कोरोना से लड़ते केरल की चिंताएं

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भारत का पहला कोविड-19 मरीज केरल में ही सामने आया। वह वुहान विश्वविद्यालय में पढ़ने वाला एक छात्र है। वहां वायरस फैलने के बाद वह अपने घर लौट आया। यहां उसे त्रिशूर के जनरल अस्पताल में भर्ती कराया गया और आइसोलेशन वार्ड में रखा गया। तब विदेश से लौटे 20 अन्य लोगों का भी परीक्षण किया गया था और वह छात्र एकमात्र ऐसा था, जिसे कोरोना पॉजिटिव पाया गया। मुख्यमंत्री ने तुरंत एक बयान जारी करके कहा कि राज्य सरकार को अनुभव है और राज्य अतीत में ऐसे मामलों से निपट चुका है। उन्होंने वादा किया कि यह सुनिश्चित करने के लिए और परीक्षण किए जाएंगे कि वायरस एक व्यक्ति से दूसरे में न फैले।

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भारत के दक्षिणी छोर पर बसा केरल 2018 में निपाह नामक एक अन्य खतरनाक वायरस से सफलतापूर्वक निपट चुका है। इस वायरस से राज्य में 17 लोगों की मौत हो गई थी। सरकार ने त्वरित और निर्णायक कार्रवाई से बीमारी के प्रसार को रोका था। केरलवासी यात्री हैं। एक मजाक चलता है कि कोई मानवरहित आर्कटिक और अंटार्कटिका में जाए, तो उसे वहां भी केरलवासी मिलेंगे। कारण सरल है, केरल में भूमि दुर्लभ है। इसका भौगोलिक आकार देश के राज्यों में 23वें स्थान पर है, लेकिन आबादी में 13वां स्थान है, जिसका अर्थ है, यहां लोग अधिक हैं और भूमि कम। यहां जन-घनत्व 370 के राष्ट्रीय औसत के मुकाबले 859 व्यक्ति प्रति वर्ग किलोमीटर है। वह भी इस तथ्य के बावजूद है कि केरल की जनसंख्या वृद्धि दर भारतीय राज्यों में सबसे कम है। यहां ऐसे क्षेत्र हैं, जहां जन-घनत्व 2,000 व्यक्ति प्रति वर्ग किलोमीटर से भी अधिक है।

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भारी आबादी के अलावा केरल को मौसम के कारण भी गंभीर चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। 590 किलोमीटर की तटीय लंबाई वाला यह राज्य लगभग नियमित ही चक्रवात से जूझता है। राज्य की चौड़ाई 11 किलोमीटर से 121 किलोमीटर तक है। पूर्व ऐतिहासिक काल में शायद केरल का अधिकांश भाग पानी के अंदर था। केरल नाम शायद ‘केरा’ (नारियल) शब्द से लिया गया है और इसे भगवान का अपना घर कहा जाता है। इसकी सुरम्य समुद्री तटें घरेलू और विदेशी, दोनों तरह के पर्यटकों को आकर्षित करती हैं। यह भारत की सबसे प्यारी जगहों में से एक है। केरल कई नकदी फसलों, जैसे रबर, काजू इत्यादि का उत्पादन करता है। देश के 97 प्रतिशत गोलमिर्च का उत्पादन यहीं होता है। सागर से जुड़ी सशक्त परंपराओं वाले केरल के लोगों के लिए जब स्थानीय स्तर पर रोजगार कम पड़ने लगे, तब उन्होंने राज्य से बाहर देश के अन्य हिस्सों और विदेश में रोजगार की तलाश शुरू की। नतीजा यह कि केरल की अर्थव्यवस्था बाहर रहने वाले उन लोगों पर निर्भर होने लगी, जो मुख्य रूप से खाड़ी देशों में रहते हैं।

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1970 और 1980 के दशक की शुरुआत में खाड़ी देशों में तरक्की के दौरान केरल से बड़ी संख्या में लोगों को वहां जाते देखा गया। केरलवासी अपनी कमाई ईमानदारी से घर भेजते हैं और यह राज्य की अर्थव्यवस्था के विकास का एक प्रमुख कारक बन गया है। बाहर से आने वाला धन राज्य के सकल घरेलू उत्पाद में पांचवें हिस्से से ज्यादा का योगदान करता है। साल 2015 में तो केरल के अप्रवासी भारतीयों ने जितना पैसा भारत भेजा था, वह विदेश में रह रहे भारतीयों द्वारा भेजे जाने वाले कुल धन का छठा हिस्सा था।

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कोई आश्चर्य नहीं कि यात्रा करना केरल के लोगों का स्वभाव बन गया है। आजादी के बाद कम्युनिस्ट सरकार द्वारा शासित इस पहले राज्य ने प्रवासियों द्वारा भेजे गए धन का उपयोग अपने ‘केरल मॉडल’ को विकसित करने के लिए किया, जिसमें सामाजिक विकास पर बहुत जोर दिया गया। केरल मानव विकास सूचकांक या एचडीआई रैंक में भारत में अव्वल है। यह राज्य प्राथमिक शिक्षा, स्वास्थ्य और गरीबी उन्मूलन पर बड़ी मात्रा में धन खर्च करता है। भारत में केरल की साक्षरता दर सबसे अधिक है। इसकी जीवन प्रत्याशा भी पहले स्थान पर है। हालांकि कम जनसंख्या वृद्धि दर के कारण यहां बूढ़ों का अनुपात ज्यादा हो गया है। यहां ग्रामीण और शहरी गरीबी बहुत कम है। शायद कम शहरी गरीबी की वजह से ही कोविड-19 के कारण यहां पर उस तरह से पलायन नहीं देखा गया, जैसा बाकी देश में 21 दिनों के लॉकडाउन की घोषणा के बाद देखा गया। केरल की उच्च साक्षरता दर और इसके प्रगतिशील सामाजिक समूहों ने इसे भारत के राजनीतिक रूप से सबसे जागरूक राज्यों में से एक बना दिया है। राज्य में समाचारपत्रों और टेलीविजन स्टेशनों का घनत्व सबसे अधिक है और इनका उपयोग लोग चुने हुए प्रतिनिधियों को जवाबदेह बनाए रखने के लिए करते हैं। राजनीतिक जुड़ाव से परे जाकर यहां के नागरिक अपने नेताओं की किसी भी गलती की खुलकर आलोचना करते हैं।

”हालांकि केरल में समस्याएं भी हैं। देश में मधुमेह रोगियों के मामले में केरल पहले स्थान पर है। उच्च रुग्णता-दर और निम्नतम जन्म-दर इसके लिए बोझ हैं। राज्य में जलजनित रोग तो आम हैं, क्योंकि स्वच्छ पेयजल और जल निकासी की व्यवस्था अभी भी यहां एक चुनौती है।”

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केरल दुनिया भर में नर्सिंग कौशल से युक्त लोगों के लिए भी जाना जाता है। नर्सें राज्य के ईसाई समुदाय की रीढ़ हैं। 1960 में 6,000 नर्सों का पहला जत्था जर्मनी गया था। अब तो वे खाड़ी के तमाम देशों में फैली हुई हैैं। वहां उन्हें गोलियों और बमों का भी सामना करना पड़ा है, फिर भी उन्होंने अनुकरणीय काम किया है। 1991 में खाड़ी युद्ध के दौरान कई नर्सें भारत लौट आईं, लेकिन स्थिति में सुधार होते ही वे तुरंत वापस चली गईं। कुछ साल पहले लीबिया युद्ध के दौरान अगवा अनेक नर्सों को वहां से बचाकर लाया गया था, इसके बावजूद वे वापस जाने की इच्छा रखती थीं। उनमें से कुछ तो युद्धग्रस्त अफगानिस्तान में चली भी गईं।

[bs-quote quote=”(यह लेखक के अपने विचार हैं यह लेख हिंदुस्तान अखबार में प्रकाशित है)

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कुछ साल पहले एक भारतीय रोमन कैथोलिक पादरी को तालिबान ने अगवा कर लिया था। राजनयिक प्रयासों से सरकार ने उन्हें बचाया था। इससे भी बदतर बात यह कि दो साल पहले केरल से एक समूह लापता हुआ था और वह अफगानिस्तान में आईएस के कैंप में पाया गया। अभी पिछले दिनों ही अफगानिस्तान में एक गुरुद्वारे पर आईएस ने हमला किया और हमलावरों में एक केरल से गया बताया जा रहा है।

 

 

 

 

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