कभी रघुराम राजन के गुरू और IIT का प्रोफेसर रहा ये शख्स, आज करता है ये काम

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दुनिया में इंसान खुद की खुशी औऱ ऐशो आराम के अलावा किसी दूसरे के बारे में सोचना भी मुनासिब नहीं समझता। आज की दुनिया में इंसान खुद को इतना व्यस्त कर रखा है कि किसी दूसरे के बारे में सोचने का मौका ही नहीं है उसके पास। सुबह से लेकर रात तक हर कोई बस अपनी परेशानियों और मुश्किलों को कम करने के लिए भाग-दौड़ करता रहता है। लेकिन कुछ लोग अभी भी हमारे बीच में हैं जो खुद के सारे ऐशो-आराम छोड़कर उन लोगों की मदद कर रहे हैं जो बेसहारा हैं।

इस चकाचौंध भरी दुनिया में किसी भी इंसान के बारे में आप ने नहीं सुना होगा जो खुद की आरामों से भरी जिंदगी छोड़कर जंगलों में आदिवासियों के बीच जाकर रहने लगे। हम बात कर रहे हैं आलोक सागर की..जो अगर चाहते तो कुछ भी कर सकते थे। , लेकिन उन्होंने मुश्किलों से भरा जीवन जीने की राह पर निकल पड़े।

आईआईटी दिल्ली से इंजीनियरिंग में डिग्री के साथ परास्नातक (masters) डिग्री और ह्यूस्टन से पीएचडी करने वाले आलोक सागर पूर्व आईआईटी प्रोफेसर हैं। साथ ही वे आरबीआई के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन के प्रोफेसर भी रह चुके हैं और अब 32 सालों से मध्य प्रदेश के दूरदराज आदिवासी गांवों में रहे हैं। वहां रहते हुए वे वहां के लोगों के उत्थान में अपनी बड़ी भूमिका निभा रहे हैं। किसी भी तरह के लालच और ज़रूरत को एक तरफ छोड़ कर वे पूरी तरह से आदिवासियों के उत्थान के लिए समर्पित हैं।

आईआईटी दिल्ली में पढ़ाते हुए, आलोक ने भारतीय रिज़र्व बैंक के पूर्व गवर्नर, रघुराम राजन सहित, कई छात्रों को तैयार किया था। प्रोफेसर के पद से इस्तीफा देने के बाद, आलोक ने मध्य प्रदेश के बेतुल और होशंगाबाद जिलों में आदिवासियों के लिए काम करना शुरू किया। पिछले 26 वर्षों से वे 750 आदिवासियों के साथ एक दूरदराज के गांव कोछमू में रह रहे हैं, जहाँ न तो बिजली है और न ही पक्की सड़क सिवाय एक प्राथमिक विद्यालय के।

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अब तक आलोक ने आदिवासी इलाकों में कुल 50,000 से अधिक पेड़ लगाए हैं और उनका विश्वास है कि लोग जमीनी स्तर पर काम करके देश को बेहतर सेवा दे सकते हैं। एक अंग्रेजी अखबार के साथ अपने इंटरव्यू में बात करते हुए आलोक कहते हैं, कि ‘भारत में, लोग इतनी सारी समस्याओं का सामना कर रहे हैं, लेकिन वे लोगों की सेवा करने और कुछ अच्छा काम करने की बजाय अपने आप को सबसे अधिक बुद्धिमान और बेस्ट साबित करने में लगे हुए हैं।’

देश दुनिया की बातें छोड़ कर आलोक खामोशी से अपना काम कर रहे हैं। पिछले साल बैतूल जिला चुनाव के दौरान स्थानीय अधिकारियों को उन पर संदेह हुआ और उन्हें बैतूल से चले जाने के लिए कहा गया। तब आलोक ने जिला प्रशासन के सामने अपनी विभिन्न शैक्षिक योग्यता की लंबी सूची का खुलासा किया। पत्रिका के अनुसार अधिकारी तब आश्चर्य चकित रह गये, जब सत्यापित करने पर उनकी सभी योग्यता सही पायी गयी।

आलोक की सादगी उनके जीवन को सचमुच प्रेरणादायक बनाती है। आलोक के पास सिर्फ तीन कुर्ते और एक साइकिल है। वे अपना पूरा दिन बीज इकट्ठा करने और उसे आदिवासियों के बीच वितरित करने में लगाते हैं। आलोक कई भाषाओं के साथ ही क्षेत्र में आदिवासियों द्वारा इस्तेमाल की जाने वाली भिन्न-भिन्न बोलियां बोल सकते हैं। ‘श्रमिक आदिवासी संगठन’ से बहुत निकट से जुड़े आलोक अपना अधिकांश समय आदिवासियों के उत्थान के लिए काम करते हुए बिताते हैं।

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