मंत्री जी के घर में टीवी, विधायक की ‘कमीशन’ लिस्ट से हड़कंप
साल 2017 में हुए विधानसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश की जनता ने भाजपा को प्रचंड बहुमत इसलिए दिया था कि भाजपा की सरकार सत्ता में आएगी तो सूबे में विकास की रफ्तार गाति पकड़ेगी और भ्रष्टाचार के साथ ही अपराध पर लगाम लगेगी। लेकिन सरकार ने जनता की उम्मीदों पर पानी फेर दिया। डेढ़ साल से भी ज्यादा का वक्त हो चुका है लेकिन अभी तक ऐसा कोई भी करिश्मा योगी सरकार ने नहीं दिखाया है जिससे ये कहा जाए कि यूपी में विकास की बहार आ चुकी है। प्रदेश में कानून व्यवस्था का आलम ये हो गया है कि दिनदहाड़े अपराधी लोगों को मौत के घाट उतार रहे हैं और सरकार के मंत्री विधायक टीवी लगवाने, कमीशन तय करने तो दूसरी तरफ पुलिस महकमा ‘हम बड़े’ की लड़ाई में व्यस्त है।
स्वास्थ्य मंत्री के घर टीवी लगवाना है
यूपी के स्वास्थ्य मंत्री सिद्धार्थनाथ सिंह के 19, गौतमपल्ली स्थित सरकारी आवास पर तीन टेलिविजन सेट लगाने के लिए उनके निजी सचिव ने स्वास्थ्य महकमे को चिट्ठी लिख दी। फाइल आगे बढ़ने के साथ ही चिट्ठी भी वायरल हो गई। इसके बाद निजी सचिव ने दूसरा खत लिख मंत्रीजी के लिए टीवी की डिमांड कैंसिल कर दी। साथ में सफाई दी कि बिना मंत्रीजी से पूछे ही उन्होंने खत लिख दिया था। इसके बाद महकमे ने टीवी की फाइल बंद कर दी है।
आगरा नगर निगम में खुलेआम कमीशन का खेल
आगरा से पांच बार से लगातार जीत दर्ज करते आ रहे विधायक जगन गर्ग ने आगरा नगर निगम पर कमीशनखोरी का आरोप लगाते हुए नगर विकास मंत्री सुरेश खन्ना को पत्र लिखा है। विधायक जगन गर्ग ने अपने पत्र में लिखा है कि नगर निगम की तरफ से जो ठेके दिए जाते हैं उसमें ठेकेदारों ले 57 फीसदी तक कमीशन लिया जा रहा है। विधायक ने कमीशन की पूरी लिस्ट भी जारी की है। विधायक ने नगर आयुक्त को खुले शब्दों में कमीशनखोरी का सरगना करार दिया है। विधायक के मुताबिक, नगर आयुक्त को 5.5 प्रतिशत मुख्य अधिवक्ता को 4.5 फीसदी, सहायक व अधिशासी अभियंता को 2-2%, अवर अभियंता को 5 प्रतिशत, सुपरवाइजर को 2 प्रतिशत, निर्माण लेखा लिपिक औऱ पीडब्ल्यूडी को मिलाकर 1 प्रतिशत, लेखा विभाग को 3 फीसदी, ऑडिट विभाग को 30 प्रतिशत और अन्य को 2 फीसदी कमीशन दिया जाता है।
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अधिकारों की लड़ाई में व्यस्त हैं आईएएस-आईपीएस
आईएएस और आईपीएस एसोसिएशनों में अधिकारों को लेकर जंग छिड़ी हुई है। सरकार ने आईपीएस अधिकारियों के अधिकारों में कटौतती करते हुए एक शासनादेश जारी किया था जिसमें कहा गया था कि अब थानेदार और कोतवाल की तैनाती के लिए एसएसपी को जिलाधिकारी से अनुमोदन लेना पड़ेगा। इसके बाद आईपीएस एसोसिएशन ने इसका जमकर विरोध किया और सीएम से इस फैसले को बदलने की गुहार लगाई। वहीं नोएडा में एसएसपी द्वारा किए गए ट्रांसफर को लेकर जिलाधिकारी ने आपत्ति दर्ज कराई है और उन्होंने खत लिखकर एससपी से पूछा कि प्रमुख सचिव गृह के आदेश के बाद भी ऐसा क्यों किया गया।
ध्वस्त हो चुकी है कानून व्यवस्था
सूबे की कानून व्यवस्था की पटरी कहां जा रही है इसका अनुमान इलाहाबाद में हुई वकील की दिनदहाड़े हत्या से लगाया जा सकता है। वहीं कासगंज में दो दिन पहले हुए ट्रिपल मर्डर से भी कानून व्यवस्था की कलई खुलती नजर आ रही है। इतना सब होने के बाद भी सूबे की सरकार कहती है कि क्राइम पर पुलिस सख्त है।