कमलनाथ के लिए सत्ता बचाना आसान नहीं, मध्‍य प्रदेश सरकार संकट में घ‍िरी

कमलनाथ की सरकार हालांकि दावा कर रही है कि वह फ्लोर टेस्ट जीत लेगी पर राह बेहद कठिन है।

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ज्‍योतिरादित्‍य के बीजेपी में जाने के बाद कमलनाथ का रास्ता अब भी आसान नहीं रह गया है। कमलनाथ के लिए रास्ता काफी कठिन है। ज्योतिरादित्य सिंधिया के बीजेपी में जाने के बाद कमलनाथ की कांग्रेस सरकार हालांकि दावा कर रही है कि वह फ्लोर टेस्ट जीत लेगी पर राह बेहद कठिन है।

मध्‍य प्रदेश में कांग्रेस के कद्दावर नेता रहे ज्‍योतिरादित्‍य सिंधिया बुधवार को बीजेपी में शामिल हो गए। सिंधिया के बीजेपी के खेमे में जाने और 22 विधायकों के इस्‍तीफे के बाद अब मध्‍य प्रदेश की कमलनाथ सरकार के अस्तित्‍व पर संकट मंडरा रहा है। कांग्रेस की सारी कोशिश अब बागी विधायकों को मनाने पर टिकी हुई है।

कई उपाय हैं जिन्हें कमलनाथ अपना रहे हैं

स्‍पीकर बागी विधायकों को पेश होने को कह सकते हैं।

मध्‍य प्रदेश के सिंधिया समर्थक 22 विधायकों ने इस्‍तीफा दे दिया है। अब गेंद विधानसभा अध्‍यक्ष एनपी प्रजापति के पाले में है जो कांग्रेस के नेता हैं। नियमों के मुताबिक अगर किसी सदस्‍य ने इस्‍तीफा दिया है तो उससे विधानसभा अध्‍यक्ष का संतुष्‍ट होना जरूरी है। यदि वह संतुष्‍ट हैं तो इस्‍तीफा स्‍वीकार कर सकते हैं।

स्‍पीकर बागी विधायकों से बात कर सकते हैं

यदि स्‍पीकर को लगता है कि दबाव डालकर विधायकों से इस्‍तीफा दिलवाया गया है तो वह सदस्‍य से बात कर सकते हैं। साथ ही उस सदस्‍य को अपने समक्ष उपस्थित होने को कह सकते हैं। स्‍पीकर के संतुष्‍ट होने पर ही इस्‍तीफे को अगले कार्रवाई के लिए आगे बढ़ाया जा सकता है। कर्नाटक में स्‍पीकर ऐसा कर चुके हैं। मौजूदा हालात को देखते हुए लगता नहीं कि स्‍पीकर इतनी आसानी से इस्‍तीफा स्‍वीकार करेंगे।

हमेशा के लिए अयोग्‍य नहीं घोषित हो सकते हैं विधायक

संविधान के नियमों के मुताबिक विधानसभा अध्‍यक्ष इस्‍तीफा देने वाले सदस्‍यों को पूरे कार्यकाल के लिए अयोग्‍य घोषित नहीं कर सकते हैं। इससे पहले कर्नाटक में विधानसभा अध्‍यक्ष ने इस्‍तीफा देने वाले बागी विधायकों को हमेशा के लिए अयोग्‍य घोषित कर दिया था। यह पूरा मामला सुप्रीम कोर्ट गया। कोर्ट ने विधायकों की अयोग्‍यता को सही माना था लेकिन उन्‍हें उपचुनाव लड़ने की छूट दे दी थी।

राज्‍यपाल की सीधी भूमिका नहीं

मध्‍य प्रदेश के वर्तमान हालात में राज्‍यपाल की कोई सीधी भूमिका नहीं है। हालांकि 16 मार्च से मध्‍य प्रदेश में बजट सत्र शुरू हो रहा है। बजट सत्र इस सरकार का भविष्‍य तय कर सकता है। इसमें कमलनाथ सरकार के बहुमत का परीक्षण हो सकता है। अगर सरकार बजट पारित कराने में असफल रहती है तो उसका गिरना तय हो जाएगा। राज्‍यपाल लालजी टंडन ने कहा है कि वह इस पूरे मामले में अपनी नजर गड़ाए हुए हैं।

कांग्रेस मध्‍यावधि चुनाव चाहेगी, बीजेपी उपचुनाव

यदि मध्‍य प्रदेश विधानसभा की कुल सदस्‍य संख्‍या 230 में से आधे से अधिक सदस्‍यों ने इस्‍तीफा दे दिया तब गेंद राज्‍यपाल के पाले में जाएगी। यह राज्‍यपाल के विवेक पर निर्भर करेगा कि वह सदन को भंग कर मध्‍यावधि चुनाव की सिफारिश करें या खाली सीटों पर उपचुनाव की। माना जा रहा है कि बीजेपी उपचुनाव पर बल देगी जबकि कांग्रेस का जोर मध्‍यावधि चुनाव पर रहेगा।

मध्‍य प्रदेश विधानसभा में सत्‍ता का गणित

मध्‍य प्रदेश में अब तक कांग्रेस के 114 में से 22 विधायकों ने इस्‍तीफा दे दिया है। विधानसभा अध्‍यक्ष अगर इन्‍हें स्‍वीकार कर लेते हैं तो विधानसभा में सदस्‍यों की संख्‍या 206 पहुंच जाएगी।
वहीं इन विधायकों के इस्‍तीफे के बाद कांग्रेस की संख्‍या 92 पहुंच जाएगी। उधर, बीजेपी के विधायकों की संख्‍या 107 है। इसमें कुछ विधायकों ने बागी रुख अपना रखा है। चार निर्दलीय, दो बीएसपी, एक एसपी विधायक हैं। ये सभी कांग्रेस को समर्थन दे रहे हैं। इनका समर्थन बना रहा तो कांग्रेस की संख्‍या 99 पहुंच जाएगी। अगर बात राज्‍यसभा चुनाव की करें तो एक सीट जीतने के लिए 52 वोटों की जरूरत होगी। वर्तमान परिस्थिति में बीजेपी आसानी से दो सीट जीत सकती है। कांग्रेस को दूसरी सीट जीतने के लिए 5 वोटों की जरूरत होगी।

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