वाराणसी: महात्मा गांधी अध्ययनपीठ की पूरी कहानी, बापू के विचारों की अद्भुत कड़ी..

महात्मा गांधी अध्ययन पीठ विश्वविद्यालय में एक विभाग के रुप में कर रहा काम...

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2 अक्टूबर को पूरे देश में राष्ट्र पिता महात्मा गांधी का जन्मदिन मनाया जा रहा है. ऐसे में इस साल यानी कि 2024 में बापू की 155वीं जयंती मनाई जा रही है. बच्चा-बच्चा जानता है कि आजादी की जंग में बापू का अहम योगदान रहा है. उनके द्वारा किए गए संघर्षों के चलते ही हम भारतवासी आज स्वतंत्र रूप से सांस ले रहे हैं. महात्मा गांधी और काशी का रिश्ता बहुत ही अनोखा और यादगार रहा है, जो आज भी इतिहास के पन्नों में दर्ज है.
महात्मा गांधी के द्वारा दिए गए वचनों को जीवित रखने के लिए काशी में भी कई काम किए गए. इसके जरिए लाखों युवाओं और लोगों को प्रेरणा मिल सके. उनमें से ही एक हैं, महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ जहां महात्मा गांधी से जुड़ी कई बातें और यादें देखने को मिल जाती है. जहां गांधी जी की धरोहर के रूप में विश्वविद्यालय में महात्मा गांधी अध्ययन पीठ बनाया गया है. इसके जरिए गांधी जी के संघर्षों की झलकियां और तमाम उनसे जुड़ी कहानियां आज भी जीवित हैं जो आज भी लाखों युवाओं को प्रेरणा देने का काम कर रही है…

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इस बीच जब हमने महात्मा गांधी अध्ययन पीठ के निर्देशक महेंद्र मोहन वर्मा से बातचीत की तो उन्होंने महात्मा गांधी से जुड़े कई किस्से और महात्मा गांधी का काशी से कितना लगाव था और भी कई चीजें बताईं… आइए जानते हैं.

महात्मा गांधी अध्ययन पीठ के निर्देशक महेंद्र मोहन वर्मा ने बताया कि महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ जो पहले काशी विद्यापीठ के नाम से विख्यात था. इसकी स्थापना 10 फरवरी 1921 को राष्ट्ररत्न बाबू शिवप्रसाद गुप्त द्वारा की गई. इसका शिलान्यास राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के कर कमलों से हुआ.

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उस समय इस संस्था की स्थापना का उद्देश्य राष्ट्र की आवश्यकता के अनुरूप हिन्दी भाषा में उच्च शिक्षा प्रदान करना एवम् भारत में ब्रिटिश शासन के विरुद्ध असहयोग आन्दोलन की कार्यशाला बनाना था. काशी विद्यापीठ ने स्वतंत्रता आन्दोलन में सक्रिय भूमिका निभायी और भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री जैसे अनेक सपूतों एवं मेधावी छात्रों को जन्म दिया.

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गांधी अध्ययनपीठ की स्थापना से मिला विश्वविद्यालय को नया आयाम

स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात् ब्रिटिश शासन द्वारा उपेक्षित जन समस्याओं एवं राष्ट्र के निर्माण की ओर ध्यान आकृष्ट किया गया. काशी विद्यापीठ के निरीक्षक सभा के सदस्यों, जिसमें सर्वश्री पं. जवाहर लाल नेहरू जे.बी. कृपलानी, पट्टाभि सीतारम्मैया जैसे देश के उद्भट नेतागण शामिल थे. समाज विज्ञान संस्थान, जो बाद में 15 अगस्त 1947 को समाज कार्य विद्यालय के नाम से विख्यात हुआ, की स्थापना का निर्णय लिया.

Mahatma Gandhi... - Mahatma Gandhi Kashi Vidyapith Varanasi

यह देश में टाटा समाज विज्ञान संस्थान, मुम्बई के बाद दूसरा सर्वाधिक प्राचीन संस्थान है जो राष्ट्र के पुर्ननिर्माण एवं विकास हेतु बहुत पहले से अपेक्षित स्नातक, परास्नातक एवं शोध स्तर पर पाठ्यक्रमों का संचालन कर रहा है. 1973 से यह विश्वविद्यालय का एक प्रमुख संकाय बन गया.

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गांधी अध्ययनपीठ की स्थापना से संकाय को नया आयाम मिला है. गांधी अध्ययनपीठ की स्थापना कर विश्वविद्यालय ने विद्या के सिद्धपीठ में जहां एक ओर कड़ी पिरोया, वहीं समाजोत्थान एवं पुनर्निर्माण की अपनी अहम् भूमिका भी निभाई.

महात्मा गांधी अध्ययन पीठ के बारे में

उन्होंने बताया कि महात्मा गांधी अध्ययन पीठ विश्वविद्यालय में एक विभाग के रुप में काम करता है. जिसका उद्देश्य का उद्देश्य देश में व्याप्त हिंसा, अपराध, भेदभाव, असमानता, शोषण, भौतिक संस्कृति और तीव्र औद्योगीकरण, नगरीकरण के अन्य सामाजिक आर्थिक समस्याओं, मूल्य संघर्ष को मिटाना है.

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अध्ययन पीठ में गांधी-विचार को जीवित किया जाता है

इसके साथ अध्ययन पीठ गांधी-विचार आज के परिप्रेक्ष्य में इन तमाम समस्याओं को एक चुनौती के रूप में लेता है और इनके समाधन के लिए विकल्प प्रस्तुत करता है. जिसके जरिए गांधी जी के विचारों का शिक्षा प्रदान करना, संवर्द्धन एवं प्रचार करना और वर्तमान संदर्भ में उनकी प्रासंगिकता खोजना है.

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उन क्षेत्रों एवं आयामों की खोज करना जिसके द्वारा समस्याओं के निराकरण के सुदृढ़ बनाया जा सके. सामाजिक संरचना को अधिक विकास और सामाजिक उत्थान के मुद्धों पर राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर संगोष्ठी एवं अधिवेशन आयोजित करने हेतु मंच एवम् सुविधाएं प्रदान करना है.

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देश-विदेश के छात्रों को दी जाती है तमाम सुविधाएं

वहीं इसके माध्यम से देश-विदेश के छात्रों को अध्ययन एवं शोध कार्य के लिए सुविधाएं प्रदान की जाती है.कल्याण और विकास अभिकरणों के कार्मिकों को उनकी कार्यक्षमता और कौशल बढ़ाने के लिए अनुस्थापन एवं अल्पकालिक प्रशिक्षण कार्यक्रमों का आयोजन करना है.

इसके साथ ही सरकारी और गैर सरकारी विकास कार्यक्रमों के समन्वय में सहयोग करना और इन कार्यक्रमों को सतत् सम्बल प्रदान करना एवम् प्रसार करना भी है. इसके साथ ही सबसे अधिक वर्ग, जाति, रंग और धर्म के पूर्वाह से परे साम्प्रदायिक सौहार्द विशेषकर सर्वधर्म समभाव की भावना का विकास करना है.

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