‘सुपरकॉप’ हिमांशू राय जिनकी नजर से अपराधियों का बचना नामुमकिन था

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कुछ साल पहले मुंबई के ताज होटल के एक कमरे में आईपीएल केस को लेकर छह लोग आमने-सामने थे। मुंबई क्राइम ब्रांच की तरफ से हिमांशु रॉय, निकित कौशिक और नंदकुमार गोपाले और इनके सामने बैठे तीन लोगों का नेतृत्व जस्टिस मुकुल मुद्गल कर रहे थे। थोड़ा ‘हाय, हेलो’ के बाद जस्टिस मुद्गल ने हिमांशु रॉय की पर्सनैलिटी को गौर से देखा और मुस्कराते हुए उनसे पूछा, ‘मैंने किसी पत्रिका में आपकी पत्नी का एक इंटरव्यू पढ़ा था। उसमें उन्होंने कहा था कि आप बाहर से जितने मजबूत हो, दिल से उतने ही कमजोर हो। क्या यह सही है?’

‘मैं अंदर से बहुत भावुक हूं,

रॉय इस सवाल को सुनकर कुछ पल मुस्कराए और फिर बोले- ‘मैं अंदर से बहुत भावुक हूं, आप कह सकते हैं कि शायद इसलिए दिल से कमजोर हूं।’ इसके बाद रॉय ने 2013 के आईपीएल केस में मुंबई क्राइम ब्रांच द्वारा की गई जांच की पूरी फाइल मुद्गल कमिटी के सामने रखी, जिसमें बीसीसीआई के तब के अध्यक्ष एन. श्रीनिवासन के दामाद गुरुनाथ मयप्पन और अभिनेता विंदू दारा सिंह सहित दो दर्जन से ज्यादा लोग पकड़े गए थे।

इसलिए नहीं लगाया मकोका

आईपीएल केस की जांच से जुड़े रहे नंद कुमार गोपाले ने एनबीटी से बताया कि मयप्पन को गिरफ्तार करने या न करने को लेकर हिमांशु रॉय ने बहुत गहन विचार किया। सारे सबूत देखे, मयप्पन के खिलाफ वॉइस एविडेंस भी सुने और फिर बिना किसी दबाव के अपनी टीम को साफ निर्देश दिया कि इन्हें भी गिरफ्तार करना है। आईपीएल के उस केस में दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल ने मकोका लगाया था और दाऊद को आरोपी बनाया था। क्रिकेटर श्रीसंत सहित दर्जनों लोगों को मकोका में गिरफ्तार भी किया था, पर हिमांशु रॉय ने मुद्गल कमिटी को बताया कि हमारे केस में दाऊद का नाम कहीं नहीं आया, इसलिए हमने इस केस में मकोका नहीं लगाया।

दिल्ली पुलिस ने स्पॉट फिक्सिंग का केस बनाया था, जबकि मुंबई क्राइम ब्रांच ने सट्टेबाजी का। अर्से बाद बॉम्बे पुलिस ऐक्ट का ‘चीटिंग ऐट गेम’ सेक्शन जोड़ा गया। मुद्गल कमिटी हिमांशु रॉय के तर्कों से सहमत दिखी। आईपीएल केस में दिल्ली पुलिस का केस अदालत में ढह गया। उनके सभी आरोपी बरी हो गए, जबकि मुंबई क्राइम ब्रांच के केस में आरोपियों द्वारा तमाम अर्जियां देने के बाद भी कोर्ट ने किसी भी आरोपी को अभी तक डिस्चार्ज नहीं किया है।

नहीं आए दबाव में

खास बात यह है कि आईपीएल केस में पहली गिरफ्तारी बुकी रमेश व्यास की थी, जो मुंबई क्राइम ब्रांच द्वारा की गई थी, पर कुछ घंटे बाद दिल्ली पुलिस द्वारा की गई श्रीसंत की गिरफ्तारी देश में सुर्खियां बन गईं। क्या हिमांशु रॉय उसके बाद दबाव में आ गए थे? नंद कुमार गोपाले ने जवाब में पूरे केस को विस्तार से समझाया। उन्होंने कहा कि दरअसल, आईबी की तरफ से साल 2013 में देश की अलग-अलग पुलिस को अलर्ट आया था कि भारत के कुछ बुकीज (सटोरिए) पाकिस्तान के कुछ बुकीज के संपर्क में हैं।

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महाराष्ट्र में तब के एटीएस चीफ राकेश मारिया और मुंबई क्राइम ब्रांच चीफ हिमांशु रॉय ने जांच शुरू की। दिल्ली पुलिस ने भी अपनी अलग जांच शुरू की और 9 मई को वहां एफआईआर भी दर्ज की। मुंबई क्राइम ब्रांच ने 15 मई को बुकी रमेश व्यास और उसके साथियों को पकड़ा। पता चला कि रमेश व्यास ने 30 लाइनें पाकिस्तान के बुकीज से भारत के सटोरियों की जोड़ी थीं। भारत के बुकीज इन लाइनों के जरिए आगे सट्टा खेलते थे।

बुकीज की लाइनें डिस्टर्ब हुईं

रमेश व्यास की गिरफ्तारी के बाद दिल्ली में कई बुकीज की लाइनें डिस्टर्ब हुईं। उस रात मुंबई में राजस्थान रॉयल्स और मुंबई इंडियंस के बीच मैच था। दिल्ली पुलिस ने मैच खत्म के बाद रेड डाली और श्रीसंत सहित कई लोगों को गिरफ्तार किया। चूंकि एक केस में दो अलग-अलग पुलिस टीमें किसी एक खिलाड़ी को दो बार गिरफ्तार नहीं कर सकती थीं, इसलिए बकौल गोपाले, मुंबई क्राइम ब्रांच द्वारा जांच का दायरा बुकियों की तरफ ज्यादा केंद्रित हो गया। उसी दौरान महाराष्ट्र एटीएस ने भी कुछ कॉल्स इंटरसेप्ट कीं। उसी में अभिनेता विंदू दारा सिंह जांच के घेरे में आए। एटीएस ने मुंबई क्राइम ब्रांच से जानकारी शेयर की। विंदू को एक और बुकी प्रेम तनेजा के साथ गिरफ्तार किया गया। विंदू की कॉल इंटरसेप्ट में गुरुनाथ मयप्पन का नाम आया।

हिमांशु ने लिए थे कई बोल्ड फैसले

मयप्पन बड़ा नाम था। हिमांशु रॉय ने जब उनकी प्रोफाइल निकाली, तो पता चला कि वह बीसीसीआई के तब के अध्यक्ष एन. श्रीनिवासन के दामाद हैं। यही नहीं, तब वह चेन्नै सुपर किंग के टीम के मैनेजर व पदाधिकारी थे। हिमांशु रॉय ने जब अपनी जांच टीम से और जानकारी निकाली, तो पता चला कि मयप्पन विंदू दारा सिंह के जरिए सट्टा खेलते थे। विंदू एक और बुकी जुपिटर के संपर्क में थे। जुपिटर कालबादेवी में पकड़े गए रमेश व्यास से लाइनें लेता था। रमेश व्यास इन लाइनों को पाकिस्तान में बुकीज को ट्रांसफर करता था। इस केस में पाकिस्तान के अंपायर असद रऊफ का भी नाम सामने आया था। जांच में पता चला कि रऊफ कई साल से विंदू के संपर्क में थे।

मुद्गल कमिटी को दिखाया

गोपाल कहते हैं कि इस केस में हिमांशु रॉय ने कुछ बहुत ही साहसी फैसले लिए। उन फैसलों को मुद्गल कमिटी को दिखाया। मुद्गल कमिटी सुप्रीम कोर्ट के अंडर में काम कर रही थी। कमिटी ने हिमांशु रॉय की रिपोर्ट पढ़ी और सुप्रीम कोर्ट को दी। देश की अन्य जांच एजेंसियों ने भी इसी तरह मुद्गल कमिटी के सामने अपना पक्ष रखा। मुद्गल कमिटी की सिफारिशों पर अमल के लिए बाद में सुप्रीम कोर्ट ने अपने पूर्व चीफ जस्टिस लोढा की लीडरशिप में ऐक्शन कमिटी बनाई, ताकि आईपीएल से गड़बड़ियों की पूरी तरह से सफाई की जा सके।

प्रैक्टिकल अधिकारी थे

गोपाले कहते हैं कि आईपीएल विश्व का अकेला ऐसा टूर्नामेंट है, जिसमें इतने मैच बिना किसी लंबे ब्रेक के एक साथ खेले जाते हैं–50 से भी ज्यादा। इसमें खिलाड़ियों की बोली और इसके अलग-अलग राइट्स जितने करोड़ रुपये में बिकते हैं, यदि कुल हिसाब लगाया जाए, तो कई देशों का उतना अपना आम बजट भी नहीं होता। फिर यह टूर्नामेंट, हमेशा छुट्टियों में होता है, इसलिए सटोरियों द्वारा इसमें अतिरिक्त दिलचस्पी ली जाती है। इसीलिए अलग-अलग जांच एजेंसियों द्वारा सटोरियों के खिलाफ 2013 में और बाद में भी अभियान चलाया गया।

हिमांशु रॉय सटोरियों के खिलाफ उस अभियान का एक हिस्सा थे। वह बहुत प्रैक्टिकल अधिकारी थे। वह अपने अधिकारियों को काम के वही आदेश देते थे, जिन पर व्यवहारिक रूप से अमल हो सके। उनका अपने जूनियर अधिकारियों के प्रति दिल बहुत बड़ा था लेकिन इस दिल में इतना ज्यादा दर्द छिपा था, इसका अहसास हममें से किसी को नहीं था।

सोर्स : एनबीटी

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