राज्यसभा की 58 सीटों के लिए देश के विभिन्न राज्यों की विधानसभाओं में शुक्रवार को मतदान हुआ. इस क्रम में यूपी की दस सीटों के लिए भी मतदान ने तेजी पकड़ी. यहां संख्या बल के हिसाब से भाजपा की आठ व सपा की एक सीट पक्की थीं. दसवीं सीट के लिए भाजपा और बसपा में टक्कर कांटे की रही. दोनों ओर से दावे-प्रतिदावे किये जाते रहे. भाजपा विपक्षी गठबंधन में सेंध लगाने में कामयाब रही. दसवीं सीट पर लड़ रहे बसपा उम्मीदवार भीमराव आंबेडकर व भाजपा उम्मीदवार अनिल अग्रवाल दोनों को ही मिले एक-एक वोट रद हो गये. भाजपा की रणनीति यह भी थी कि उसके दसवें उम्मीदवार को जिताने के लिए वह दो विधायकों को गैरहाजिर करा दे पर उसने ऐसा नहीं किया. इस तरह दोनों को ही 37-37 वोटों की दरकार थी.
सपा ने अपने समर्पित विधायक बसपा को दिये
इसके पूर्व अटकलें थीं कि मायावती ने अखिलेश यादव से अपने कैंडिडेट भीमराव अंबेडकर के समर्थन के लिए 10 समर्पित विधायकों को अलॉट करने को कहा. उसमें से उन्होंने नौ वोटों की लिस्ट बीती रात में ही दे दी थी. 19 विधायकों के साथ मायावती ने अपने उम्मीदवार को जिताने के लिए एसपी के 10, कांग्रेस के 7 और आरएलडी के एक विधायक का सहारा लिया.
क्या रिटर्न गिफ्ट मांगा था माया ने?
गोरखपुर और फूलपुर के लोकसभा उपचुनाव में एसपी कैंडिडेट को समर्थन देकर जीत दिलाने वाली बीएसपी चीफ मायावती को रिटर्न गिफ्ट जया के बलिदान से भी मिल सकती थी. समाजवादी पार्टी के पास कुल 47 विधायक थे, एक राज्यसभा सीट के लिए 37 वोटों की जरूरत थी. यदि समाजवादी पार्टी की ओर से 10 पक्के वोट वाले विधायक बीएसपी को दे दिए जाते तो उसकी अपनी उम्मीदवार जया बच्चन के खिलाफ क्रॉस वोटिंग का खतरा था. इन 37 विधायकों में एसपी छोड़ बीजेपी में जाने वाले सांसद नरेश अग्रवाल के बेटे नितिन अग्रवाल भी शामिल थे.
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दरअसल आठ राज्यसभा उम्मीदवारों को आसानी से जीत दिलाने की क्षमता रखने वाली बीजेपी ने नौंवां कैंडिडेट अनिल अग्रवाल को उतारकर सभी पार्टियों के समीकरणों को मुश्किल कर दिया. इसीलिए चुनाव पर पूरे देश की निगाहें लग गयी थीं.
अखिलेश के लिए अग्निपरीक्षा
अखिलेश के लिए दिक्कत यह थी कि यह राज्यसभा चुनाव एसपी-बीएसपी के संभावित गठबंधन की अग्निपरीक्षा जैसी थी. यदि एसपी की ओर से छोटी सी भी चूक हुई तो यह मायावती के लिए चिंता की बात होती और गठबंधन की संभावनाएं भी इससे क्षीण होतीं.
मायावती को उन्हीं के विधायक ने दिया पहला झटका
इस चुनावी घमासान में बीएसपी सुप्रीमो मायावती को बड़ा झटका शुक्रवार को तब लगा जब उन्नाव की पुरवा सीट से बीएसपी विधायक अनिल सिंह ने वोटिंग से पहले मीडिया से बातचीत में कहा कि वह योगी आदित्यनाथ के साथ हैं. इसके साथ ही राज्यसभा चुनाव में पहली क्रॉस वोटिंग हो गयी. इससे साफ हो गया कि बीजेपी, बीएसपी के खेमे में सेंधमारी करने में कामयाब हो गयी है.
इससे पहले बीएसपी की ओर से कुल 17 विधायकों ने शुक्रवार को राज्यसभा की एक सीट के लिए अपने वोट डाले. इन विधायकों में आजमगढ़ की सगड़ी सीट की एमएलए वंदना सिंह का वोट भी शामिल हैं, जिनके गुरुवार शाम तक बीजेपी के पक्ष में जाने की अटकलें लगाई जा रही थीं.
कांग्रेस विधायकों ने बीएसपी के लिए वोटिंग की
कांग्रेस पार्टी के भी सात विधायकों ने विधानसभा में हुई वोटिंग में अपना मतदान किया. बताया जा रहा है कि कांग्रेसी विधायकों ने एक साथ बीएसपी के प्रत्याशी के समर्थन में वोटिंग की.
गठबंधन बचाने की चुनौती
दूसरी तरफ एसपी मुखिया अखिलेश यादव की पूरी कोशिश थी कि किसी तरह गठबंधन को बचाया जाये और बीएसपी उम्मीदवार भीमराव आंबेडकर को राज्यसभा पहुंचाया जाए. अखिलेश की रणनीति यह भी थी कि अगर सेंधमारी हुई तो जया बच्चन के बदले में आंबेडकर को जिताया जाए. पर ऐसा करने की नौबत नहीं आयी.
सूत्रों के मुताबिक अखिलेश ऐसा मान रहे थे कि जया अगर राज्यसभा नहीं पहुंचीं तो भी पार्टी की सेहत पर कोई फर्क नहीं पड़ेगा लेकिन भविष्य में बीजेपी का मुकाबला करने के लिए गठबंधन की संभावनाएं बलवती होंगी. इसका कारण भी है जेल में बंद एसपी के हरिओम यादव और बसपा के मुख्तार अंसारी को कोर्ट से मतदान की अनुमति नहीं मिली और विपक्षी वोट कम हुए.
अखिलेश को मिला राजनीति चमकाने का मौका
ठीक इसी हालत में अखिलेश को अपनी राजनीति चमकाने का मौका मिल गया. आंबेडकर को जिताकर अखिलेश गठबंधन को मजबूत करना चाहते थे, वहीं दलित वोटरों में भी संदेश देना आसान होता.
मुलायम जैसा दांव व अखिलेश की कूटनीति
अगर देखा जाये तो अखिलेश के पिता मुलायम सिंह चतुर रजनीतिज्ञ होने के साथ ही संबंधों का निर्वहन भी बखूबी करने की कला में निपुण हैं. यह गुण नयी परिस्थितियों में अखिलेश में स्वाभाविक तौर पर तो आ ही गये हैं, वे भविष्य में मायावती की गैरमौजूदगी में दलित वोटों को अपने पाले में खींचने की रणनीति में इसी राज्यसभा चुनाव के जरिये आगे बढ़ना चाहते हैं. मुलायम के लिए राजनीति भी सर्वोपरि थी और बंगाल में ममता बनर्जी के साथ हाथ मिलाकर भी वे अपने स्वार्थ के चलते अलग हो गये थे. अमर सिंह का उनका साथ भी ऐसी ही कहानी कहता है. यही नहीं अखिलेश को आगे बढ़ाने में शिवपाल को किनारे करना भी उनकी रणनीति का ही एक हिस्सा कहा जाता है. बीते विधानसभा चुनाव में ‘दो लड़कों’ के नारे से राहुल गांधी को किनारे करना भी अखिलेश की चतुरता की कहानी कह रहा है जो मुलायम सिंह की कूटनीति को आगे बढ़ाने की ही परंपरा है. पिता की चतुरता भरी राजनीति को अखिलेश इस राज्यसभा चुनाव के जरिये नया आयाम देने को आतुर दिखे.
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