जानें, एक रिक्शा चलाने वाला कैसे बन गया करोड़पति
अगर इंसान को कुछ करने औऱ आगे भड़ने की जिद हो तो कुछ संभव है क्योंकि जो लोग पीछे मुड़कर नहीं देखते हैं वही लोग अपनी मंजिल तक पहुंचते हैं। कुछ ऐसी ही कहानी है हमारे आज के इस सफल इंसान की, जिसने दो वक्त की रोटी कमाने के लिए दिल्ली की सड़कों पर रिक्शा चलाने का काम शुरू कर दिया। कहते हैं पेट की आग को बुझाने के लिए इंसान को कुछ न कुछ करना ही पड़ता है।
बता दें कि धरमवीर सिंह कंबोज दो वक्त की रोटी के लिए रिक्शा चलाते थे, लेकिन इन्होंने सिर्फ रिक्शा चलाने को ही अपनी किस्मत न मानकर परिस्थितियों से सीखते हुए इन्होंने कुछ अलग करने की सोची। और आज सलाना 40-50 लाख रुपए कमाते हैं। बात 1963 की है जब धर्मवीर सिंह ने जन्म लिया।
अपने पांच भाइयों में सबसे कम उम्र के यही थे। घर्मवीर को प्रकृति से बहुत ही लगाव था। धर्मवीर के घर की स्थिति कुछ ठीक नहीं थी इसलिए ये बचपन से ही नौकरी की तलाश में इधर-उधर भटकने लगे। नौकरी की खोज करते हुए दिल्ली पहुंच गए और दिल्ली की सड़कों पर रिक्शा चलाना शुरू कर दिया।
इसी दौरान धर्मवीर को साल 2004 में एक दिन किसानों के साथ इन्हें राजस्थान में ऐलोवेरा और आंवला प्रोसेसिंग यूनिट देखने का मौका मिला। घर्मवीर की जिंदगी ने यहीं से अपना रुख मोड़ लिया और हवाएं जो अभी तक इनके खिलाफ चल रही थीं , अब इनके साथ चलने लगी थी। लेकिन एक मुसीबत अब भी थी कि इतनी महंगी मशीनों को खरीदा कैसे जाएगा।
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लेकिन धर्मवीर के हौसले और जुनून ने घर्मवीर को पीछे नहीं हटने दिया। धर्मवीर ने फैसला किया कि खुद ही मशीन बनाएंगे। करीब दो साल की मेहनत के बाद धर्मवीर ने खुद के द्वारा मशीन बनाने में सफलता पाई। जो कि शुरुआती स्तर पर ऐलोवेरा का जूस निकालने के काम आई। इसके बाद उन्होंने मशीन में कुछ नए सुधार भी किए और मशीन को मल्टी पर्पज मशीन में बदल दिया।
धीरे-धीरे घर्मवीर के सपनों में रंग भरने लगे और देखते ही देखते धर्मवीर का काम भी दौड़ने लगा। जिसके बाद घर्मवीर ने कभी पीछे मुढ़कर नहीं देखा। आज धर्मवीर सफल उद्यमियों में शुमार रखते हैं। आज धर्मवीर दूसरे देशों को भी अपनी मशीन निर्यात करने लगे हैं।
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