सरकार-न्यायपालिका की खींचतान फिर आई आमने-सामने
सरकार और न्यायपालिका के बीच अधिकार क्षेत्र को लेकर होने वाली खींचतान अक्सर दिखाई देती रहती है। रविवार को एक बार फिर इसकी झलक देखने को तब मिली, जब कानून मंत्री रवि शंकर प्रसाद ने यह कहा कि न्यायपालिका के हद से आगे बढ़ने के कारण, शक्ति के संतुलन बने रहने पर दबाव है। रविशंकर प्रसाद ने यह बात संविधान दिवस पर आयोजित एक कार्यक्रम में कही। इस कार्यक्रम में राष्ट्रपति रामनाथ कोबिंद, चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी मौजूद थे।
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भारत के चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा ने भी इस बात का जवाब देने में देर नहीं लगाई। दीपक मिश्रा ने रविशंकर कुमार की टिप्पणी का जवाब देते हुए कहा कि सरकार शक्ति के वर्गीकरण को लेकर सहज नहीं है। उन्होंने साफ लहजे में कहा कि लोगों के मौलिक अधिकार से समझौता नहीं किया जा सकता। लोगों का अधिकार सर्वोपरि है। संविधान एक सुव्यवस्थित और जीवंत दस्तावेज है। उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट संवैधानिक संप्रभुता में विश्वास करता है।
यही धर्म है कि वह संवैधानिक धर्म का पालन करे
इस मौके पर चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया ने यह भी कहा, ‘सरकार को किसी गणितीय फॉर्म्युला के आधार पर परिभाषित नहीं किया जा सकता।’ उन्होंने कानून मंत्री की इस बात का भी खंडन किया कि न्यायपालिका अपने अधिकार क्षेत्र से बाहर जा रही है। सुप्रीम कोर्ट का मानना है कि वह संविधान के तहत मिले अधिकारों के अनुरूप ही काम कर रहा है और हम सभी कानून से बंधे हुए हैं। उन्होंने कहा कि देश के हर नागरिक का यही धर्म है कि वह संवैधानिक धर्म का पालन करे।
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इस मौके पर राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने कहा, ‘न्यायपालिका, कार्यपालिका और विधायिका के बीच नाजुक संतुलन को कायम रखन महत्वपूर्ण है। क्योंकि सब समान हैं। उन्होंने कहा कि राज्य के तीनों अंगों को अपनी स्वतंत्रता को लेकर सचेत रहना चाहिए और अपनी स्वायत्तता की रक्षा करने का प्रयास करना चाहिए।’ राष्ट्रपति ने कहा, हमारा संविधान गतिहीन नहीं है, बल्कि एक जीवंत दस्तावेज है। कोविदं ने कहा अदालतों में सुनवाई भी, अगर संभव हो तो ऐसी भाषा में होनी चाहिए जिसे साधारण याचिकाकर्ता भी समझ सकें। उन्होंने राज्य की तीनों शाखाओं के बीच संवाद में संयम और विवेक की जरूरत पर बल दिया।’ इस मौके पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी यहां आए लोगों को संबोधित किया।
(साभार – एनबीटी)