फ्री है ‘चाह’ की चुस्‍की पर गालियों का यहां देना होगा दाम

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अगर आप ऑक्सीजन क्‍लब के ‘चाह’ यानि कि चाय के ठेले पर आते हैं और यहां जाने अनजाने में आपके जुबान से गाली का कोई भी शब्‍द फूटा नहीं कि भरो दंड. गालियों की गंभीरता के हिसाब से उसका दंड भी अलग.

बनारसी सिर्फ गुस्‍से में ही गाली देते हैं , ऐसा नहीं है यहां तो मोहब्‍बत में भी गाली देते है. पर कुल मिलाकर गाली देने को अच्‍छा तो नहीं कहा जा सकता. पर अगर कुछ बेहतर करने का जज्‍बा हो तो गलत मानी जानी वाली गाली भी अच्‍छा करने का जरिया बन सकती है. जी हां इसे कर दिखाया है बनारस के एक सामाजिक संगठन आक्‍सीजन क्‍लब ने. अक्‍सीजन क्‍लब के मेंबर्स ने बनारसियों के गाली देने की आदत को ‘कुछ अच्‍छा और कुछ अलग’ करने का माध्‍यम बनाया और गाली दंड पात्र की स्‍थापना कर दी. वो भी फ्री चाह के ठेले यानि अड़ी पर.

कहने का मतलब ये कि अगर आप आक्‍सीजन क्‍लब के ‘चाह’ यानि कि चाय के ठेले पर आते हैं और यहां जाने अनजाने में आपके जुबान से गाली का कोई भी शब्‍द फूटा नहीं कि दो भरो दंड.से गालियों की गंभीरता के हिसाब से उसका दंड भी अलग. और जो दंड पात्र में इकट्ठा हुआ वो लगा दिया समाज को कुछ बेहतर बनाने के गिलहरी प्रयास में.

चाह की चुस्‍की संग मस्‍ती का इंतजाम

सुबह घर से निकल कर चाय की अड़ी पर गलचउर न करे तो बनारसी की तबीयत नहीं बनती.. सुबह सुबह थोड़़ा टहल घूम कर पसीना बहाया. शरीर का तो इंतजाम तो हो गया है लेकिन दिमाग का क्‍या. उसके लिए तो  चार यारों के साथ जब तक चाय का पुरवा न लड़े तब तक बात ही न बने. तो इसके लिए बस सिगरा तक जाना है जहां अक्‍सीजन क्‍लब के ‘फ्री चाह की अड़ी’ पर बनारसी मस्‍ती के दीवानों का जुटान होता है. अक्‍सीजन क्‍लब फ्री चाह की अड़ी के क्रियान्‍यवन प्रभारी रविन्‍द्र गिरी ‘गिरी बाबा’ बताते है कि अक्‍सीजन क्‍लब फ्री में लोगों को सुबह की चाय पिला रहा है. हमारे क्‍लब आक्‍सीजन का सूत्र वाक्‍य ‘एक कदम सेहत और समाज के लिए’ है. हम जो भी करते हैं अपने इसी सूत्र वाक्‍य को ध्‍यान में रख कर करते हैं. सेहत के‍ लिए क्‍लब के मेंबंर्स टहलते हैं, योग करते है. इसी तरह समाज के लिए भी हमें अपनी जिम्‍मेदारियों का भार है.

ट्री बैंक, बेजुबान जानवरों के लिए पीने के लिए पानी की व्‍यवस्‍था से लेकर बीमार लावारिस जानवारों के इलाज में लगे सुनील लहरी और मानव सेवा में अपना तन मन धन समर्पित कर चुके अमन कबीर गोलू की आर्थिक मदद जैसे क्रियाकलाप समाज के प्रति हमारे कर्तव्‍यों के निर्वहन का एक गिलहरी प्रयास है. इसी बहाने कुछ लोगों का जुटना हो जाता है और हंसी मजाक हो जाता है. जिससे पूरे दिन के लिए दिमागी खुराक मिल जाती है.

बनारस तो यही है ना. हर बात में मस्‍ती खोज निकालने वाला शहर. हम बनारसी मस्‍ती को चाह की पुरवे के साथ लोगों के जुबान तक पहुंचाते हैं.

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गाली तो है बहाना

आक्‍सीजन क्‍लब के गाली दंड पात्र में जो भी एकत्र होता है वो किसी सामाजिक कार्य में ही खर्च होता है. क्‍लब के वरिष्‍ठ सदस्‍य गिरीश दूबे बताते हैं कि क्‍लब में अलग अलग गाली के लिए अलग अलग दंड का प्रावधान है. वेज गाली के लिए दस रुपये, नॉनवेज के लिए बीस रुपये और जाति सूचक गाली के लिए 50 रुपये बतौर दंड देना होगा. चाह की अड़ी पर पर कोई अपनी कविता, दोहा आदि सुनाता है तो उसे भी प्रति रचना के हिसाब से 30 रुपये बतौर दंड गाली दंड पात्र में डालना होगा. इस तरह तकरीबन दर्जन भर तरह की गालियों के अलग अलग दंड निर्धारित किया गया है. एक खास बात कि कोई आक्‍सीजन क्‍लब के चाह की अड़ी पर आए और चुपचाप गाली सुने तो उसे भी 25 रुपये का अर्थ दंड देना होगा. ये सब जो भी पैसा दंड पात्र में एकत्र होता है उसे सामाजिक कार्य में ही खर्च किया जाता है.

जैसे समाज सेवा के कार्य में लगे अमन कबीर गोलू गरीब असहायों के लिए नि:शुल्‍क एंबुलेंस का संचालन करते हैं आक्‍सीजन क्‍लब के गाली दंड पात्र में जो भी आता है उन्‍हें एंबुलेंस के पेट्रोल के लिए दे दिया जाता है. इसी तरह एक एक व्‍यक्ति सुनील लहरी हैं जो बेसहारा लावारिस जानवरों का इलाज करते हैं. उनके इस कार्य में क्‍लब आर्थिक मदद करता है. इस तरह के और भी सामाजिक कार्य क्‍लब की ओर से किये जाते हैं. रही बात चाय के खर्चे की वो क्‍लब के मेंबर्स आपसी सहयोग से अपने जेब से करते हैं. गाली दंड पात्र का पैसा चाय के लिए नहीं खर्च किया जाता है. इस तरह जो भी व्‍यक्ति गाली दंड पात्र में कुछ डालता है वह समाज के किसी जरुरत मंद की अनजान मदद भी करता है.

बोलने की है चाह तो बोले यहां

आक्‍सीजन क्‍लब के फ्री चाह की अड़ी पर चाय की चुस्‍की के साथ आपको बोलने की भी स्‍वतंत्रता है. चुनावी मौसम है और बनारस का हर व्‍यक्ति कुशल चुनाव विश्‍लेषक है. नेशनल से लेकर लेकर इंटरनेशनल पॉलिटिक्‍स के जानकार यहां की गलियों में टहलते रहते हैं. पर समस्‍या है कि इनकी सुने कौन. आक्‍सीजन क्‍लब ने उनके लिए भी यहां इंताजम किया है. चाह की चुस्‍की लेने आइये और किसी भी पार्टी के समर्थन में या विरोध में अपनी वाणी को तृप्‍त कीजिए. बैठने के लिए बेंच है लेकिन अगर आपको रारनीति पर बोलना है तो कनस्‍तर पर बैठने का इंतजाम है. क्‍लब के विशिष्‍ट सदस्‍य अजय सिंह बताते हैं कि अलग अलग पार्टियों के चुनावी घोषणा पत्र की प्रमुख बातें इन बैठने के लिए बनाये गये इन कनस्‍तर पर चस्‍पा हैं. जिस मुद्दे पर आपको बात करनी है उस कनस्‍तर पर बैठिये और शुरू हो जाइये. आपको टोकने और काटने वाले भी मिल जायेंगे. अजय सिंह आगे बताते हैं कि चाय की अड़ी पर आने वाले लोगों को आक्‍सीजन क्‍लब का इस काम को करने का उद्देश्‍य लोगों को चुनाव के प्रति जागरूक भी करना है. चुनाव लोकतंत्र के सबसे बड़ा त्‍योहार है. पर शहरों में मतदान के प्रति लोगों के उदासीनता देखी जाती रही है. हमारा प्रयास लोगों वोटिंग के दिन घर से निकलें और मतदान कर लोकतंत्र के इस महापर्व में अपनी भागीदारी सुनिश्चित करें. एक खास बात और बताना चाहुंगा कि आक्‍सीजन क्‍लब के तकरीबन हर सदस्‍य का इस तरह के कामों में सहयोग रहता है.

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