महज 13 साल की उम्र में किया ये कारनामा…

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हमारे समाज में आज भी लड़कियों को बहुत ही हीन-भावना से देखा जाता है। लड़कियों को ये मानकर चलते हैं लोग कि ये तो लड़की है और कुछ नहीं कर सकती है। लेकिन क्या लड़की होने से उनके अंदर  की ताकत और सपने पूरे करने  की इच्छा खत्म हो जाती है। क्या वो लड़की होने से देश के विकास में अपना योगदान नहीं दे सकती है।

क्या उन्हें सपने देखने की आजादी नहीं होती है। समाज की लाख बंदिशों को तोड़ते हुए हमारे देश की कुछ महिलाएं और बेटियों ने देश का नाम दुनिया के कोने-कोने तक  पहुंचाया है। जो काम कभी कोई पुरुष नहीं कर पाया उसे हमारे देश की बेटियों ने किया है।

कुछ ऐसी ही कहानी है पूर्णा की जिसने छोटी सी उम्र में विश्व की सबसे ऊंची चोटी पर चढ़कर देश का नाम दुनिया में फैलाया है। जो लोग ये सोचते हैं कि लड़कियां हर काम नहीं कर सकतीं उनके लिए पूर्णा एक मिसाल है, सिर्फ 13 साल की उम्र में एवरेस्ट की सबसे ऊंची चोटी छूकर पूर्णा ने साबित कर दिया कि लड़कियां कुछ भी कर सकती हैं।

सबसे कम उम्र में एवरेस्ट की सबसे ऊंची चोटी छूने वाली पूर्णा देश और दुनिया की पहली लड़की हैं। तेलंगाना के छोटे से पकाला गांव में रहने वाली पूर्णा देखते ही देखते एक ऐसी शख्स‍ियत बन गई हैं, जिसके बारे में जानने और जिसकी सफलता की कहानी सुनने को हर आदमी उत्सुक है।

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पूर्णा जिस समाज और जिस क्षेत्र से आती हैं, वहां कि 13 फीसदी से ज्यादा बच्च‍ियों का वजन सामान्य से बेहद कम है और लिटरेसी रेट सिर्फ 50 फीसदी है। ऐसे में पूर्णा ने न केवल अपने लिए रास्ता बनाया, बल्क‍ि अपने जैसी तमाम लड़कियों को सफलता का रास्ता दिखाया है।

खेतों में काम करने वाले पूर्णा के माता-पिता लक्ष्मी और देवीदास ने भी कभी ये नहीं सोचा था कि उनकी बेटी कुछ ऐसा कर दिखाएगी,‍ जिससे उनका सिर गर्व से ऊंचा हो जाएगा। पूर्णा का पूरा नाम मालावथ पूर्णा है।

माउंट एवरेस्ट की सबसे ऊंची चोटी को सबसे कम उम्र में छूने वाली दुनिया की दूसरी और भारत की पहली महिला हैं और दुनिया की पहली लड़की हैं। दरअसल, पूर्णा ने जब एवरेस्ट की चढ़ाई की तब वो 13 साल 11 महीने की थीं, जबकि जॉर्डन रोमेरो ने 13 साल 10 महीने की उम्र में यह कारनामा किया था।

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