लोक परंपरा में घुली जलेबा की मिठास, कजरी कल

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वाराणसी में रतजगा के दौरान जलेबा खाने की परंपरा है. बुधवार की शाम से शहरी तथा ग्रामीण इलाकों में जलेबा छानना शुरू हो गया. लोक मान्यता के अनुसार कजरी तीज के पहले महिलाएं रातभर जागरण कर मंदिरों में व अन्य सार्वजनिक स्थानों पर बैठकर सामूहिक रूप से कजरी का गायन करेंगी. लोक परंपरा के अंतर्गत मनाया जाने वाला त्योहार कजरी कल मनाया जाएगा. इसके लिए रतजगा आज की रात किया जाएगा. इसके साथ ही जलेबा अथवा अन्य मिष्ठान्न देवी-देवताओं को अर्पित स्वयं ग्रहण करेंगी.

सजी जलेबा की दुकानें, रातभर चहल पहल

कजरी रतजगा को लेकर आज शाम से ही जगह-जगह जेलेबा की दुकानें सज जाती हैं और इन पर खरीदारों की भीड़ भी होती है. कजरी रतजगा को लेकर कई मोहल्लों के मंदिरों में शृंगार के साथ ही भजन व कीर्तन के भी कार्यक्रम होते हैं. कजरी तीज के दिन जौ से ऊपजी जरई को देवी-देवताओं को चढ़ाकर स्वयं व अपने परिवार के लोगों को रखकर सर्वमंगल की कामना की जाती है. सनातन धर्म में कजरी तीज का व्रत सुहागिन महिलाओं के लिए बहुत महत्वपूर्ण होता है.

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इस दिन मनाते हैं यह पर्व

यह पर्व हर वर्ष भाद्रमास के कृष्ण पक्ष की तृतीया तिथि को मनाया जाता है. इस बार यह व्रत 22 अगस्तृ को मनाया जाना है. इस व्रत को करने से सुहागिनों को पति की लंबी उम्र और सुख-समृद्धि-आरोग्य और संतान सुख की प्राप्ति होती है. इस दिन सुहागिनें निर्जलाव्रत रखकर भगवान शिव और माता पार्वती की आराधना करती हैं. इससे माता पार्वती और भगवान शिव प्रसन्न होकर सुहागिनों की मनोकामना को पूर्ण करते हैं.

काशीवासी आज रातभर जागकर जलेबा की मिठास का आनंद लेंगे. वहीं, महिलाएं कजरी की परंपरा भी निभाएंगी. रतजगा में जलेबा खाने खिलाने का दौर शुरू हो गया है. जगह- जगह जलेबों की अस्थाई दुकानें लग गई हैं. दुकानों पर बड़े-बड़े जलेबे सजावट के लिए टांगे गए हैं . इन दुकानों पर जलेबे 140 रुपए प्रतिकिलो से लेकर 200 रुपए किलो तक बिक रहे. वाराणसी के इस उत्सव में हर कोई जलेबा का स्वागत लेता दिख रहा है. लंका स्थित पहलवान लस्सी की दुकान पर अपने बिहार के दोस्त अश्वनी के साथ पहुंची इटली की मारर्रीता ने भी जलेबा का स्वाद लिया. उन्होंने जलेबी बनाने वाले पहलवान से आज के दिन का महत्व भी जाना. रामनगर में वर्ष 1818 में कजरी मेले की शुरुआत हुई थी। बाद में शिवाला पर 14 दिनों का कजरी का मेला लगता था. उसमें काशी नरेश आते थे. कजरी दंगल जीतने वाले को पांच रुपये इनाम में देते थे.

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