भारतीय सनातन परंपरा के हिंदू धर्मग्रंथों में हर माह की एकादशी तिथि भगवान श्रीविष्णुहरि को समर्पित है। भारतीय सनातन धर्म में एकादशी तिथि अपने आप में अनूठी मानी गई है। प्रख्यात ज्योतिषविद् विमल जैन ने बताया कि माघ मास के कृष्णपक्ष की एकादशी तिथि षट्तिला एकादशी के नाम से जानी जाती है।
इस बार माघ कृष्णपक्ष की एकादशी तिथि 6 फरवरी, शनिवार को अर्द्धरात्रि के पश्चात् 6 बजकर 27 मिनट पर लगेगी जो कि 7 फरवरी, रविवार को अर्द्धरात्रि के पश्चात् 4 बजकर 48 मिनट तक रहेगी। 7 फरवरी, रविवार को एकादशी तिथि का मान सम्पूर्ण दिन रहेगा।
षट्तिला एकादशी की खास महिमा है, जैसा कि तिथि के नाम से विदित है कि छह प्रकार के तिल का प्रयोग आज के दिन करते हैं। आज के दिन संपूर्ण दिन व्रत-उपवास रखकर भगवान श्रीविष्णु की पूजा-अर्चना करके उनसे सुख-समृद्धि की कामना की जाती है।
व्रत का विधान-
ज्योतिषविद् विमल जैन ने बताया कि व्रत के दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर अपने समस्त दैनिक कृत्यों से निवृत्त होकर गंगा-स्नानादि करना चाहिए। अपने आराध्य देवी-देवता की पूजा-अर्चना के पश्चात् षट्तिला एकादशी के व्रत का संकल्प लेना चाहिए।
एकादशी के दिन व्रत रखकर भगवान श्रीविष्णुजी की पूजा-अर्चना के पश्चात् उनकी महिमा में श्रीविष्णु सहस्रनाम, श्रीपुरुषसूक्त तथा श्रीविष्णुजी से संबंधित मन्त्र ‘ॐ श्रीविष्णवे नमः’ या ‘ॐ नमो भगवते वासुदेवाय’ का जप अधिक से अधिक संख्या में करना चाहिए।
सम्पूर्ण दिन निराहार रहकर व्रत सम्पादित करना चाहिए। एकादशी तिथि के दिन चावल ग्रहण नहीं किया जाता। इस दिन अन्न ग्रहण न करके विशेष परिस्थितियों में दूध या फलाहार ग्रहण किया जा सकता है। आज के दिन तिल से बने पदार्थों का सेवन करना चाहिए।
साथ ही व्रत के समय दिन में शयन नहीं करना चाहिए। षट्तिला एकादशी के व्रत व भगवान श्रीविष्णुजी की विशेष कृपा से सभी मनोरथ सफल होते हैं, साथ ही जीवन में सुख-समृद्धि, खुशहाली का सुयोग बना रहता है। मन-वचन कर्म से पूर्णरूपेण शुचिता बरतते हुए यह व्रत करना विशेष फलदायी रहता है।
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