”नीला” कैसे बना दलितों का रंग… ?

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बाबा साहब आंबेडकर को लेकर अमित शाह द्वारा दिए गए बयान पर घमासान मचा हुआ है. इसी बीच जब राहुल गांधी सफेद के बजाय नीली टी-शर्ट पहनकर संसद पहुंचे तो यह चर्चा का विषय बन गया. दूसरी ओर यह कुछ नया नहीं है जब भी बात बाबा साहब आंबेडकर की या दलित की होती है तो, समर्थन हो या विरोध सभी के लिए नीले रंग का प्रयोग किया जाता है. इसके लिए कुछ लोग नीले रंग के कपड़ों का प्रयोग करते हैं तो कुछ लोग नीले झंडों का इस्तेमाल करते हैं.

इससे पहले भी जब हजारों दलित SC-ST एक्ट का विरोध कर रहे थे तो नीले रंग के कपड़ों और झंडे लहरा रहे थे. वहीं जब दलित छात्र रोहित वेमूला की सुसाइड मामले के खिलाफ प्रदर्शन किया गया तो, भी नीले रंग का इस्तेमाल किया गया. ऐसे में बड़ा सवाल है कि दलित वर्ग के लिए नीले रंग का इस्तेमाल क्यों किया जाता है ?

नीले रंग को लेकर क्या है अवधारणा ?

हालांकि, दलितों द्वारा नीले रंग का प्रयोग करने के पीछे का कोई स्थापित इतिहास नहीं मिलता है, लेकिन फिर भी सावित्रीबाई फुले पुणे यूनिवर्सिटी के पूर्व प्रोफेसर रावसाहब कासबे ने इस सवाल को लेकर जवाब दिया था. उन्होंने कहा था कि ‘ नीला रंग आसमान का प्रतीक है, एक ऐसा रंग जो भेदभाव रहित और समानता वाली दुनिया का प्रतीक माना जाता है. यह संदेश देता है कि आसमान के नीचे हर व्यक्ति को समान अधिकार और स्थान मिलना चाहिए.” हालांकि यह एक विचार है, इसका कोई ठोस प्रमाण नहीं है. इसके बावजूद, इस रंग को लेकर कई अन्य थ्योरियां भी मौजूद हैं.

इस रंग का पहली बार कब किया गया था प्रयोग ?

बताते हैं कि जब डा. बीआर आंबेडकर ने अपनी पार्टी इंडिपेंडेंट लेबर पार्टी की स्थापना की, तो इसका रंग नीला रखा गया. आंबेडकर ने यह रंग महाराष्ट्र के प्रमुख दलित समुदाय, महार के झंडे से लिया था. इसके बाद साल 2017 में ‘अर्थ’ नामक जर्नल में प्रकाशित एक शोध पत्र ‘फैब्रिक रेनेड्रेड आइडेंटीटी- ए स्टडी ऑफ पब्लिक रिप्रेजेंटेशन इन रंजीता अताकाती’ में भी इसी बात का उल्लेख किया गया है, जिसमें आंबेडकर ने नीले रंग को दलित चेतना का प्रतीक बताया था.

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दलितों ने क्यों अपनाया नीला रंग …

आंबेडकर को नीले रंग का सूट बहुत पसंद था और वह अक्सर इसी रंग के थ्री पीस सूट पहनते थे. आंबेडकर को दलित समाज अपने नायक के रूप में देखते हैं, एक ऐसे नेता जिन्होंने समाज के निचले तबके को संगठित किया और उन्हें आवाज दी. चूंकि आंबेडकर नीले रंग के सूट में होते थे, इसलिए दलित समाज ने इस रंग को अपनी पहचान और प्रतीक के रूप में अपनाया. देशभर में आंबेडकर की जितनी भी मूर्तियां स्थापित की गई हैं, उनमें वह नीले रंग का थ्री पीस सूट पहने और हाथ में संविधान की प्रति लिए हुए दिखते हैं. इस तरह आंबेडकर के साथ इस रंग का जुड़ाव दलित समाज द्वारा इसे अंगीकृत करने का प्रतीक बन गया औऱ यह रंग अब दलितों के लिए एक महत्वपूर्ण पहचान बन चुका है.

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