बीता हुआ कल जिसे हम भूतकाल कहते हैं हमेशा से हमें आकर्षित करता है. और लेखक, पत्रकार, और इतिहासकारों को तो इसकी पसंद कुछ खास ही होती है. हम आपको वर्तमान के पक्की सड़क से थोड़ा खीचंते हुए बीते हुए कल की पगडंडियों पर चालयेंगे. आज तारीख 21 अपैल 2021 है और रामनवमी है. हम आपको अपने समय की सबसे प्रतिष्ठित हिन्दी प्रतिकाओं में से एक ‘धर्मयुग’ के 20 अप्रैल 1975 के अंक से परीचित करायेंगे. खास यह कि धर्मयुग का यह अंक रामनवमी को ही समर्पित था.
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मुखपृष्ठ पर थे ‘जानकी के राम’
तकरीबन 46 साल पहले प्रख्यात लेखक व पत्रकार धर्मवीर भारती के संपादकत्व में छपे ‘धर्मयुग] के इस रामनवमी अंक की आवरण कथा जिसे हम कवर स्टोरी कहते हैं ‘जानकी की तलाश’ थी. मुखपृष्ठ कवर पेज पर जो फोटो थी उसमें भगवान राम तीर कमान के साथ दिखायी दे रहे हैं. इस फोटो को ‘जानकी के राम’ का संबोधन दिया गया. इस फोटो को बालकृष्ण ने कैमरे में सहेजा था. राम के पीछे मधुबनी शैली में एक लोकचित्र है. जिसे सत्यदेव नारायण सिन्हा ने क्लिक किया था. कवर पेज फोटो के बारे में धर्मयुग के उस समय के उपसांपादक सतीश वर्मा ने लिखा है कि दो वर्ष पहले तरुण व उत्साही अभिनेता राकेश पाण्डेय ने ‘धर्मयुग’ को इंटरव्यू देते समय धर्मयुग के रामनवमी अंक के मुखपृष्ठ को लेकर अपनी दिलचस्पी जाहिर की थी, और कहा था कि मुझे राम का अभिनय करने का बड़ा शौक है. मैंने राम के मेकअप में कई फोटो भी खिचंवाये हैं. चाहते तो वो फोटो भी देख लेते.
शायद भारती जी को पसंद आते… हमने अगली रामनवमी को राकेश को याद रखने का वचन दिया था. पर पिछले वर्ष वो मद्रास में शूटिंग में व्यस्त रहे. इसके चलते हमारा वचन पूरा न हो सका. पर रघुकुल रीति की परंपरा में इस बार धर्म्रयुग का वचन इस बार पूरा हो रहा है. इस रामनवमी अंक के मुखपृष्ठ पर राकेश पाण्डेय राम की भूमिका में विराजमान है. सतीश लिखते हैं यह कैसी दिलचस्प बात है कि आदर्श पुरुष राम के प्रेमी राकेश पाण्डेय का जन्म 6 अप्रैल 1946 चैत्र मास में रामनवमी पर ही हुआ था. उनकी जन्मकुंडली देखने से पता चलता है उनका नक्षत्र पुर्नवसु भी वही है जो भगवान राम का था.
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अब कुछ कवर स्टोरी के बारे में
जैसा की मैंने आपको पहले ही बताया कि ‘धर्मयुग’ के रामनवमी अंक में कवर स्टोरी ‘जानकी की तलाश’ थी. रामनवमी के अवसर पर जानकी की जन्मभूमि मिथिला नेपाल की परिक्रमा. एक बार इस क्षेत्र में जब सूखा, अकाल और अभाव से जनता त्रस्त हो उठी तो राजा जनक ने हल चलाया था, और भूमिजा जानकी प्रकट हुईं. उसी भूमि से अभावों के बीच क्या किसी नई चेतना का जन्म हो रहा है इसी सवाल का जवाब प्रख्यात नाटककार व कथाशिल्पी डॉ लक्ष्मी नारायण लाल ने अपने यात्रा विवरण के माध्यम से इस अंक में दिया था. डॉ लाल ने अपने लेखन में रामचरित मानस की चौपाइयों दोहों के माध्यम से भी जानकी को खोजने का जतन किया. फिर बिहार के मधुबनी, मुजफ्फरपुर, सहरसा, खगडि़या के गांवों की बात. जय प्रकाश नारायण की बात, सर्वोदय की बात और नक्सलियों की भी बात. मुकम्मल स्टोरी. कहीं कुछ छूट न जाय.