तीन तलाक पर ‘सु्प्रीम’ फैसला, आज से खत्म हुआ ट्रिपल तलाक

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सुप्रीम कोर्ट ने  तीन तलाक पर फैसला सुनाते हुए अपने फैसले में तीन तलाक को असंवैधानिक करार दे दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को आदेश दिया है कि अगले 6 महीने के अंदर कानून बनाकर इसे पूरी तरह से खत्म करे। इसी के साथ मुस्लिम महिलाओं को ंतीन तलाक जैसी महामारी से मुक्ति मिल गई है। सुप्रीम कोर्ट का ये फैसला बहुमत से ंलिया गया है। पीठ के तीन जजों ने इस गलत करार दिया है।

….जब शुरू हुआ तीन तलाक के खिलाफ विरोध

तीन बार तलाक कहने पर तलाक को मान्यता देने वाली इस परंपरा के खिलाफ आवाजें काफी सालों से उठती चली आई हैं। लेकिन, इसका नया ‘दौर’ 7 अक्टूबर, 2016 को शुरू हुआ। इसी दिन राष्ट्रीय विधि आयोग ने 16 सवालों की एक सूची प्रकाशित की, जिसमें भारत के लिए एक समान नागरिक संहिता की जरूरत पर लोगों की राय मांगी गई है। सभी धर्मों में प्रचलित निजी कानूनों में लोगों की लैंगिक (Gender) समानता के संबंध में राय जानने के अलावा एक सवाल ‘तीन तलाक’ के संबंध में भी पूछा गया. जनता से पूछा गया है कि क्या ट्रिपल तलाक की प्रथा को जारी रखना चाहिए या खत्म करना चाहिए या फिर इसमें संशोधन करना चाहिए।

मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने जतायी नाराजगी

‘मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड’ ने कानूनी पैनल के इस प्रयोग की आलोचना की। मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड का कहना है कि विधि आयोग स्वतंत्र रुप से काम नहीं कर रही, जिसने उसी दिन सुप्रीम कोर्ट में ट्रिपल तलाक कानून का विरोध किया। इस मुद्दे पर दायर याचिका के जवाब में केंद्र ने कहा है कि इस प्रथा को धर्म के अहम हिस्से के रुप में नहीं माना जा सकता है।

जानें क्या है मुस्लिम बोर्ड

मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (AIMPLB) की स्थापना 1973 में कई सम्मानित इस्लामिक विद्वानों ने की थी. इसमें जाने-माने मौलाना अली मियां, मौलाना मिन्नत उल्लाह रहमानी, काजी मुजाहिदुल इस्लाम और मौलाना अब्दुल करीम पारिख शामिल थे. इनको चुना नहीं गया था, लेकिन ये लोग अधिकतर मान्यताओं के प्रतिनिधि थे।

जानें कब-कब हुई सुनवाई

2015: इसी साल सुप्रीम कोर्ट ने खुद ही मुस्लिम समुदाय की महिलाओं के हालात के बारे में चिंता जाहिर की, साथ ही कहा कि मुस्लिम समुदाय में तीन तलाक, निकाह हलाला जैसी प्रथाओं पर सुनवाई होनी चाहिए। इसके बाद अब तक सिर्फ तीन तलाक के मुद्दे पर ही सुनवाई हो सकी है।

30 मार्च, 2017: तीन तलाक से जुड़ी कुल 7 याचिकाओं पर सुनवाई कर रहे सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले की सुनवाई को संविधान पीठ को सौंप दिया। 7 याचिकाओं में से 5 याचिका मुस्लिम महिलाओं ने दायर की थी, जिनमें मुस्लिम समुदाय में तीन तलाक की प्रथा को चुनौती देते हुए इसे असंवैधानिक बताया गया।  

11 मई-18 मई, 2017: सुप्रीम कोर्ट में लगातार 6 दिन सुनवाई चली, दोनों पक्षों को अपनी-अपनी बात रखने का समय दिया गया। जानते हैं दोनों पक्षों के कुछ खास दलीलों के बारें में:

कपिल सिब्बल ने अपनी-अपनी दलीलें दीं

पहले दिन सुप्रीम कोर्ट ने दोनों पक्ष के सामने रखे दो सवाल ये है कि सुप्रीम कोर्ट ने पूछा है कि ट्रिपल तलाक और हलाला इस्लाम का मूल हिस्सा है या नहीं? और दूसरा ये कि क्या इन दोनों मुद्दों को महिला के मौलिक अधिकारों से जोड़ा जा सकता है या नहीं? सुप्रीम कोर्ट ने पूर्व केंद्रीय मंत्री सलमान खुर्शीद को सुनवाई में मदद के लिए न्याय मित्र के तौर पर शामिल किया है।  सुप्रीम कोर्ट में इन 6 दिन की सुनवाई के दौरान केंद्र की ओर से अटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी ने और ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड की ओर से कपिल सिब्बल ने अपनी-अपनी दलीलें दीं।

तलाक तलाक तलाक नहीं कहेगा…

सुनवाई के दूसरे दिन, वरिष्ठ अधिवक्ता अमित सिंह चड्ढा ने इस मामले में याचिकाकर्ताओं में से एक सायरा बानो की ओर से तीन तलाक की परंपरा के खिलाफ बहस शुरू की और कहा कि यह इस्लाम का मूलभूत तत्व नहीं है और इसलिए इसे खत्म किया जा सकता है। वहीं कपिल सिब्बल जो मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के वकील ने कहा कि ये कोई मुद्दा नहीं है क्योंकि कोई भी समझदार मुस्लिम अचानक एक दिन सुबह उठकर तलाक तलाक तलाक नहीं कहेगा। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में कड़ी टिप्पणी करते हुए कहा कि ‘तीन बार तलाक मुस्लिमों में शादी खत्म करने का ‘‘सबसे खराब और अवांछनीय रूप’’ है।

अटार्नी जनरल मुकुल रोहतगी की इस दलील को अस्वीकार्य बताया

’ सुनवाई के चौथे दिन कपिल सिब्बल ने कहा तीन तलाक की प्रथा 637 ई. से है। इसे गैर-इस्लामी बताने वाले हम कौन होते हैं। मुस्लिम बीते 1,400 सालों से इसका पालन करते आ रहे हैं। ये आस्था का मामला है। इसलिए इसमें संवैधानिक नैतिकता और समानता का कोई सवाल नहीं उठता। वहीं केंद्र सरकार ने कहा कि अगर तीन तलाक समेत सभी तरह के तलाक की प्रथा को खत्म किया जाता है तो मुस्लिम समुदाय में निकाह और तलाक के नियमन के लिए नया कानून लाया जाएगा। हालांकि सिब्बल ने अटार्नी जनरल मुकुल रोहतगी की इस दलील को अस्वीकार्य बताया। बता दें कि केंद्र सरकार ने इस मामले में दिए हलफनामे में कहा था कि वो तीन तलाक की प्रथा को वैध नहीं मानती है और वह इसे जारी रखने के पक्ष में नहीं है।’

फैसले को चुनौती देने की बात कही थी

तीन तलाक में सुप्रीम कोर्ट का फैसला इसलिए भी अहम है क्योंकि 8 दिसंबर, 2016 को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने इस प्रचलन को पूरी तरह से असंवैधानिक करार दिया था। कई राजनीतिक पार्टियों ने इस फैसले का स्वागत किया वहीं, ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने इस फैसले पर कड़ी प्रतिक्रिया देते हुए फैसले को चुनौती देने की बात कही थी।

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