अखिलेश यादव से मिले बसपा के बागी विधायक, साइकिल से जुड़ने की सम्भावना
यूपी में विधानसभा चुनाव के लिए सियासी सरगर्मी तेज हो गई है. लखनऊ में मंगलवार को बसपा के बागी विधायकों ने सपा मुख्यालय पर अखिलेश यादव से मुलाकात की. इसके बाद कायसों का दौर शुरू हो गया कि ये सभी विधायक सपा में शामिल होंगे. हालांकि, ये विधायक राज्यसभा चुनाव के दौरान भी अखिलेश से मिले थे और सपा आने की खूब चर्चा चली थी. इस मुलाकात पर अभी तक कोई आधिकारिक बयान नहीं आया है.
इन नेताओं ने की अखिलेश से मुलाकात
असलम राइनी (विधायक, भिनगा-श्रावस्ती), मुजतबा सिद्दीकी ( विधायक प्रतापपुर-इलाहाबाद), हाकिम लाल बिंद (विधायक हांडिया-प्रयागराज), हरगोविंद भार्गव (विधायक सिधौली-सीतापुर), असलम अली चौधरी (विधायक, ढोलाना-हापुड़), सुषमा पटेल (विधायक, मुंगरा बादशाहपुर) .
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दल-बदल का कानून बना रोड़ा
बसपा के बागी विधायकों के सपा में शामिल होने पर अभी संशय बना हुआ है. इन की राह में दल बदल कानून का रोड़ा है. यह सपा विधायक दल मंडल में भी शामिल नहीं हो सकते हैं. इसके लिए पहले विधानसभा अध्यक्ष को पत्र सौंपना पड़ेगा. ऐसे में सपा के रणनीतिकार चाहते हैं कि विधान परिषद चुनाव से पहले किसी तरह की बाधा ना आए. संभावना है कि विधान परिषद चुनाव के बाद ही अगला कदम आगे बढ़ाएंगे. बसपा विधायकों का समर्थन मिलने के बाद समाजवादी पार्टी 3 विधान परिषद सदस्य आसानी से जिता लेगी.
पंचायत चुनाव में पार्टी विरोधी गतिविधियों का लगा था आरोप
दरअसल, मायावती ने अपने दो विधायकों (राम अचल राजभर और लालजी वर्मा) को उनके द्वारा पंचायत चुनावों के दौरान पार्टी विरोधी गतिविधियों में लिप्त होने का आरोप लगाकर बसपा से निष्कासित किया था. मायावती ने सभी पदाधिकारियों को यह भी निर्देश दिए थे कि इन दोनों विधायकों को पार्टी के किसी भी कार्यक्रम में न बुलाया जाए. वहीं राम अचल राजभार और लालजी वर्मा दोनों बसपा सुप्रीमो मायावती के काफी करीबी थे. दोनों विधायक अम्बेडकरनगर जिले में बसपा कटेहरी एवं अकबरपुर विधानसभा क्षेत्र में काबिज थे, लेकिन पंचायत चुनाव में पार्टी विरोधी गतिविधियों एवं उससे पूर्व विभिन्न मौकों पर बरती गई अनुशासनहीनता ने लालजी वर्मा व राम अचल राजभर को बहुजन समाज पार्टी से बाहर होने पर विवश कर दिया.पूर्व मंत्री राम अचल राजभर के विरुद्ध शासन स्तर पर विभिन्न जांचें भी चल रही हैं. दोनों लोगों से बसपा छुटकारा भी पाना चाहती थी शायद उनके निष्कासन की यह भी बड़ी वजह थी. दोनों नेता बसपा के स्थापना के समय से पार्टी से जुड़े थे.
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