‘भैरव से भैरवी’ यानी काशी से वेलिंगटन तक की संगीत यात्रा 18 नवंबर से

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प्रिंसी साहू
संगीत किसी भाषा या पहचान की मोहताज नहीं होती। किसी देश की संस्कृति को आगे बढ़ाने का सबसे आचूक मार्ग संगीत ही है क्योंकि संगीत कानों से होते हुए सीधे लोगों के दिल में घर कर जाता है। इसी सोच के साथ ‘भैरव से भैरवी’ नामक कार्यक्रम का आगाज किया जा रहा है।
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संगीत मय ‘भैरव से भैरवी’ कार्यक्रम के जरिये देश में ही नहीं पूरे विश्व में संगीत यात्रा का शुभारंभ किया जायेगा। ये जानकारी प्रख्यात गायक पदमभूषण पण्डित राजन-साजन मिश्र ने पत्रकारों को प्रेसवार्ता के दौरान आज वाराणसी में दी।

2017 से शुरु होकर ये कार्यक्रम पूरे साल 2018 तक चलेगा
‘भैरव से भैरवी’ तक विश्‍व संगीत यात्रा का शुभारंभ काशी के प्राचीनतम अस्‍सी घाट पर 18 नवम्‍बर को सायंकाल 6 बजे होगा। रागों के प्रथम आयोजन की इस वंदना में प्रख्‍यात तबला वादक पं कुमार बोस और हारमोनियम पर पं धर्मनाथ मिश्र संगत करेंगे। 2017 से शुरु होकर ये कार्यक्रम पूरे साल 2018 तक चलेगा।

इस कार्यक्रम की शुरुआत
18 नवम्बर को वाराणसी से इस कार्यक्रम की शुरूआत होगी। इसके बाद 17 दिसम्बर को अहमदाबाद में दूसरा पड़ाव होगा। इसके बाद 2018 में कलकत्ता बैंगलोर, दिल्ली, गोवा, पुणे के अलावा मुंबई में यह कार्यक्रम होगा। तत्पश्‍चात साउथ अमेरिका में अप्रैल-मई में इसका आयोजन होगा। ये कार्यक्रम सिंगापुर, टोरंटो, न्यूयार्क, न्यूजर्सी, वाशिंगटन डीसी, शिकागो, लॉसएंजेल्‍स में जबकि साउथ अफ्रीका में लंदन के अलावा ऑस्ट्रेलिया के कई शहरों में होते हुए समापन न्यूजीलैंड के वेलिंगटन में होगा।
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कैसे हुई इस राग की शुरुआत
कहते हैं कि सबसे पहले भगवान शिव के मुख से निकलने वाला पहला राग भैरव था। तब से  इसकी शुरुआत हुई। पहला राग भैरव है जबकि अंतिम राग भैरवी को माना जाता है।
प्रचार प्रसार संगीत के माध्यम से अनवरत कर रहे हैं
पदमभूषण पण्डित साजन मिश्र के अनुसार पहला कार्यक्रम जर्मनी में 1992 में किया गया था। तब से वे देश की संस्कृति का प्रचार प्रसार संगीत के माध्यम से अनवरत कर रहे हैं।
जानिये क्या है
राग भारतीय शास्‍त्रीय संगीत की जननी है। देवभाषा संस्‍कृत से ही राग शब्‍द का उद्भव हुआ है। राग के आभा मंडल का दायरा अत्‍यन्‍त ही व्‍यापक और गहरा है। इसके विविध रंग हैं, जो विभिन्‍न ऋतुओं और कालक्रम के अनुरूप श्रोताओं के मनोभावों और संवेदनाओं को प्रभावित करते हैं। प्रत्‍येक राग की अपनी विशिष्‍टता और चरित्र है। शास्‍त्रीय विधान के अनुसार रागों की यात्रा प्रभात काल भैरव से प्रारंभ होकर रागिनी भैरवी पर पूर्ण होती है। भैरव से भैरवी तक रागों के सांगीतिक अनुष्‍ठान का क्रम है, जिसे विश्‍व संगीत यात्रा के माध्‍यम से प्रस्‍तुत करने का अभिनव प्रयास किया जाने वाला है।
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