वाराणसी के बाबतपुर में बैठकर जौनपुर का आलोक सॉफ्टवेयर बनाता था. इस साफ्टवेयर की मदद से टोल प्लापजा पर चूना लगाने का खेल चल रहा था और सरकार को भनक तक नहीं लग सकी. जब इस मामले की जानकारी हुई तो आनन फानन स्पेीशल टास्क फोर्स सक्रिय हुई. केंद्र सरकार पूरे देश में नेशनल हाईवे बनाकर लोगों के आवागमन को सुरक्षित व सुगम बना रही है. इसी क्रम में सुविधा लेने की एवज में सरकार नेशनल हाईवे पर टोल का आवंटन करती है, जिसके माध्यम से गाड़ियों से टोल की वसूली फास्टैग के द्वारा की जाती है. लेकिन पिछले दो वर्षों से टोल में इतना बड़ा घोटाला हो गया कि किसी को पता कर नहीं चला. सूत्र बताते हैं कि एक अलग सॉफ्टवेयर के माध्यम से पूरे देश में करीब 42 टोल प्लाजा पर द्वारा 120 करोड़ का घोटाला किया गया.
एसटीएफ कर रही जांच, कई गिरफ्तार…
चौंकाने वाली बात यह है कि उक्त सॉफ्टवेयर बनाने वाला जौनपुर का निवासी है और वह वाराणसी में रहकर पिछले दो वर्षों से खेल कर रहा था. जांच में एसटीएफ ने मिर्जापुर से चार टोलकर्मियों को हिरासत में लिया है, जिनके माध्यम से उक्त सॉफ्टवेयर पूरे देश के अलग-अलग टोल प्लाजा पर भेजा गया था. इस घोटाले के बाद टोल को लेकर तमाम बातें निकलकर सामने आई है. जानकारी के अनुसार एसटीफ की लखनऊ इकाई ने टोल प्लाजा से टैक्स वसूलने में 120 करोड़ रुपये के घोटाले का पर्दाफाश कर मिर्जापुर के लालगंज स्थित अतरैला टोल प्लाजा से चार कर्मचारियों को गिरफ्तार किया है.
बता दें कि जिस सॉफ्टवेयर के माध्यम से घोटाला किया गया, उसका इस्तेमाल देश के 42 टोल प्लाजा पर हो रहा है. यूपी के बरेली, गोरखपुर और असम, राजस्थान, मध्य प्रदेश आदि राज्यों में भी इसी साफ्टवेयर के जरिये गड़बड़ी की जा रही है. फिलहाल एसटीएफ मामले की जांच कर रही है.
टोल प्रबंधन और अधिकारियों पर भी गिर सकती है गाज…
यह प्रकरण अब तूल पकड चुका है और इसमें टोल प्रबंधन और अधिकारियों पर भी गाज गिर सकती है. टोल टैक्स घोटाले का मुख्य आरोपी आलोक सिंह को बताया गया है, जो जौनपुर का रहने वाला है. सूत्रों के मुताबिक एसटीएफ ने अपनी तहरीर में आलोक सिंह को सॉफ्टवेयर का निर्माता बताया है. दो साल से इस सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल किया जा रहा है. आलोक को गिरफ्तार किया गया है. वह लंबे समय से वाराणसी में रहकर गड़बड़ी कर रहा था. एसटीएफ की पूछताछ से पता चला है कि फर्जीवाड़े की जानकारी एनएचएआई के अफसरों को भी थी, लेकिन वे कुछ नहीं कर रहे थे. एक-एक अफसर की भूमिका की जांच भी की जा रही है.
अतरैला टोल प्लाजा पर छापा मारकर एसटीएफ ने चार कर्मचारियों को दबोचा, फर्जी रसीद बना कर करते थे वसूली. पांच मोबाइल, दो लैपटॉप, एक प्रिंटर और 19580 रुपये बरामद किया गया है. एसटीएफ के निरीक्षक दीपक सिंह ने बताया कि बाबतपुर एयरपोर्ट के पास से साफ्टवेयर तैयार करने वाले आलोक सिंह को पकड़ा गया. आलोक ने बताया कि वह दो साल से यह कार्य कर रहा है. उसका साफ्टवेयर उत्तर प्रदेश सहित देश के 42 टोल प्लाजा पर काम कर रहा है.
टोल कर्मी, ठेकेदार, कंपनी के बीच पैसे का बंटवारा
पूछताछ में आलोकन ने एसटीएफ को बताया कि साफ्टवेयर टोल प्लाजा अतरैली शिव गुलाम टोल प्लाजा है. वहां दिखा सकता है कि यह कैसे कार्य करता है. लालगंज पुलिस को सूचना देकर एसटीएफ ने 500 मीटर पहले गाड़ी खड़ी करके बिना फास्टैग वाले वाहन को भेजकर साफ्टवेयर का इस्तेमाल होते देखा. इसके बाद एसटीएफ ने टोल प्लाजा से दो कर्मचारियों मनीष मिश्रा और राजीव कुमार उर्फ राजू को पकड़ा.
हर्रो टोल प्लाजा प्रयागराज, अम्दी टोल प्लाजा लोहरा आमगढ़, बागपत, बरेली, गोरखपुर, सौनौली, शामली, अतरैली शिव गुलाम टोल प्लाजा मिर्जापुर, मध्य प्रदेश, राजस्थान, तेलंगाना, झारखडं, पंजाब, गुजरात, असम, पश्चिम बंगाल, उड़िसा, हिमांचल, छत्तीशगढ़, जम्मू कश्मीर में साफ्टवेयर काम कर रहा था. साफ्टवेयर को मोबाइल फोन, लैपटाप, पेन ड्राइव, डिवाइस के द्वारा इंस्टाल करते हैं.
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आलोक ने बताया कि रिद्धि-सिद्धी कंपनी के साथ वह पहले सावंत और सुखांत के साथ यह काम कर रहा था. बताया कि उसने एमसीए किया है. साफ्टवेयर बनाने की अच्छी जानकारी है. उसने एएनवाई नामक साफ्टवेयर तैयार किया है. इसमें टोल संबंधी सारी जानकारी है. बताया कि पूर्व में टोल पर कार्य करने के दौरान कंपनियों के संपर्क में आया था. आरोपी आलोक ने बताया कि एक टोल से एक दिन में साफ्टवेयर के डाटाबेस के अनुसार 40 से 50 हजार रुपये की अवैध रूप से कमाई होती है.
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दो साल में ऑफलाइन और आनलाइन 120 करोड़ रुपये की आमदनी हुई है. टोल प्लाजा के कांट्रेक्टर को साफ्टवेयर से लाभ के मामले में आलोक ने बताया कि देश के सभी टोल प्लाजा पर फास्टैग अनिवार्य कर दिया गया है. जो वाहन बिना फास्टैग गुजरते हैं तो शुल्क और पेनाल्टी वसूला जाता है. इसके लिए टोल के किसी लेन पर इस साफ्टवेयर को इंस्टाल करा दिया जाता है. जो भी गाड़ी बिना फास्टैग के जाती है, उसको पास कराकर फर्जी रसीद काटकर दोगुना पैसा वसूल लेते हैं. यह पैसा कंपनी, ठेकेदार व टोल प्लाजा के कर्मचारियों में बंट जाता है.