टॉप कमांडर के शव को उनके परिवार को नहीं सौपा जाएगा!

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कश्मीर घाटी में आतंकी कमांडरों के ऑपरेशन के बाद उनके शवों को उनके परिवारजनों (family) को देने की रवायत को खत्म करने पर आने वाले समय में विचार किया जा सकता है। सुरक्षा महकमे के बड़े सूत्रों के मुताबिक़ कश्मीर घाटी में आतंकियों की स्थानीय भर्ती अभियान पर रोक लगाने के लिए इस तरीके के बड़े कदम को उठाने पर विचार किया जा रहा है।

आतंकियों को अनजान जगह पर दफन करने पर विचार

सूत्रों के मुताबिक़ कश्मीर घाटी में लश्कर, जैश और हिज्बुल के टॉप कमांडर के मारे जाने पर उनके शव को उनके परिवार को नहीं सौपा जाएगा। बल्कि ऑपरेशन के दौरान ढेर किये जाने के बाद आतंकियों को अनजान जगह पर दफन करने पर विचार हो रहा है।

सूत्रों के मुताबिक़ आतंकी कमांडरों के जनाजे में बड़ी संख्या में स्थानीय युवा शामिल होंते हैं। जिनका ब्रेनवाश कर आतंकी कमांडर अलग-अलग आतंकी संगठन में शामिल करने की कोशिश करते रहते हैं।

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ख़ुफ़िया एजेंसियों ने हाल में केंद्र सरकार को एक रिपोर्ट दी थी, कि कश्मीर घाटी में आतंकी जनाज़ों में आतंकी भर्ती का अभियान धड़ल्ले से चलता है जिसको LeT, JeM, HM और अल बद्र के कमांडर चलाते हैं।

 आतंकी कमांडरों के शव उनके नजदीकियों को न देकर…

यही नहीं जनाजे में शामिल आतंकी कमांडर युवाओं को व्हाट्सएप पर जनाजों के वीडियो भी भेजते हैं और उसका आतंकी भर्ती में इस्तेमाल करते हैं। यही वजह है कि सुरक्षा एजेंसियां अब ऑपरेशन आल आउट में ढेर किये गए टॉप आतंकी कमांडरों के शव उनके नजदीकियों को न देकर किसी गुप्त स्थान पर दफन करने पर विचार कर रही हैं।

वहीं अगर आतंकियों की भर्ती के साल दर साल आंकड़ों की बात करें तो वर्ष 2018 में विभिन्न आतंकी संगठनों में शामिल होने वाले युवाओं की संख्या 80 है। 2017 में जम्मू-कश्मीर के कुल 126 युवाओं ने आतंक का हाथ थामा है। हालिया आए आंकड़ों के मुताबिक 2010 के बाद यह सर्वाधिक संख्या रही है।

वहीं 2010 से 2013 के बीच आतंकी संगठन में शामिल होने वाले युवाओं की बात करें तो यह क्रमशः 54, 23, 21 और 6 रही है।

2014 से कश्मीर घाटी में आतंकियो के खिलाफ नए तरीके के इंटेलिजेंस इनपुट के आधार पर ऑपरेशन किए गए। इस दौरान 2014 में यह संख्या 53 हुई, जबकि 2015 में बढ़कर 66 हो गई।

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