दक्षिणमुखी काले हनुमानजी के दर्शन को लगी कतार, शरद पूर्णिमा पर खुलता है मंदिर का पट

काशी के रामनगर किले में स्थित दक्षिणमुखी काले हनुमानजी के दर्शन के लिए उमड़ी श्रद्धालुओं की भीड़...

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रामनगर किले में स्थित दक्षिणमुखी काले हनुमानजी के दर्शन के लिए आज सुबह से ही श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ पड़ी. इस मंदिर का पट आम दर्शनार्थियों के लिए शरद पूर्णिमा के दिन ही खोला जाता है. वर्ष में सिर्फ एक बार दर्शन के लिए श्रद्धालुओं का तांता लगा रहा. खबर दिये जाने तक हजारों लोग दर्शन कर चुके थे और दर्शनार्थियों की कतार बढती ही जा रही थी. मंदिर के कपाट खुलते ही जय श्रीराम जय हनुमान और हर- हर महादेव के उद्घोष गूंजते रहे.

वर्ष में एक बार मिलता है दर्शन

प्रभु श्रीराम के राज्याभिषेक के बाद रामनगर किले में स्थित दक्षिणमुखी हनुमान का मंदिर भक्तों के दर्शन के लिए खोला गया है. यहां वर्ष में एक बार दर्शन मिलता है. आमतौर पर हनुमानजी की प्रतिमा पर सिन्दूरी रंग की होती है. हनुमानजी की प्रतिमा पर सिन्दुर का लेपन किया जाता है, लेकिन रामनगर में स्थित हनुमान की प्रतिमा काले रंग की है. रामनगर दुर्ग के दक्षिणी ओर पर स्थापित दक्षिणमुखी काले हनुमानजी के दर्शन के लिए भीड़ उमड़ती रही. मंदिर के कपाट खुलने से पहले से ही लोग दर्शन पूजन के लिए लोग भोर से ही कतारबद्ध हो गये. रामनगर की विश्व प्रसिद्द रामलीला राजगद्दी की झांकी और भोर की आरती वाले दिन ही यह मंदिर आम जनों के लिए कुछ ही घंटों के लिए खुलता है.

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अति दुर्लभ हनुमानजी की विश्व में अकेली प्रतिमा

अति दुर्लभ हनुमानजी की यह प्रतिमा अपने तरह की पूरे विश्व में अकेली प्रतिमा है. काले पत्थर की यह प्रतिमा हनुमान के प्रतिरूप माने जाने वाले वानर की अवस्था में विराजमान है. किसी भी तरफ से इसे देखने पर आपको लगेगा मानो यह प्रतिमा आपको ही ओर देख रही है. इस वानर रूपी काले हनुमानजी की प्रतिमा की सबसे ख़ास बात यह है कि इस प्रतिमा पर मानव शरीर पर पाये जाने वाले बाल की तरह रोंये भी हैं.

जानिए क्या है मान्याता

मान्यता है कि वर्षों पहले रामनगर के राजा को स्वप्न आया था कि किले के पिछली तरफ एक वानर रूपी हनुमानजी की प्रतिमा है. इसकी स्थापना वहीं करा दी जाए. दूसरे दिन तत्कालीन काशीनरेश ने खुदाई कराई और किले की पिछली तरफ गंगा किनारे यह प्रतिमा मिली और उसकी स्थापना वहीं करा दी गई. मान्यता है कि यहां दर्शन करने से असाध्य रोगों से मुक्ति मिलती है. काशी में कहावत है कि दक्षिणमुखी काले हनुमान जी का संबंध त्रेतायुग में श्रीराम-रावण युद्धकाल से है. रामेश्वरम् में लंका जाने के लिये जब भगवान राम समुद्र से रास्ता मांग रहे थे तब उस समय समुद्र ने पहले तो उन्हें रास्ता नहीं दिया. इसपर कुपित होकर श्रीराम ने बाण से समुद्र को सुखा देने की चेतावनी दी.

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इसपर भयभीत होकर प्रकट हुए समुद्र द्वारा श्रीराम से अनुनय-विनय किया गया. इसके बाद श्रीराम ने प्रत्यंचा पर चढ़ चुके उस बाण को पश्चिम दिशा की ओर छोड़ दिया. इसी समय बाण के तेज से धरती वासियों पर कोई आफत ना आए इसके लिये हनुमान जी घुटने के बल बैठ गये, ताकि धरती को डोलने से रोका जा सके. वहीं, श्रीराम के बाण के तेज के कारण हनुमानजी का पूरा देह झुलस गया. इस कारण उनका रंग काला पड़ गया. यह मूर्ति रामनगर किले में जमीन के अंदर कैसे आयी, ये किसी को नहीं पता. बाद में जब रामनगर की रामलीला शुरू हुई तो भोर की आरती के दिन मंदिर को आम जनमानस के लिए खोला जाने लगा. ये परंपरा सैकड़ों साल से जारी है.

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