पढ़ें, पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की हत्या का सच
आखिर क्या खास है इस 21 मई में जो हम आज तक इसे भुला नहीं पाए हैं? 21 मई को आखिर क्या हुआ था कि इस दिन जिसने भारत की राजनीति को हमेशा के लिए बदल कर रख दिया? आज ही वह मनहूस दिन था जब देश ने अपने एक प्रधानमंत्री को वक्त से पहले खो दिया था।
हम बात कर रहे हैं राजीव गांधी की। ये बात हम सभी जानते हैं कि श्रीपेंरबदूर में एक धमाके में राजीव गांधी की मौत हो गई थी, मगर आज आपको राजीव की हत्या से जुड़े उन तमाम पहलुओं से आपको रू-ब-रू करवाएंगे जिनसे शायद आप अभी तक अनजान हैं।
प्रधानमंत्री बनने के तीन साल के भीतर श्रीलंकाई गृहयुद्ध खत्म करने के लिए राजीव गांधी ने श्रीलंका के राष्ट्रपति जे आर जयवर्धने के साथ एक शांति समझौता किया। इसमें इंडियन पीस कीपिंग फोर्स को लिट्टे औऱ दूसरे तमिल आतंकियों के हथियार डलवा कर शांति बहाल करनी थी पर दांव उलटा पड़ गया।
लिट्टे ने पीठ पर खंजर भोंक दिया
समझौते की शाम, श्रीलंकाई नौसैनिक विजीथा रोहाना ने राजीव गांधी पर हमला कर दिया। विजीथा ने बंदूक की बट राजीव पर दे मारी। कहा झाड़ू होती तो उससे भी मारता।
बाल-बाल बच गए थे राजीव
साफ था समझौते ने श्रीलंकाई तमिलों में राजीव गांधी के प्रति नफरत भर दी थी। इसी दौरान 1988 में राजीव गांधी ने मालदीव में तमिल संगठन PLOTE की तख्तापलट कोशिशों को भारतीय सेना भेज नाकाम करवा दिया।
तमिल आतंकियों में थी नाराजगी
तमिल आतंकियों में इसे लेकर भी खासी नाराजगी थी। नतीजा सामने है श्रीलंका से इंडियन पीस कीपिंग फोर्स की 1990 में पूरी वापसी के तुरंत बाद प्रभाकरन ने राजीव गांधी को मरवा दिया। हांलाकि लिट्टे अपने ऊपर लगे आरोपों से इनकार करता आया है।
प्रभाकरण ने बनाया प्लान
प्रभाकरण ने ही राजीव गांधी की मौत के प्लान का पूरा ताना बाना बुना और प्लान को पूरा करने की जिम्मेदारी चार लोगों को सौंपी गई। प्लान के मुताबिक दुनिया के सबसे खूंखार आतंकवादी प्रभाकरण से राजीव की हत्या का फरमान लेने के बाद बेबी सुब्रह्मण्यम और मुथुराजा 1991 की शुरुआत में चेन्नई पहुंचे।
बेबी और मुथुराज को चेन्नई में ऐसे लोग तैयार करने थे जो मकसद से अंजान होते खासतौर पर राजीव गांधी के हत्यारों के लिए हत्या से पहले और हत्या के बाद छिपने का ठिकाना दे सकें।
बेबी सुब्रह्मण्यम ने सबसे पहले शुन्यूज फोटो एजेंसी में काम करने वाले भाग्यनाथन और इसकी बहन नलिनी पैसे और मदद के झांसे में लिया। वहीं दूसरी तरफ मुथुराजा ने दो फोटोग्राफर रविशंकरन और हरिबाबू चुने।
मुथुराजा ने हरिबाबू को राजीव गांधी के खिला भड़काना शुरू किया कि अगर वो 1991 के लोकसभा चुनाव में जीत कर सत्ता में आए तो तमिलों की और दुर्गति होगी। राजीव की हत्या के लिए साजिश की एक-एक ईंट जोड़ी जा रही थी, शातिर सूत्रधार जुड़ने वाले हर शख्स के दिमाग में राजीव गांधी के खिलाफ भीषण नफरत भी पैदा कर रहा था। राजीव गांधी विरोधी भावनाएं लोगों के दीमाग में भरी जाने लगीं नलिनी राजीव गांधी के खिलाफ पूरी तरह तैयार हो गयी थी
वो धमाका जिसने राजीव गांधी को मार डाला
लोकसभा चुनाव का दौर था राजीव गांधी की मीटिंग 21 मई को श्रीपेरंबदूर में तय हो गई। श्रीपेरंबदूर में रैली की गहमागहमी थी। राजीव गांधी के आने में देरी हो रही थी। बार-बार ऐलान हो रहा था कि राजीव किसी भी वक्त रैली के लिए पहुंच सकते हैं।
पिछले छह महीने से पक रही साजिश अपने अंजाम के बेहद करीब थी। एक महिला सब इंस्पेक्टर ने उसे दूर रहने को कहा पर राजीव गांधी ने उसे रोकते हुए कहा कि सबको पास आने का मौका मिलना चाहिए। उन्हें नहीं पता था कि वो जनता को नहीं मौत को पास बुला रहे हैं। नलिनी ने माला पहनाई, पैर छूने के लिए झुकी और बस साजिश पूरी हो गई।
जांच दल के मुखिया की माने तो केन्द्र सरकार को इल्म ही नहीं था कि राजीव को किसने मार दिया। बावजूद इसके कि चेन्नई और जाफना के बीच चल रहे संदेशों में एक भारतीय नेता की हत्या की साजिश पकड़ ली गई थी।
आईबी औऱ गृह मंत्रालय ने जारी किया था अलर्ट
इसके अलावा आईबी और गृह मंत्रालय भी बराबर राजीव की सुरक्षा को लेकर अलर्ट जारी कर रहा था पर राजीव की जान को दिल्ली पुलिस के दो सब इंस्पेक्टरों के भरोसे छोड़ दिया गया था।
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