काशी के स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद संभालेंगे ज्योतिष पीठ की गद्दी, स्वामी सदानंद को बनाया द्वारका शारदा पीठ का प्रमुख, जानिए इनके बारे में
द्वारका शारदा और ज्योतिर्मठ बद्रीनाथ पीठ के जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती का रविवार को 99 वर्ष की अवस्था में निधन हो गया था. स्वामी स्वरूपानंद दो पीठों ज्योतिष पीठ और द्वारकाशारदा पीठ के शंकराचार्य थे. उनके ब्रह्मलीन होने के बाद उत्तराधिकारी तय हो गए हैं. उनके दो उत्तराधिकारी होंगे, जो अलग-अलग पीठ के शंकराचार्य होंगे. रिपोर्ट्स के मुताबिक स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद को ज्योतिषपीठ बद्रीनाथ और स्वामी सदानंद को द्वारका शारदा पीठ का प्रमुख बनाया गया है.
जानकारी के मुताबिक, स्वामी स्वरूपानंद के पार्थिव शरीर के सामने ही उनके निजी सचिव रहे सुबोधानंद महाराज ने इन नामों की घोषणा की. वहीं, स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती के अंतिम दर्शन के लिए मध्य प्रदेश के नरसिंहपुर आश्रम में श्रद्धालुओं की भारी भीड़ उमड़ी. केंद्रीय मंत्री प्रह्लाद पटेल, पूर्व सीएम कमलनाथ समेत कई राजनेता उनके अंतिम दर्शन करने पहुंचे थे. स्वामी स्वरूपानंद को नरसिंहपुर के परमहंसी गंगा आश्रम में भू-समाधि दी गई.
डॉक्टरों के मुताबिक, स्वामी स्वरूपानंद का निधन माइनर हार्ट अटैक की वजह से हुआ. वह पिछले कई महीनों से बीमार चल रहे थे. जिन दोनों संतों को स्वामी स्वरूपानंद का उत्तराधिकारी बनाया गया है, वे दोनों ही दंडी स्वामी की पदवी प्राप्त कर चुके हैं.
बता दें स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती भी शंकराचार्य बनने से पहले दंडी स्वामी बने थे. उन्होंने शंकराचार्य स्वामी ब्रह्मानंद सरस्वती से दंड सन्यास की दीक्षा ली थी. इसके बाद वर्ष 1981 में उन्हें शंकराचार्य की उपाधि मिली. उत्तराखंड के ज्योतिषपीठ के शंकराचार्य की पदवी लिए उन्हें कानूनी लड़ाई भी लड़नी पड़ी. वह वर्ष 1952 से 2020 तक लगातार प्रयागराज के कुंभ में जाते थे. कई बार वह तथाकथित फर्जी शंकराचार्यों का विरोध भी कर चुके हैं.
जानिए स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद के बारे में…
ज्योतिषपीठ के शंकराचार्य घोषित स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती का बनारस से गहरा नाता है. काशी के केदारखंड में रहकर संस्कृत विद्या अध्ययन करने वाले स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती ने संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय से शास्त्री और आचार्य की शिक्षा ग्रहण की है. इस दौरान छात्र राजनीति में भी सक्रिय रहे. यूपी के प्रतापगढ़ में जन्मे स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती के शिष्य हैं. स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद का मूलनाम उमाकांत पाण्डेय है. प्रतापगढ़ में प्राथमिक शिक्षा के बाद वे गुजरात चले गए थे.
धर्मसम्राट स्वामी करपात्री महाराज के शिष्य पूज्य ब्रह्मचारी श्री रामचैतन्य जी के सान्निध्य और प्रेरणा से संस्कृत शिक्षा आरंभ हुई. स्वामी करपात्री के अस्वस्थ होने पर वह ब्रह्मचारी रामचैतन्य के साथ काशी चले आए. वहां स्वामी करपात्री के ब्रह्मलीन होने तक उन्हीं की सेवा में रहे. वहीं इन्हें पुरी पीठाधीश्वर स्वामी निरंजन-देवतीर्थ और ज्योतिष्पीठाधीश्वर स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती का दर्शन एवं सानिध्य मिला.
उन्हीं की प्रेरणा से नव्यव्याकरण विषय से काशी के संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय में आचार्य पर्यंत अध्ययन किया. इस दौरान छात्र राजनीति में भी सक्रिय रहे. संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय में छात्रसंघ के महामंत्री पद पर चुने गए. 15 अप्रैल, 2003 को उमाशंकर को दंड संन्यास की दीक्षा देकर स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती नाम दे दिया गया. केदारघाट स्थित श्रीविद्यामठ की पूरी कमान संभालते हैं.
स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती ने वर्ष 2015 में संतों पर लाठी चार्ज के विरोध में अन्याय प्रतिकार यात्रा निकाली थी. इसके पूर्व गंगा सेवा अभियान यात्रा काशी से निकाली. उन्होंने काशी में मंदिर बचाओ आंदोलन निकालकर देश भर के सनातन हिंदुओं को जागृत किया था. ज्ञानवापी में आदि विश्वेश्वर की पूजा के लिए स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद ने अन्न जल त्याग कर धरना भी दिया था.
जानिए स्वामी सदानंद के बारे में…
स्वामी सदानंद सरस्वती का जन्म मध्यप्रदेश के नरसिंहपुर के बरगी गांव में हुआ था. पहले इनका नाम रमेश अवस्थी था. लेकिन, उन्होंने 18 साल की उम्र में ब्रह्मचारी दीक्षा ली और फिर इनका नाम ब्रह्मचारी सदानंद हो गया.
शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती से इन्होंने वाराणसी में दंडी दीक्षा ली. दंडी दीक्षा लेने के बाद इनका नाम स्वामी सदानंद सरस्वती हो गया. अभी ये गुजरात में द्वारका शारदापीठ में शंकराचार्य के प्रतिनिधि के रूप में काम करते थे.