कोरोना पीड़ितों के लिए शिद्दत से लड़ती बनारस की बेटी, गर्भवती महिलाओं का करती है निःशुल्क इलाज
वाराणसी। कोरोना महामारी से लड़ने के लिए पूरा देश एकजुट है। मुश्किल के वक्त में खासतौर से डॉक्टर्स ने जिस हिम्मत और जज्बे का परिचय दिया है, वह काबिल-ए-तारीफ है। कोरोना के खिलाफ जंग में बनारस की एक बेटी भी शिद्दत के साथ लड़ रही है।
गर्भवती महिलाओं का निःशुल्क इलाज
उनका नाम है… शिप्रा धर। शिप्रा धर के लिए जीवन का एकमात्र लक्ष्य है बेटियों को बचाना। यही उनका मिशन है, जो एक जुनून का रूप ले चुका है। कोरोना काल में शिप्रा धर गर्भवती महिलाओं का निःशुल्क इलाज कर रही हैं। यही नहीं, बेटी होने पर शिप्राधर अस्पताल खर्च के नाम पर एक रुपये तक नहीं लेती।
मिशन को पूरा करने के लिए जी-जान से जुटी हैं शिप्रा धर
अपने मिशन को पूरा करने के लिए शिप्रा धर जी जान से जुटी हैं। देश के संस्थान और बनारस की शान बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय(बीएचयू) से एमडी की डिग्री ले चुकी शिप्रा के लिए डॉक्टरी, कमाने का पेशा नहीं है, बल्कि समाज और बेटियों की सेवा करने का एक बेहतर मौका है। शिप्रा धर ने डॉक्टरी की पढ़ाई पूरी करने के बाद तय किया कि वो किसी सरकारी नौकरी को चुनने के बजाय खुद का अस्पताल खोलेंगीं। लेकिन डेढ़ साल पहले उनके अस्पताल में कुछ ऐसा हुआ, जिसने उनके जीने का अंदाज और नज़रिया ही बदल दिया। शिप्राधर बताती हैं ” लगभग चार साल पहले एक अधेड़ महिला अपनी गर्भवती बहू के साथ मेरे अस्पताल पहुंची। इलाज के दौरान बहू ने एक खूबसूरत बेटी को जन्म दिया। लेकिन बेटियों को बोझ समझने वाली दादी के दिल में उस बेटी के लिए कोई जगह नहीं थी। खुशी के बजाय वो महिला गुस्से से तमतमाई हुई थी। घर में बेटी पैदा होने की टीस उस महिला के जेहन में कुछ इस कदर थी कि उसने अपनी बहू के साथ ही मुझे भी जमकर ताने मारे। ”
उस महिला के तानों ने अस्पताल की तस्वीर बदल दी। इस वाक्ये के बाद डॉक्टर शिप्रा ने अस्पताल में पैदा होने वाली सभी बेटियों का इलाज मुफ्त करने की ठान ली। तब से लेकर अब तक ये सिलसिला बदस्तूर जारी है। सिर्फ बेटियों का मुफ्त इलाज ही नहीं डॉक्टर शिप्रा 6 लड़कियों की पढ़ाई का भी खर्च उठा रही हैं। लड़कियों को बेहतर तालीम दिलाने के लिए शिप्रा आने वाले दिनों में एक स्कूल भी खोलने की योजना बना रही हैं, ताकि हर गरीब और बेसहारा बेटी पढ़ लिखकर अपने पैरों पर खड़ी हो सके।
शहर के लोगों के लिए मिसाल
शिप्रा की ये मुहिम शहर के लोगों के लिए मिसाल बन गई है। शिप्रा के इस नेक काम में मदद के लिए कई संस्थाएं भी आगे आ रही हैं। यही नहीं अब उनके अस्पताल में आने वाले लोगों की सोच भी बदल रही है। अस्पताल पहुंचने वाली लीलावती कहती हैं, शिप्रा अब उन बेटियों के लिए काम करती हैं, जिन्हें दुनिया में कदम रखते ही दुत्कारा जाता है, जिनके पैदा होने पर जश्न नहीं मातम मनाया जाता है।
अस्पताल में 350 से ज्यादा बेटियों ने लिया जन्म
अब तक उनके अस्पताल में कुल 350 से ज्यादे खुशनसीब बेटियों ने जन्म लिया और डॉक्टर शिप्रा ने सभी बेटियों का मुफ्त इलाज कर उनके परिवार के लोगों को बड़ा गिफ्ट दिया। अगर शिप्रा बेटियों के लिए मुहिम चला रही हैं तो इसके पीछे उनके पति मनोज श्रीवास्तव का भी योगदान है। पत्नी के हर कदम पर साथ देने वाले मनोज श्रीवास्तव भी खुद एक डॉक्टर हैं। पत्नी पर फक्र करते हुए मनोज कहते हैं ,
”समाज में हाशिए पर जा चुकी आधी आबादी को सहारे की नहीं बल्कि मजबूत करने की जुटी हैं। बेटियों को बचाने के लिए समाज में बड़े बदलाव की जरुरत है और उनकी पत्नी इसी बदलाव की प्रतीक बनकर उभरी हैं।”
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