ममता की ऐंटी-बीजेपी रैली में साथ नजर आएंगे बागी और विपक्ष

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आज कोलकाता में एक छत के नीचे पीएम मोदी के विरोधी एकजुट होंगे। जिसमें यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री और सपा के अध्यक्ष अखिलेश यादव से लेकर भाजपा के बागी नेता शॉटगन भी शामिल है। दरअसल, ये सभी पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की ऐंटी-बीजेपी ‘यूनाइटेड इंडिया रैली’ में शामिल होने पहुंच रहे हैं। 

पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की ऐंटी-बीजेपी ‘यूनाइटेड इंडिया रैली’ के लिए लोगों की भीड़ जुटनी शुरू हो गई है। अलग-अलग सियासी दल के नेता एक दिन पहले यानी शुक्रवार को ही कोलकाता पहुंच चुके हैं। इस ‘संयुक्त विपक्षी रैली’ में अधिकतर गैर-एनडीए दलों के शामिल होने की उम्मीद है। यह देखना दिलचस्प रहेगा कि रैली में विपक्षी एकता पर मुहर लगती है या नहीं।

‘संयुक्त विपक्षी रैली’ ऐतिहासिक ब्रिगेड परेड मैदान में होगी

तृणमूल कांग्रेस की ‘संयुक्त विपक्षी रैली’ ऐतिहासिक ब्रिगेड परेड मैदान में होगी। इस रैली में शामिल होने के लिए अखिलेश यादव (एसपी), सतीश मिश्रा (बीएसपी), शरद पवार (एनसीपी), चंद्रबाबू नायडू (टीडीपी), एम.के. स्टालिन (डीएमके), एच.डी. देवेगौड़ा और उनके बेटे कुमारस्वामी (जेडीएस), मल्लिकार्जुन खड़गे और अभिषेक मनु सिंघवी (कांग्रेस), अरविंद केजरीवाल (आप), फारूक अब्दुल्ला और उनके बेटे उमर अब्दुल्ला (नैशनल कॉन्फ्रेंस), तेजस्वी यादव (आरजेडी), अजीत सिंह और जयंत चौधरी (आरएलडी) हेमंत सोरेन (जेएमएम), शरद यादव (लोकतांत्रिक जनता दल) ने सहमति जताई है और अधिकतर नेता पहुंच भी गए हैं।

लेफ्ट फ्रंट ने इस रैली से खुद को दूर किया हुआ है

इन दलों के साथ ही बीजेपी के बागी नेता यशवंत सिन्हा, शत्रुघ्न सिन्हा और अरुण शौरी भी मंच साझा करने के लिए कोलकाता पहुंच चुके हैं। हालांकि ओडिशा और तेलंगाना में सत्तारुढ़ बीजू जनता दल और तेलंगाना राष्ट्र समिति ने इस रैली से दूर रहने का फैसला किया है। गैर-एनडीए में सिर्फ यही दोनों दल हैं, जिन्होंने कोलकाता आने पर सहमति नहीं जताई। वहीं लेफ्ट फ्रंट ने इस रैली से खुद को दूर किया हुआ है।

‘देश नए प्रधानमंत्री का इंतजार कर रहा है

इस रैली में केंद्र में सत्तारूढ़ नरेंद्र मोदी सरकार को हराने के बारे में महत्वपूर्ण फैसला लिया जा सकता है। इस रैली में जुट रहे देश भर के विपक्षी दल अपना कोई सर्वमान्य नेता चुनेंगे या नहीं, इस बारे में अभी कुछ स्पष्ट नहीं है। हालांकि इस बारे में अखिलेश यादव ने इशारों में कहा। कोलकाता पहुंचने पर अखिलेश ने कहा कि ‘देश नए प्रधानमंत्री का इंतजार कर रहा है।’

कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी खुद इस रैली में शामिल नहीं हो रहे हैं। उन्होंने मल्लिकार्जुन खड़गे तथा अभिषेक मनु सिंघवी को कोलकाता भेजने का फैसला लिया है। क्षेत्रीय दलों को इकट्ठा कर रैली का आयोजन कर रही तृणमूल कांग्रेस ने कहा, ‘क्षेत्रीय राजनीतिक मजबूरियों को इस प्रस्तावित रैली से जुड़े बड़े राजनीतिक उद्देश्यों में नहीं मिलाना चाहिए।’

बता दें कि कांग्रेस खुद ही विपक्षी एकता के बीच सबसे बड़ी ताकत के रूप में उभरना चाहती है लेकिन मनु सिंघवी और खड़गे को भेजने के फैसले पर कोलकाता में कांग्रेसी नेताओं का कहना है कि विकल्प खुले हैं। उन्होंने कहा कि चुनाव बाद की स्थिति ऐसी हो सकती है कि कांग्रेस एसपी-बीएसपी और टीएमसी के गुट को नजरअंदाज न कर पाए।

रैली की मेजबानी कर रहीं ममता बनर्जी ने शुक्रवार को सभी नेताओं से मुलाकात की। केंद्र में तीसरे मोर्चे की सरकार चला चुके पूर्व पीएम एच.डी. देवेगौड़ा ने विपक्षी दलों को एक मंच पर लाने के ममता बनर्जी के प्रयास की सराहना भी की। इसके अलावा हाल ही में बीजेपी छोड़कर अपनी पार्टी बनाने की घोषणा कर चुके अरुणाचल प्रदेश के पूर्व सीएम गेगोंग अपांग ने भी ममता को ग्रेट लीडर करार दिया। वह भी रैली में मौजूद रहेंगे।

ममता बनर्जी की रैली को राष्ट्रीय स्तर पर विपक्षी पार्टियों का जबरदस्त समर्थन मिल रहा है लेकिन उनके अपने ही राज्य में स्थिति जरा विपरीत है। यहां लेफ्ट फ्रंट ने रैली से खुद को दूर कर लिया है तो वहीं पश्चिम बंगाल कांग्रेस के अध्यक्ष सोमेन मित्रा ने कहा कि रैली में शामिल होने का कोई कारण नहीं है क्योंकि उन्हें आमंत्रण नहीं मिला है।

इसी तरह बीजू जनता दल (बीजेडी) और टीआरएस भी रैली का हिस्सा नहीं होंगी क्योंकि वे कांग्रेस के साथ मंच साझा नहीं करना चाहते। बीजेपी प्रवक्ता और राज्यसभा सांसद प्रताप केशरी देब ने कहा, ‘हम कांग्रेस और बीजेपी दोनों से बराबर दूरी बनाए रखने की अपनी नीति पर अटल हैं।’

दिलीप घोष ने कहा, ‘राजनीति से रिटायरमेंट ले चुके…

दूसरी तरफ बीजेपी ने ममता बनर्जी की इस रैली को ‘सर्कस’ करार देते हुए मजाक उड़ाया है। बीजेपी की प्रदेश इकाई के अध्यक्ष दिलीप घोष ने कहा, ‘राजनीति से रिटायरमेंट ले चुके और थके हुए सभी पुराने नेता इस रैली में आ रहे हैं, जिनकी अपने प्रदेशों में ही पहचान सिमट रही है। जिन दलों को जनता नकार चुकी है, वे केवल लाइमलाइट के लिए इस सर्कस में आ रहे हैं।’

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