बोधगया में इस पेड़ का अलग है महत्व, साइंटिस्ट करते हैं पेड़ का इलाज

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दुनिया में कई धर्मों के लोग हैं जो अपने-अपने धर्म का सम्मान करते हैं। इन लोगों में अपने धर्म के प्रति गजब की आस्था और लगन होती है। देश में बौद्ध धर्म को मानने वालों के लिए बोधगया सबसे पवित्र तीर्थ स्थल  है। इस स्थल पर लाखों की संख्या में लोग आते हैं और अपनी मनोकामना पूरी करने के लिए भगवान बुद्ध की पूजा अर्चना और ध्यान करते हैं।

बोधगया में एक पीपल का पेड़ हैं जिसके नीचे भगवान बुद्ध ने ज्ञान पाया था। ऐसा माना जाता है कि बुद्ध पुर्णिमा के दिन इस पेड़ के नीचे बैठकर पूजा करने मात्र से सभी बाधाएं दूर हो जाती हैं। आप को बता दें कि इस पेड़ का पत्ता कभी भी आपको आसपास गिरा हुआ दिखाई नहीं देगा। सबसे पड़ी बात है कि ये पेड़ कभी बीमार न हो या फिर गिरे न इसके लिए भी खासा ध्यान दिया जाता है।

समय-समय पर इसके उपचार के लिए विदेशों से डॉक्टर की टीम आती है। इसके देखरेख के लिए देहरादून फॉरेस्ट रिसर्च इंस्टीट्यूट की मदद ली जाती है।मालूम हो कि इस पेड़ की देखरेख के लिए 21 दिसंबर 2015 को 10 साल के लिए देहरादून फ़ॉरेस्ट रिसर्च इंस्टीट्यूट से 10 साल का एग्रीमेंट किया गया है जिसके बदले रिसर्च सेंटर को 50 लाख रुपए दिए गए हैं।

इलाज के आते हैं साइंटिस्ट

पेड़ का इलाज करने के लिए समय-समय पर वैज्ञानिक आते रहते हैं। बोधि वृक्ष की देखभाल के लिए देहरादून के फॉरेस्ट रिसर्च इंस्टीट्यूट की मदद ली जा रही है। बोधगया मंदिर प्रबंधक समिति ने 21 दिसम्बर 2015 को इंस्टीट्यूट से 10 साल का एग्रीमेंट किया था। दस साल तक देखभाल के बदले 50 लाख रुपए दिए जाएंगे।

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पेड़ पर दवा और केमिकल लेप लगाया जाता है

वैज्ञानिक यहां साल में करीब चार बार आते हैं और वृक्ष पर दवा का छिड़काव, सुखी टहनियों की कटाई और केमिकल लेप लगाते हैं। इसके साथ ही पत्तों पर दवा का छिड़काव किया जाता है और देखा जाता है कि पेड़ को कोई बीमारी तो नहीं लगी है।

141 साल पुराना है ये पेड़

यह बोधि वृक्ष अपनी पीढ़ि का चौथा वृक्ष हैं। बताया जाता है कि 141 साल पहले यानी साल 1876 में महाबोधि मंदिर के जीर्णोद्धार के समय एलेक्जेंडर कनिंघम ने इस वृक्ष को लगाया था। इस दौरान खुदाई में लकड़ी के कुछ अवशेष भी मिले, जिन्हें संरक्षित कर लिया गया।

डीएनए टेस्ट में वृक्ष की हकीकत आई सामने

2007 में इस वृक्ष, लकड़ी के अवशेष सम्राट अशोक द्वारा श्रीलंका (अनुराधापुर) भेजे गए बोधिवृक्ष का डीएनए टेस्ट कराया गया। पता चला कि यह वृक्ष उसी वृक्ष के मूल से निकला है, जिसके नीचे महात्मा बुद्ध को ज्ञान प्राप्त हुआ था।

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