BHU: आचार्य भोला शंकर व्यास की स्मृति में बीएचयू में राष्ट्रीय संगोष्ठी …

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वाराणसी: काशी हिंदू विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग के तत्वावधान में आचार्य भोलाशंकर व्यास के शताब्दी स्मरण के उपलक्ष्य में एक दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन दो सत्रों में किया गया.

प्रथम सत्र का विषय …

‘आचार्य भोला शंकर व्यास: शास्त्रीय चिंतन – अनुचिंतन’।इस सत्र में मंच पर कार्यक्रम के अध्यक्ष प्रो. वशिष्ठ द्विवेदी, मुख्य अतिथि प्रो. अवधेश प्रधान, मुख्य वक्ता के रूप में प्रो. श्रीप्रकाश शुक्ल तथा सहायक आचार्य डॉ. प्रभात कुमार मिश्र और डॉ.विंध्याचल यादव उपस्थित रहे. हिंदी विभाग के अध्यक्ष प्रो. वशिष्ठ द्विवेदी ने कहा कि कहा कि बूंदी नरेश के रहते हुए उनको जो परिवार से संस्कार मिला उसी को व्यास जी ने आगे बढ़ाया और पल्लवित किया. व्यास जी की शिक्षण कला से हमें भी सीखना चाहिए की संदर्भों को किस प्रकार से खोला जाए.

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हिंदी विभाग के पूर्व आचार्य प्रो. अवधेश प्रधान ने कहा कि व्यास जी पर यह पहला आयोजन है जो अतिआवश्यक था. मध्यकाल की चित्रकला, नृत्य कला और संगीत कला आदि पर व्यास जी की पकड़ अच्छी थी तथा रीतिकाल के बिहारी और छायावादी कविता मे जयशंकर प्रसाद व्यास जी के पसंदीदा कवि थे. ‘संस्कृत भाषा का भाषा वैज्ञानिक अध्ययन’ व्यास जी की बहुत महत्वपूर्ण रचना है. ‘समुद्र संगम’ उपन्यास के माध्यम से उन्होंने हिंदू और मुस्लिम संस्कृतियों के भारत में संगम की चर्चा की है.

इस अवसर पर मुख्य वक्ता के रूप में हिंदी विभाग के प्रो. श्रीप्रकाश शुक्ल ने कहा कि उनके शास्त्रीय चिंतन में ज्ञानोत्सुकता व बहस धर्मिता प्रमुख तत्व रहे. उन्होंने संस्कृत के ज्ञान सम्पदा को हिंदी में प्रस्तुत किया और इस प्रस्तुति में वे बहुत सी बातें कह गए. उन्हें भाषायी अध्ययन और व्याकरणिक बोध की गहरी समझ थी. काव्य को व्यास जी ने ज्ञान से ही नहीं संवाद से भी जोड़ा. व्यास जी कहते हैं कि आलोचक का दायित्व सहृदय में आत्मोन्नति का विकास करना है.

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कार्यक्रम के आरंभ में आचार्य भोलाशंकर व्यास की भतीजी वंदना सिंह ने अपनी छोटी बहन प्रो. वसुंधरा की ओर से आचार्य भोलाशंकर के सम्मान में स्मृति पत्र का वाचन किया . हिंदी विभाग के पूर्व अध्यक्ष बलिराज पांडे ने कथाकार प्रो काशी नाथ सिंह के संदेश का वाचन किया. ज्ञातव्य है कि काशीनाथ सिंह भोलाशंकर व्यास के प्रथम शोधार्थी थे.

हिंदी विभाग के सहायक आचार्य डॉ. प्रभात मिश्र ने कालिदास कविता के माध्यम से भोलाशंकर व्यास की भावभूमि की चर्चा की. उनके अनुसार वैदिक साहित्य जनभाषा का साहित्य है. उन्होंने यह सिद्ध किया है की ऋग्वेद के मंत्रों की भाषा एक देश और एक समय की नहीं है. भोलाशंकर व्यास के अनुसार अलंकार काव्य मे व्यंजन मात्र है, भोजन नहीं इसलिए अलंकारों का एक सीमित प्रयोग होना चाहिए.

दूसरे सत्र का विषय व्यक्तित्व व रचनाएं’…

कार्यक्रम की अध्यक्षता प्रो बलिराज पांडेय ने की.मुख्य अतिथि प्रो वशिष्ठ नारायण त्रिपाठी,मुख्य वक्ता प्रो कृष्ण मोहन सिंह, विशिष्ट वक्ता डॉ विवेक सिंह, रहे. इस सत्र का संचालन डॉ महेंद्र कुशवाहा ने किया.
प्रो वशिष्ठ नारायण त्रिपाठी ने व्यास जी के व्यक्तित्व पर बोलते हुये कहा की व्यास जी विद्वान शिक्षक व तपस्वी शोधार्थी थे. वे सुचिंतित भाषाविद थे।व्यक्तित्व पारदर्शी था.
पूर्व अध्यक्ष प्रो श्रीनिवास पांडेय ने कहा कि भाषा विज्ञान पर ब्यास जी की मजबूत पकड़ थी.

 

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