल गया. 32 साल बाद 2018 में इस केस में सबूतों के अभाव में बृजेश सिंह बरी हो गया. इस जेल यात्रा के दौरान बृजेश सिंह और गाजीपुर के पुराने हिस्ट्रीशीटर त्रिभुवन सिंह की दोस्ती हो गई. यह वही दौर था जब मुड़ियार गांव में एक ही खानदान के बीच जमीन का विवाद गैंगवार की नींव डाल चुका था. एक तरफ साहिब सिंह गैंग का चहेता त्रिभुवन सिंह था. क्योंकि उसके पिता की इसी जमीनी की रंजिश में हत्या कर दी गई, हत्या का आरोप आरोप मकनू सिंह और उसके गैंग पर लगा. इसके बाद से छिड़े गैंगवार में बनारस और गाजीपुर के कई लोगों की जानें गईं और कई परिवार उजड़ गये.

साधु और साहिब सिंह की हत्या के बाद मुख्तार और बृजेश ने सम्भाली गिरोहों की कमान

एक ओर मकनू सिंह गैंग था, जिसमें साधु सिंह और मुख्तार अंसारी जैसे शार्प शूटर थे. दूसरी ओर साहिब सिंह गैंग, जिसमें त्रिभुवन सिंह और बृजेश सिंह थे. फिर इस कहानी में नया मोड़ आ जाता है बृजेश और त्रिभुवन के जरायम जगत के गुरू साहिब सिंह की कोर्ट में पेशी के दौरान हत्या कर दी गई. इसका आरोप मकनू गैंग के साधू सिंह और मुख्तार अंसारी पर लगा. मकनू सिंह की हत्या के बाद गिरोह की कमान साधु सिंह के हाथ में आ गई. इसी दौरान वर्ष 1988 में त्रिभुवन सिंह के भाई और हेड कॉन्स्टेबल राजेंद्र सिंह की भी हत्या कर दी गई. इसके आरोपित साधु सिंह और मुख्तार अंसारी रहे. गुरू साहिब सिंह और राजेंद्र सिंह की हत्या से बौखलाए त्रिभुवन सिंह और बृजेश सिंह अब साधु सिंह को मारने की फिराक में लग गये. बृजेश सिंह ने गैंग पर पकड़ मजबूत बना ली और पूर्वाचल में बृजेश सिंह की तूती बोलने लगी. वर्ष 1990 में बृजेश सिंह एकदम फिल्मी अंदाज में पुलिस की वर्दी पहनकर गाजीपुर कोतवाली थाने के बगल में जिला अस्पताल पहुंचा. उसने साधू सिंह को मौत के घाट उतारा और फरार होने में कामयाब हो गया. साधु की मौत के बाद इस गिरोह की कमान मुख्तार अंसारी के हाथ आ गई. यहीं से पूर्वांचल में मुख्तार अंसारी और बृजेश सिंह की अदावत आमने-सामने की हो जाती है. दोनों गैंग के बीच कोयला और रेलवे के ठेके को लेकर वर्चस्व की जंग शुरू हो गई. बताते हैं कि बृजेश सिंह ने लोहे के स्क्रैप से कारोबार की शुरुआत की और फिर कोयला, शराब से लेकर जमीन, रियल एस्टेट और रेत के धंधों में कामयाबी हासिल करता गया. फिर वाराणसी और गाजीपुर से शुरू कारोबार को बलिया, भदोही, झारखंड, छत्तीसगढ़ और ओडिशा तक फैलाया. उस बीच 1990 के दशक में बृजेश सिंह ने धनबाद और झरिया का रुख किया. उस समय के बाहुबली विधायक और कोयला माफिया सूर्यदेव सिंह का करीबी बन गया. उस दौरान बृजेश पर कई मुकदमें दर्ज हुए.

अंडरवर्ल्ड डान दाऊद इब्राहिम पर भी किया अहसान

जरायम जगत में दो गिरोहों की अदावत की जंग के दौरान बृजेश सिंह की मुलाकात तब के अंडरवर्ल्ड डॉन सुभाष ठाकुर से हो जाती है. मुंबई के अंडरवर्ल्ड पर वर्चस्व की लड़ाई में दाऊद इब्राहिम के बहनोई इब्राहिम पारकर की हत्या हो गई थी. इस हत्या का आरोप दूसरे डॉन अरुण गवली पर लगा. तब बृजेश सिंह ने बदले की आग में जल रहे दाऊद इब्राहिम की मदद की थी. 12 फरवरी 1992 को 20 से ज्यादा लोग तब के बॉम्बे के जेजे अस्पताल में घुस जाते हैं. कहा जाता है कि वेश बदलने में माहिर बृजेश सिंह डॉक्टर की वेशभूषा में पहुंचता है. अस्पताल के बेड पर लेटे और अरुण गवली के शूटर शैलेश हलदरकर की ताबड़तोड़ गोलिया बरसाकर हत्या कर दी जाती है. उस समय 500 राउंड से ज्यादा गोलियां चली थीं. दाऊद इब्राहिम के बहनोई इब्राहिम पराकर की हत्या का बदला लेने के लिए इस वारदात को अंजाम दिया गया था. फायरिंग में दो पुलिसकर्मी समेत कुछ लोगों की मौत हो गई थी. उस वारदात के बाद बृजेश सिंह पर टाडा के तहत केस चला. उस समय घोसी के सांसद और केंद्रीय ऊर्जा मंत्री कल्पनाथ राय भी टाडा की जद में आ गए थे. क्योंकि बृजेश और हत्यारे मुंबई में एनटीपीसी गेस्ट हाउस में रुके थे और बुकिंग ऊर्जा मंत्री की तरफ से कराई गई थी. बृजेश सिंह सबूतों के अभाव में उस कांड से 2008 में बरी हो गया था. इस घटना के बाद वह पूर्वांचल के गैंगस्टर से माफिया और डॉन बन गया था.

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