बाबा दरबार से टूट गई महंत परिवार की आखिरी डोर, 37 साल पुरानी है ये ‘लड़ाई’
वाराणसी। बाबा काशी विश्वनाथ मंदिर के दरबार में सप्त ऋषि आरती को लेकर हुए हंगामे के बाद मंदिर प्रशासन और महंत परिवार की लड़ाई सतह पर आ गई। कहा तो यहां तक जा रहा है कि इस एपिसोड के बाद, मंदिर से जुड़ी महंत परिवार की आखिरी डोर भी टूट गई। सप्त ऋषि आरती के बहाने जिला प्रशासन अपने उस मंसूबे में कामयाब रहा, जो सालों से उसने पाल रखा था। जानकार बता रहे हैं कि आरती से महंत परिवार के सदस्यों को हटाने का मतलब सीधे-सीधे मंदिर से उनकी बेदखली है। अब मंदिर पर सिर्फ और सिर्फ प्रशासन का वर्चस्व है।
सुर्खियों में रहा था सोना चोरी प्रकरण-
महंत परिवार और काशी विश्वनाथ मंदिर प्रशासन की इस लड़ाई को समझने के लिए हमे थोड़ा फ़्लैशबैक में जाना पड़ेगा। बताते हैं कि अंजाम तक पहुंची इस लड़ाई की नींव 37 साल पहले पड़ी थी। साल 1983 में बाबा दरबार में सोना चोरी की एक घटना हुई। चोरों ने मंदिर में लगे सोने पर हाथ साफ कर दिया था। इस घटना कर बाद खूब बवाल हुआ। जांच पड़ताल में आरोप महंत परिवार और उससे जुड़े पंडों पर लगे। उस दौर में इस घटना ने खूब चर्चा बटोरी। मामला कोर्ट-कचहरी तक पहुंचा।
कांग्रेसी दिग्गज के घर हुई थी पंचायत-
उस दौर में यूपी और केंद्र में कांग्रेस की सरकार थी। बनारस के एक बड़े कांग्रेसी ने इस मामले में दखल दिया। उनके घर पर महंत परिवार और जिला प्रशासन की पंचायत हुई। जिसके बाद मंदिर की व्यवस्था और पूजा से महंत परिवार को हटाने का निर्णय लिया गया। हालांकि सप्त ऋषि आरती महंत परिवार के लोगों को करने की छूट दी गई। बताते हैं कि चोरी प्रकरण के बाद राज्य सरकार के आदेश पर वाराणसी जिला प्रशासन ने मंदिर का अधिग्रहण कर लिया। दूसरे शब्दों में कहे तो सालों से बाबा दरबार में चली आ रही महंत परिवार की बादशाहत छीन ली गई।
महंत परिवार कराता था सप्त ऋषि आरती-
तमाम विवादों के बाद भी महंत परिवार के सदस्य ही शाम के वक्त होने वाली सप्त ऋषि आरती करते थे। लगभग तीन दशकों तक ये परंपरा चलती रही। लेकिन पिछले 3 से 4 सालों से लेकर विवाद गहराने लगा। महंत परिवार के समर्थकों का आरोप है कि जब से विशाल सिंह ने मंदिर प्रशासन की कमान संभाली है, आये दिन विवाद की स्थिति बनी रहती है। मंदिर प्रशासन बात-बात में महंत परिवार को सप्त ऋषि आरती से बेदखल करने की धमकी देता रहता था। यही नहीं काशी विश्वनाथ कॉरिडोर के नाम पर मकानों के अधिग्रहण में भी मंदिर प्रशासन ने महंत परिवार की अनदेखी की।
ऐसे कामयाब रहा मंदिर प्रशासन-
मंदिर से जुड़े लोग बताते हैं कि साल 2020 की शुरुआत में ही मंदिर प्रशासन ने महंत परिवार को किनारे लगाने के लिए बिसात बिछानी शुरू कर दी थी। होली के ठीक पहले रंगभरी के दिन जिस रजत जड़ित पालकी में बैठकर बाबा गौना के लिए जाते है, उस पालकी को मंदिर प्रशासन ने रोक लिया। जबकि रंगभरी एकादशी के बाद पालकी महंत परिवार को वापस कर दी जाती थी, लेकिन इस बार ऐसा नहीं हुआ। प्रशासन ने पालकी को मंदिर में ही रोक लिया और उसे महंत परिवार को देने से इनकार कर दिया। इस घटना को लेकर भी खूब हंगामा मचा। बाद में मंदिर प्रशासन पालकी देने पर राजी हुआ।
महंत परिवार पर अफवाह फैलाने का आरोप-
पहले से ही ताक में लगे मंदिर प्रशासन को 6 मई को एक बड़ा मुद्दा हाथ लग गया। स्थानीय दैनिक अखबार ने एक खबर छपी, जिसके मुताबिक रेड जोन में स्थित कैलाश महादेव मंदिर का गुम्बद गिर गया है। ये खबर महंत परिवार के हवाले से छापा गया। इस खबर के बाद मंदिर प्रशासन का गुस्सा सातवें आसमान पर पहुंच गया। सीईओ विशाल सिंह ने मंदिर की सुरक्षा में लगे एसपी पत्र लिखते हुए सप्त ऋषि आरती करने वाले सभी अर्चकों का पास कैंसिल कर दिया। इसके बाद जो तमाशा हुआ, उसे हर किसी ने देखा।
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