गांव में शौचालय की ऐसी तस्वीर देख रह जायेंगे हैरान

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गांव गया था। गांव का परिवर्तन, सोच के परिवर्तन को देख कर मन खुश हो गया। लोग और मीडिया बिना देखे, बिना जमीनी यथार्थ को परखे “कौआ कान ले गया “जैसा सच परोसने का काम करती है जो सच से बहुत दूर होता है।”स्वच्छ भारत अभियान”ने भारत के गांवों की सोच बदल कर रख दी है। पहले हम गांव जाते थे तो शौच के लिये खेत में जाना पड़ता था।घर की बहू, बेटी, बेटा, सयाने, बुजुर्ग, बच्चे सभी लोटा उठाये भोर से ही खेतों का ओर निकल पडते।खुले में शौच हमारी आदत का हिस्सा बन चुका था।

शौच के लिये खेतों में जाना पड़ा था

हमें कोई परेशानी नहीं होती थी। अगर हम रात में यात्रा कर रहे होते थे तो सडकों के किनारे महिलाओं और बेटियों की समूह दिखाई पड़ी था लोटा लिये हुये।हम चुप चाप निकल लेते थे आंख बन्द करके।अभी हाल ही में गांव गया था तो मुझे लोटा लेकर शौच के लिये खेतों में जाना पड़ा था।हम सहज रूप से जाते भी थे।जब कान पर जनेऊ चढाये,हाथ में लोटा लिये लोेटे में हाथ साफ करने के लिये साफ मिट्टी भरे घर के दुआर पर लगे हैंड पम्प की ओर खेत से शौच कर वापस लौटते थे तो लोग -बाग देखते भी थे लेकिन हम सहज भाव से बिना संकोच के काम पूरा करते थे।

आम चूया रहता था घूम घूम बटोरते थे

कभी कभी शौच से दुआर के हैंण्ड पम्प तक कान पर जनेऊ चढाये, लोटे में साफ मिट्टी भरे आने में एक घंटे भी लग जाते।करते क्या थे कि आम के बडे बगीचे में घूमते थे।रात में जो पका हुआ आम चूया रहता था घूम घूम बटोरते थे। हम आम तोड़ते नही पकेे हुये अपने आप चूये हुये आम खाने के शौकीन थे।यह सुबह ही मिल सकता था।

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उसी में पक्षियों के झूठन या आधे खाये हुये आम भी बटोरते थे। उस आम का भी सेवन कर लेते थे।हम तोडने में विश्वास नहीं करते थे प्रकृति ने जो स्वाभाविक रूप से दिया उसे लेने में विश्वास करते थे। मतलब शौच भी करना आम के पेड द्वारा दिया पका हुआ आम बटोरना दैनिक जीवन मे सुबह का काम था।अब जब गया तो रात के समय सडकों पर शौच के लिये लाइन लगाये महिलायें एक दम से नहीं दिखाई पडीं। रात में कोई लोटा लेकर कोई नहीं दिखा।

आश्चर्य हुआ।जैसे ही गांव की सीमा में पहुंचा बल्व जलता हुआ छोटा सर्वजनिक शौचालय दिखा।महिला -पुरूष अलग अलग लिखा हुआ। पूछा तो पता चला कि गांव के लोगों ने खुद बनवाया बाहर से आने वाले लोगों के लिये।घर पहुंचा तो आदरणीय चाचा जी ने कहा कि हाथ मुंह धो लो मैं आदेश का पालन करने के लिये दुआर पर लगे हैंड पम्प की ओर बढा तो चाचा जी ने कहा अन्दर जाओ।मैंने कहा अन्दर? तो उन्होने कहा हां।मैं अन्दर गया तो आंख फटी की फटी रह गई।आधुनिक शौचालय,वाश रूम, बाथ रूम।मार्बल टाइल्स लगा हुआ सारी सुविधाओं से लैस।

गांवों मे जा कर इस विषय पर शोध करना चाहिए

वाश बेसिन पर हैंड वाश वह भी डीटाल का।साफ मिट्टी का एक भी टुकडा नहीं ।हाथ धोने के लिये।बाहर आ के चाचा से पूछा इतना बडा परिवर्तन?उन्होंने कहा —स्वच्छ भारत।मैने पूछा कि केवल हमारे घर में? कहा कि जाओ सभी बगल के घरों में देख आवो।मन नहीं माना उत्सुकता वश गांव के दस घरों में गया सभी घर में आधुनिक शौचालय, वाश रूम।किसी जगह हाथ धोने के लिये साफ मिट्टी का एक भी टुकडा नहीं मिला।मैं गांव का परिवर्तन देख आश्चर्य चकित था।चाचा जी ने बताया कि अब गांव का कोई भी खुले में शौच के लिये नहीं जाता।सभी ने अपने सामर्थ्य के अनुसार आधुनिक शौचालय बनाया है।यह परिवर्तन अकल्पनीय था।समझ में आया कि लोगों की सोच सामाजिक दायित्वों के प्रति कितनी तेजी से बदल रही।विश्वविद्यालयों के शोघार्थियों को गांवों मे जा कर इस विषय पर शोध करना चाहिए।

बीएचयू राजनीति शास्‍त्र विभाग के अध्‍यक्ष और काशी जर्नल आफ सोशल साइंस के संपादक,  कौशल मिश्र

      (ये लेख कौशल मिश्र के फेसबुक वॉल ले लिया गया है)

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