सदन में पेश हुआ तीन तलाक बिल, ओवैसी, आरजेडी ने किया विरोध

0

केंद्र सरकार तीन तलाक को आपराधिक घोषित करने वाले विधेयक को आज लोकसभा में पेश किया गया। कानून मंत्री रवि शंकर प्रसाद मुस्लिम महिला (शादी के अधिकार का संरक्षण) विधेयक को पेश किया। उन्होंने कहा कि तीन तलाक पर कानून महिलाओं के हक में है। उन्होंने आज के दिन को ऐतिहासिक करार दिया। बिल का AIMIM, टीएमसी, आरजेडी, बीजेडी जैसे विपक्षी दल विरोध कर रहे हैं।

ओवैसी कर रहे हैं विरोध

AIMIM नेता असदुद्दीन ओवैसी ने बिल का विरोध करते हुए कहा कि बिल पास हुआ तो मुस्लिम महिलाओं के अधिकारों का हनन होगा। उन्होंने कहा कि प्रस्तावित कानून को लेकर मुस्लिमों से कोई चर्चा नहीं कई गई। आरजेडी ने भी बिल पर सवाल उठाए हैं।

बता दें कि मुस्लिम संगठन विधेयक को महिला विरोधी बता रहे हैं। ऑल इंडिया पर्सनल लॉ बोर्ड जहां प्रस्तावित कानून का विरोध कर रहा है, वहीं मुस्लिम महिला पर्सनल लॉ बोर्ड ने भी कहा है कि अगर कानून कुरान और संविधान की भावना के खिलाफ रहा तो वह मुस्लिम महिलाओं को नामंजूर होगा। कानून के जानकार भी सजा वाले प्रावधानों पर यह कहते हुए चिंता जाहिर कर रहे हैं कि अगर पति जेल गया तो महिला और बच्चों का गुजारा कैसे होगा?

बिल में क्या है?

द मुस्लिम विमिन (प्रोटेक्शन ऑफ राइट्स ऑन मैरेज) बिल में तीन तलाक की पीड़ितों को मुआवजे का भी प्रावधान है। इस बिल को गृह मंत्री राजनाथ सिंह की अगुआई में एक अंतरमंत्रालयी समूह ने तैयार किया है। इसके तहत किसी भी तरह से दिया गया इन्सटैंट ट्रिपल तलाक (बोलकर या लिखकर या ईमेल, एसएमएस, वॉट्सऐप आदि के जरिए) ‘गैरकानूनी और अमान्य’ होगा और पति को 3 साल तक जेल की सजा हो सकती है। इस बिल को सुप्रीम कोर्ट के 22 अगस्त के फैसले के बाद तैयार किया गया था। सुप्रीम कोर्ट ने 22 अगस्त को तीन तलाक को गैरकानूनी घोषित किया था। बिल के मसौदे को 1 दिसंबर को राज्यों को विचार के लिए भेजा गया था और उनसे 10 दिसंबर तक जवाब मांगा गया था।

‘कानून अगर कुरान की मूल भावना के खिलाफ तो नामंजूर’

संसद में तीन तलाक विरोधी विधेयक पेश होने से रोकने की ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (AIMPLB) की अपील के बीच मुस्लिम महिला संगठनों ने कहा है कि अगर यह विधेयक कुरान की रोशनी और संविधान के दस्तूर पर आधारित नहीं होगा तो इसे कतई स्वीकार नहीं किया जाएगा। ऑल इंडिया विमिन पर्सनल लॉ बोर्ड की अध्यक्ष शाइस्ता अंबर ने बुधवार को कहा कि निकाह एक अनुबंध है और जो भी इसे तोड़े, उसे सजा दी जानी चाहिए। उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार द्वारा बनाया जाने वाला कानून अगर कुरान की रोशनी और संविधान के दस्तूर के मुताबिक नहीं होगा तो देश की कोई भी मुस्लिम औरत उसे कुबूल नहीं करेगी।

विपक्ष का बड़ा तबका सजा के विरोध में

कांग्रेस, लेफ्ट और बीजू जनता दल समेत विपक्ष का एक बड़ा तबका बिल में सजा वाले प्रावधानों के विरोध में है। सरकार यह कानून सुप्रीम कोर्ट के उस ऐतिहासिक फैसले के बाद ला रही है, जिसमें कोर्ट ने एक साथ तीन तलाक (तलाक-ए-बिद्दत) को अमान्य और असंवैधानिक घोषित किया था। टीएमसी जहां तीन तलाक पर बैन के ही खिलाफ है, वहीं कांग्रेस, एनसीपी और लेफ्ट जैसे दूसरे दल सुप्रीम कोर्ट के फैसले का तो स्वागत कर चुके हैं लेकिन प्रस्तावित कानून में सजा के प्रावधानों का विरोध कर रहे हैं। कांग्रेस प्रवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी कह चुके हैं कि केंद्र सुप्रीम कोर्ट के फैसले की आड़ में एक ऐसी चीज को आपराधिक बनाना चाहता है जिसकी अभी हाल तक इजाजत थी। सीपीएम ने बिल को संसद की सर्वदलीय समिति में भेजने की मांग की है।

क्या कहते हैं कानून के जानकार?

सुप्रीम कोर्ट द्वारा गैर-संवैधानिक करार दिए जा चुके ट्रिपल तलाक (तलाक-ए-बिद्दत) देने वालों को 3 साल तक कैद की सजा का प्रावधान करने की तैयारी है। लेकिन कानूनी जानकारों का कहना है कि ऐसी पीड़ित महिलाओं के संरक्षण के लिए कानून में ठोस प्रावधान करने की जरूरत है, क्योंकि ऐसे गैरकानूनी तलाक देने वाले पति को जब जेल भेजा जाएगा तो पूरे परिवार पर इसका असर होगा।

Also Read : अब चीनी मीडिया ने भी माना, चल रहा है ‘मोदी मैजिक’

सुप्रीम कोर्ट के ऐडवोकेट एम. एल. लाहौटी के मुताबिक, सरकार ‘मुस्लिम विमिन प्रोटेक्शन ऑन राइट्स ऑफ मैरेज’ बिल ला रही है। इसमें दोषी पाए जाने पर 3 साल कैद की सजा हो सकती है, लेकिन यहां अहम सवाल है कि महिला और उसके परिवार के खर्चे कैसे और कहां से आएंगे? पति अगर किसी नौकरी में है और वह जेल जाता है तो वह सबसे पहले नियम के तहत सस्पेंड होगा।

अगर वह स्वरोजगार में है तो भी उसकी आमदनी खत्म हो जाएगी। पति को सजा होते ही वह नौकरी से बर्खास्त हो जाएगा और उसकी सैलरी खत्म हो जाएगी। ऐसी सूरत में महिला और बच्चों का खर्च कौन वहन करेगा। कहीं महिला इसी डर से कि उसकी परवरिश कैसे होगी, ऐसे मामलों में सामने आने से कतराने न लगे। चूंकि मामला पारिवारिक विवाद का है, ऐसे में पति पर निर्भर रहने वाली महिला बैकफुट पर आ जाएगी।

हाई कोर्ट के ऐडवोकेट एम. एस. खान बताते हैं कि शाह बानो केस के बाद सरकार ने मुस्लिम महिला (तलाक अधिकार संरक्षण कानून, 1986) बनाया था। इस कानून के तहत एक मुस्लिम तलाकशुदा महिला इद्दत के समय के बाद अपना गुजारा नहीं कर सकती तो अदालत उसके संबंधियों को गुजारा भत्ता देने के लिए कह सकती है। वो वैसे संबंधी होंगे जो मुस्लिम कानून के तहत उसके उत्तराधिकारी होंगे। अगर ऐसे रिश्तेदार नहीं हैं तो वक्फ बोर्ड गुजारा भत्ता देगा।

(साभार-नवभारत टाइम्स)

(अन्य खबरों के लिए हमें फेसबुक पर ज्वॉइन करें। आप हमें ट्विटर पर भी फॉलो कर सकते हैं।)

Leave A Reply

This website uses cookies to improve your experience. We'll assume you're ok with this, but you can opt-out if you wish. AcceptRead More